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Home Literature Novel Ek Akshar Bhi Jhootha Nahin
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Ek Akshar Bhi Jhootha Nahin
by Sushmita Bandyopadhyay
4.4
4.4 out of 5
Creators
AuthorSushmita Bandyopadhyay
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisएक नन्ही बच्ची - अपने ख्वाबों की दुनिया में अपनी ख्वाहिशें लेकर बड़ी होना चाहती है, जैसे हर शिशु चाहता है। परन्तु सामाजिक, पारिवारिक अनुशासन और परिवेश के दबाव, अपने ख्वाबों और ख्वाहिशों के अनुसार बड़ी होने के मार्ग में बाधक बनते हैं और परिणामस्वरूप मन में जिद पनपती है।
अन्य दो-चार लड़कियों की भाँति सपनों, तर्कों, समाज, परिवार, परिवेश की आहुति दे वह बड़ी हो सकती थी, लेकिन वह सिर्फ लड़की नहीं, इन्सान है, इसलिए तर्कों और विवेक के साथ अपनी इच्छानुसार बड़ी होना चाहती थी।
इसीलिए, समाज, परिवार और अनुशासन को अँगूठा दिखा एक ‘विधर्मी’, अफ़गान युवक से शादी रचा सपनों के रथ पर सवार हो रवीन्द्रनाथ के काबुलीवाले के देश में कदम रखा। अफ़गानिस्तान की धरती पर कदम रखते ही उसके सारे सपने चूर-चूर हो गए। यह तो रवीन्द्रनाथ के रहमत का देश नहीं है ! यह तो मानो मध्ययुगीन, अशिक्षाग्रस्त, जर्जर, दासप्रथावाला अन्धकारमय असांस्कृतिक देश है !
विवेक और मानवता उसे जेहाद छेड़ने के लिए प्रेरित करते। आखिर शिक्षा, नारी-स्वाधीनता के नाम पर, मानवता के पक्ष में अपना सिर उठाकर उसने मनुष्यता के शत्रु ‘इस्लामी’ गुरु और उनके शिष्य तालिबानियों के विरुद्ध संग्राम छेड़ ही दिया।
तालिबानों के अत्याचारों, दम-घोंटू रीति-रिवाजों, पल-पल मौत के साए में जीवन बसर करनेवाले मजलूमों, बेकसूरों के खौफ की सच्ची दास्तान है सुष्मिता वंद्योपाध्याय का यह तीसरा आत्मकथात्मक उपन्यास - एक अक्षर भी झूठा नहीं !