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Film Nirdeshan
by Kuldeep Sinha
4.6
4.6 out of 5
Creators
AuthorKuldeep Sinha
PublisherRadhakrishna Prakashan
Synopsisभारत में फिल्म निर्माण की पहल के सौ साल से अधिक बीत गए । बोलती फिल्मों की शुरुआत (आलम आरा) का यह वाँ साल है । हर साल यहाँ हजारों फिल्में बनती हैं । इसके कारण भारत विश्व के ऐसे देशों की श्रेणी में शुमार किया जाता है जहाँ सबसे अधिक फिल्मों का निर्माण होता है, लेकिन विडम्बना यह है कि फिल्म निर्देशन पर अब तक हिन्दी में कोई किताब नहीं थी । कुलदीप सिन्हा ने 'फिल्म निर्देशन' पुस्तक लिखकर यह कमी पूरी कर दी है, इसलिए उनकी यह पहल ऐतिहासिक है । श्री सिन्हा पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से प्रशिक्षित फिल्मकार हैं । राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अनेक फिल्मों के वे निनिर्माता-निर्देशकहे हैं । इसलिए उनकी इस पुस्तक में निशान के सैद्धान्तिक विवेचन के साथ ही उसके व्यावहारिक पक्ष को सूक्ष्मता और विस्तार से विवेचित किया गया है । पुस्तक 11 दृश्यों में विभक्त है । प्रत्येक दृश्य में निर्देशन के अलग-अलग मुद्दों तथा तकनीकी प्रसंगों को सहजता के साथ स्पष्ट किया गया है । श्री सिन्हा पहले बताते हैं कि फिल्म को फ्फ्लोरर ले जाने के पूर्व क्या तैयारी करनी चाहिए! फिल्म की निर्माण योजना में सन्तुलन के लिए क्या सावधानी बरतें! इसके बाद उन्होंने संक्षेप में पटकथा लेखन के प्रमुख बिन्दुओं की भी चर्चा कर दी है । लाइटिंग और कम्पोजीशन के सिलसिले में व्यावहारिक सुझाव दिए हैं । फिल्म सेंसरशिप की कार्यप्रणाली तथा उसके विषय पर प्रकाश डाला है । और अन्त में 'निर्देशक' कुलदीप सिन्हा ने अपनी पसन्द के अ हिन्दी फिल्म निर्देशकों जैसे शान्ताराम, विमल राय, गुरुदत्त और राजकपूर आदि के ऐतिहासिक योगदान का महत्वपूर्ण विश्लेषण किया है । इसी प्रसंग में भारत में सिनेमा के इतिहास का संक्षिप्त रेखांकन भी हो गया है ।
आम लोग इस पुस्तक से यह आसानी से जान सकते हैं कि जो सिनेमा वे इतने चाव से देखते हैं वह बनता कैसे है? और जो लोग फिल्म निर्माण के क्षेत्र में जाना चाहते हैं उनके लिए यह पुस्तक प्रवेशद्वार की तरह है । जो लोग फिल्म आलोचना से सम्बद्ध हैं, उनके सामने कुलदीप सिन्हा की यह पुस्तक अनेक अनुद्घाटित व्यावहारिक पक्षों को सामने लाती है । श्री कुलदीप सिन्हा की इस बहुआयामी पुस्तक की उपयोगिता को देखते हुए मैं उन्हें इस नए दौर का 'सिनेमा गुरु' कहना चाहता हूँ ।
सुरेश शर्मा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म आलोचक