Synopsisजाँनिसार अख़्तर एक बोहेमियन शायर थे. अगर ये कहा जाए कि तरक्कीपसंद शायरी के स्तंभ कहे जाने के बावजूद वो बुनियादी तौर पर एक रूमानी लहजे के शायर थे तो शायद गलत नहीं होगा.
हो सकता है कि उन्होंने वक्त के तकाज़ों और सोहबत के असर में कुछ नारेबाज़ी भी कर ली हो लेकिन वो बहुत ही मामूली हिस्सा है उनकी शायरी का. उनकी शायरी में जो रोमांस है, वो ही उसका सबसे अहम पहलू है. वास्तव में रोमांस जाँनिसार अख़्तर का ओढ़ना बिछौना था...
बहुत सारे बिखरे काले सफ़ेद बाल, उनको सुलझाती हुई उनकी उंगलियाँ, होठों के बीच दबी सुलगती सिगरेट, सड़क पर घिसटता हुआ चौड़े पांएचे का पाजामा और उस पर टंगी हुई किसी मोटे कपड़े की जवाहर जैकेट... ये थे दूर दूर के बहुत सारे जाँनिसार अख़्तर।
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Binding: HardBack
About the author
निदा फ़ाजली : निदा फ़ाजली का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में और प्रारंभिक जीवन ग्वालियर में गुजरा। ग्वालियर में रहते हुए उन्होंने उर्दू अदब में अपनी पहचान बना ली थी और बहुत जल्द वे उर्दू की साठोत्तरी पीढ़ी के एक महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में पहचाने जाने लगे। निदा फ़ाजली की कविताओं का पहला संकलन ‘लफ़्ज़ों का पुल’ छपते ही उन्हें भारत और पाकिस्तान में जो ख्याति मिली वह बिरले ही कवियों को नसीब होती है। इससे पहले अपनी गद्य की किताब मुलाकातें के लिए वे काफी विवादास्पद और चर्चित रह चुके थे। ‘खोया हुआ सा कुछ’ उनकी शाइरी का एक और महत्त्वपूर्ण संग्रह है। सन 1999 का साहित्य अकादमी पुरस्कार ‘खोया हुआ सा कुछ’ पुस्तक पर दिया गया है। उनकी आत्मकथा का पहला खंड ‘दीवारों के बीच’ और दूसरा खंड ‘दीवारों के बाहर’ बेहद लोकप्रिय हुए हैं। फिलहाल: फिल्म उद्योग से सम्बद्ध।