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Dushchakra Mein Srasta
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Dushchakra Mein Srasta

by Viren Dangwal
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Creators
Author Viren Dangwal
Publisher Rajkamal Prakashan
Synopsis कविता में यथार्थ को देखने और पहचानने का वीरेन डंगवाल का तरीका बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी कि’स्म का रहा है । सन् 1991 में प्रकाशित उनका पहला कविता–संग्रह इसी दुनिया में अगर आज एक दशक बाद भी उतना ही प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण लगता है तो इसलिए कि वीरेन की कविता ने समाज के साधारण जनों और हाशियों पर स्थित जीवन के जो विलक्षण ब्यौरे और दृश्य हमें दिये हैं, वे कविता में और कविता से बाहर भी सबसे अधिक बेचैन करने वाले दृश्य हैं । कविता की मार्फ़त वीरेन ने ऐसी बहुत–सी चीजों और उपस्थितियों के संसार का विमर्श निर्मित किया जो प्राय: ओझल और अनदेखी थीं । इस कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा थी और उसकी बुनावट में ठेठ देसी किस्म के, ख़ास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता थी । वीरेन की विलक्षण काव्य–दृष्टि पर्जन्य, वन्या, वरुण, द्यौस जैसे वैदिक प्रतीकों और ऊँट, हाथी, गाय, मक्खी, समोसे, पपीते, इमली जैसी अति लौकिक वस्तुओं की एक साथ शिनाख्त करती हुई अपने समय में एक ज“रूरी हस्तक्षेप करती थी । वीरेन डंगवाल का नया कविता संग्रह जिसकी प्रतीक्षा काफ़ी समय से थी जैसे अपने विलक्षण नाम के साथ हमें उस दुनिया में ले जाता है जो इन वर्षों में और भी जटिल और भी कठिन हो चुकी है और जिसके अर्थ और भी बेचैन करने वाले बने हैं । विडम्बना, व्यंग्य, प्रहसन और एक मानवीय एब्सर्डिटी का अहसास वीरेन की कविता के जाने–पहचाने कारगर तत्त्व रहे हैं और एक गहरी राजनीतिक प्रतिबद्धता से जुड़कर वे हाशियों पर रह रही मनुष्यता की आवाज“ बन जाते हैं । उनकी नयी कविताओं में इन काव्य–युक्तियों का ऐसा विस्तार है जो घर और बाहर, निजी और सार्वजनिक, आन्तरिक और बाह्य को एक साथ समेटता हुआ ज़्यादा बुनियादी काव्यार्थों को सम्भव करता है । विचित्र, अटपटी, अशक्त, दबी–कुचली और कुजात कही जाने वाली चीजें यहाँ परस्पर संयोजित होकर शक्ति, सत्ता और कुलीनता से एक अनायास बहस छेड़े रहती हैं और हम पाते हैं कि छोटी चीजों में कितना बड़ा संघर्ष और कितना बड़ा सौन्दर्य छिपा हुआ है । साधारण लोगों, जीव–जन्तुओं और वस्तुओं से बनी मनुष्यता का गुणगान और यथास्थिति में परिवर्तन की गहरी उम्मीद वीरेन डंगवाल की इन सतहत्तर कविताओं का मुख्य स्वर है । इस स्वर के विस्तारों को, उसमें हलचल करते अनुभवों को देखना–महसूस करना ही एक रोमांचक अनुभव है क्योंकि वे शायद हिन्दी कविता में पहले और इतने अनुराग के साथ कभी नहीं आये हैं । ख़ास बात यह है कि साधारण की यह गाथा वीरेन स्वयं भी एक साधारण मनुष्य के, उसी के एक हिस्से के रूप में प्रस्तुत करते हैं जहाँ स्रष्टा के दुश्चक्र में होने की स्थिति मनुष्य के दुश्चक्र में होने की बेचैनी में बदल जाती है ।

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Binding: HardBack
About the author
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 116
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9788126704132
  • Category: Poetry
  • Related Category: Literature
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