Synopsis‘झाँसी की रानी’ महाश्वेता देवी की प्रथम रचना है। स्वयं उन्हीं के शब्दों में, ‘इसी को लिखने के बाद मैं समझ पाई कि मैं एक कथाकार बनूँगी।’ इस उपन्यास को लिखने के लिए महाश्वेता जी ने अथक अध्ययन किया और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के विषय में व्याप्त तरह-तरह की किंवदन्तियों के घटाटोप को पार कर तथ्यों और प्रामाणिक सूचनाओं पर आधारित एक जीवनीपरक उपन्यास की तलाश की। इस पुस्तक को महाश्वेता जी ने कलकत्ता में बैठकर नहीं, बल्कि सागर, जबलपुर, पूना, इन्दौर-ललितपुर के जंगलों, झाँसी, ग्वालियर, कालपी में घटित तमाम घटनाओं यानी 1857-58 में इतिहास के मंच पर जो हुआ, उस सबके साथ-साथ चलते हुए लिखा। अपनी नायिका के अलावा लेखिका ने क्रान्ति के बाकी तमाम अग्रदूतों, और यहाँ तक कि अंग्रेज अफसरों तक के साथ न्याय करने का प्रयास किया है। इस कृति में तमाम ऐसी सामग्री का पहली बार उद्घाटन किया गया है जिससे हिन्दी के पाठक सामान्यतः परिचित नहीं हैं। झाँसी की रानी पर अब तक लिखी गईं अन्य औपन्यासिक रचनाओं से यह उपन्यास इस अर्थ में भी अलग है कि इसमें कथा का प्रवाह कल्पना के सहारे नहीं बल्कि तथ्यों और दस्तावेजों के सहारे निर्मित किया गया है, जिसके कारण यह उपन्यास जीवनी के साथ-साथ इतिहास का आनन्द भी प्रदान करता है।
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Binding: PaperBack
About the author
जन्म : 1926, ढाका।
पिता श्री मनीष घटक सुप्रसिद्ध लेखक थे।
शिक्षा : प्रारम्भिक पढ़ाई शान्तिनिकेतन में, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.।
अर्से तक अंग्रेजी का अध्यापन।
कृतियाँ अनेक भाषाओं में अनूदित।
हिन्दी में अनूदित कृतियाँ : चोट्टि मुण्डा और उसका तीर, जंगल के दावेदार, अग्निगर्भ, अक्लांत कौरव, 1084वें की माँ, श्री श्रीगणेश महिमा, टेरोडैक्टिल, दौलति, ग्राम बांग्ला, शालगिरह की पुकार पर, भूख, झाँसी की रानी, आंधारमानिक, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, मातृछवि, सच-झूठ, अमृत संचय, जली थी अग्निशिखा, भटकाव, नीलछवि, कवि वन्द्यघटी गाईं का जीवन और मृत्यु, बनिया-बहू, नटी (उपन्यास); पचास कहानियाँ, कृष्णद्वादशी, घहराती घटाएँ, ईंट के ऊपर ईंट, मूर्ति, (कहानी-संग्रह); भारत में बँधुआ मजदूर (विमर्श)।
सम्मान : ‘जंगल के दावेदार’ पुस्तक पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘मैगसेसे अवार्ड’ तथा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ द्वारा सम्मानित।
निधन : 28-07-2016 (कोलकाता)।