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Jungle Gaatha
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Jungle Gaatha

by Namita Singh
4.5
4.5 out of 5

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Creators
Author Namita Singh
Publisher Vani Prakashan
Synopsis

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Binding: HardBack
About the author नमिता सिंह आज के समय की महत्त्वपूर्ण कथाकारों में प्रतिष्ठित हैं। एक स्त्री के रूप में उनकी अहमियत और भी बढ़ जाती है। इनके कहानी संग्रहों में ‘खुले आकाश के नीचे’ (1978), ‘राजा का चैक’ (1982), ‘नील गाय की आँखे’ (1990), ‘जंगल गाथा’ (1992), ‘निकम्मा लड़का’, ‘मिशन जंगल और गिनीपिंग’, कफ्र्यू और अन्य कहानियाँ’ हैं। नमिता सिंह कहानियों के अतिरिक्त एक उपन्यारस ‘सलीबें’ और ‘लेडीज क्लब’ का भी सृजन कर चुकी हैं। इसके अतिक्ति लम्बे समय तक ‘वर्तमान साहित्य’ नामक हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका का सफलतापूर्वक संपादन करती रही। इनकी अनेक कहानियों का उर्दू, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। ये आज भी अनेक सामाजिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर सामाजिक कार्यों में सक्रिय योगदान दे रही हैं। ‘जंगल गाथा’ नमिता सिंह का दस कहानियों- जंगल गाथा, बन्तो, मक्का की रोटी, सांड़, उबारने वाले हाथ, गणित, मूषक, गलत नम्बर का जूता, चाँदनी के फूल, नतीजा का संग्रह होने के साथ ही इनकी कथा-यात्रा का महत्त्वपूर्ण पड़ाव भी है। ‘जंगल गाथा’ प्रकृति और मानव जीवन के मध्य सामंजस्य न बिठा पाने की कहानी है। प्रकृति से मानव जीवन का गहरा रिश्ता है। जंगल पर ठेकेदारों की नजर निरन्तर बनी रहती है। अवैध कटाई से वे दिन दूना रात चैगुना तरक्की कर रहे हैं। टोले के लोग जंगल को लेकर अत्यधिक संवेदनशील अरैर चिन्तित हैं। जंगल की अवैध कटाई से वे चिन्तित होकर कहते हैं- ‘‘जंगल नष्ट होगा तो टोला भी खत्म हो जायेगा। तलिया टोले जैसे कई ढेरो टोेेले- सब खत्म हो जायेंगे।’’ (जंगल गाथा, पृ0-13) इसके साथ ही वे जंगली जानवरों के उत्पाद से भी परेशान हैं। इसी से परेशान होकर बिलमा स्याना कहता है कि- ‘‘जंगल के हिरन, लोमड़ी, बन्दर दीखता है। भेडि़या, लकड़बग्गा दीखता है, लेकिन ये बाघ किधर से आ गया। हे बनजारिन माई, रक्षा करो जंगल की... हे खैरा माई रखा करना टोले की।’’ (जंगल गाथा, पृ0-13) नमिता सिंह इस कहानी में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को लेकर काफी संवेदनशील दिखायी पड़ती हैं। आदिवासी जीवन शैली में स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं होता। दोनों ही साथ-साथ सामाजिक क्रियाओं और नाच-गानों में भाग लेते हैं- ‘‘सचमुच कहीं नज़र न लग जाये... उधर नज़र गड़ाये सुरसत्ती यही सोच रही थी। उसकी सहेलियाँ पूरे सजाव-बनाव के साथ कबीर टोला के नौजवानों के साथ नाच में उतर चुकी थी और अब आदमी-औरत के मिले-जुले संगीत के स्वर गूँज रहे थे।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Vani Prakashan
  • Pages: 142
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9788170552475
  • Category: Short Stories
  • Related Category: Novella
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