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Home Literature Poetry Dhoop Ke Aur Kareeb
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Dhoop Ke Aur Kareeb
by Ravindra Bharti
4.4
4.4 out of 5
Creators
AuthorRavindra Bharti
PublisherRadhakrishna Prakashan
Synopsisरवीन्द्र भारती अतिपरिचित आत्मीय परिवेश में जनसंवेदना और वस्तु-संवेदना के सशक्त और महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनका परिवेश बाहरी और भीतरी दोनों है। दोनों में लगातार आवाजाही लगी रहती है। अपने परिवेश को भीतर और बाहर से महसूस करने - संवेदना की अपनी एक पट्टी बनाने की यह भोक्ता-स्थिति, जो नए आख्यानों का मजा देती है, संक्रमण काल के अन्तिम दौर वाली कविताओं की खास पहचान है। इस दौर में एक असफल होते जनतंत्र में मुहावरों की बड़बोलती कविता से मोहभंग की सूचना जिन थोड़े से कवियों में मिलती है, रवीन्द्र भारती उनमें प्रमुख हैं।
धूप के और करीब एक स्मरणीय संग्रह है। रवीन्द्र भारती एक स्मृति-सम्पन्न कवि हैं। ग्रामीण परिवेश के जितने सरल और अर्थवान बिम्ब रवीन्द्र भारती के पास हैं, उतने किसी समकालीन कवि के पास शायद नहीं। उनकी कविताओं में जितने दृष्टान्त हैं - एक्सपोजर कोटि के नहीं हैं। वह अमानवीय और निरन्तर निष्ठुर हो रही व्यवस्था में रिसते आदमी की गाथा है। इससे निजात के आसार नहीं खोए हैं रवीन्द्र ने। विश्वास के साँचे में कई तरह के अब तक नहीं आए हुए पात्र, उनकी कविता में आते हैं। कवि का पूरा एक अन्तरंग संसार अपने मौलिक रंगों में यहाँ मौजूद है। रवीन्द्र भारती की प्रेम सम्बन्धी कविताएँ भी घरेलू अन्तरंगता से सराबोर हैं। उनकी भाषा और कविताओं का लहजा बिलकुल बोलचाल का है, और है यथार्थवादी रुझान का ताजापन। रवीन्द्र भारती भरोसे के कवि हैं। इनकी कविताओं में भूली हुई चीजों को याद दिलाने की, और भीतर सोई हुई आशाओं को जगाने की जो शक्ति दीखती है, वह अपूर्व है।