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Braj Va Kauravi Lokgeeton Mein Lokchetna
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Braj Va Kauravi Lokgeeton Mein Lokchetna

by Dr. Kumar Vishwas
4.3
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Creators
Author Dr. Kumar Vishwas
Publisher Vani Prakashan
Synopsis लोकगीत हमारी व्यक्तिगत अनुभूतियों, इतिहास, भूगोल, पर्यावरण, धर्म और संस्कृति आदि की गहरी समझ के अलावा सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना का लोक भाषाओं में सरलतम रूपान्तरण हैं। इसीलिए वे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करते रहे हैं। लोकगीत कभी शीतल फुहारों से मन को गुदगुदाते हैं, तो कभी ग़ुलामी, अन्याय, अत्याचार और बुराइयों के ख़िलाफ़ चिनगारियाँ जगाते हैं। इसीलिए वे राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन के उत्प्रेरक बनते हैं। हम आधुनिकता के नशे में अपने पुरखों की इस धरोहर को भुलाते जा रहे हैं। इसे बचाना और बढ़ाना साहित्य, समाज और राष्ट्र की बहुत बड़ी सेवा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मेरे प्रिय अनुज कुमार विश्वास जी एक पूरी पीढ़ी के सबसे लोकप्रिय कवि होने के साथ-साथ साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक विषयों के गम्भीर अध्येता और मौलिक व्याख्याता भी हैं। कई वर्षों के शोध और अथक परिश्रम से लिखी गयी पुस्तक ‘ब्रज व कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना’ इसी का एक और उदाहरण है, जिसके लिए उन्हें अनेकशः साधुवाद। यह पुस्तक साहित्यप्रेमियों, संस्कृतिकर्मियों और इतिहास के विद्यार्थियों के लिए एक अमूल्य उपहार साबित होगी। -कैलाश सत्यार्थी नोबेल शान्ति पुरस्कार सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता / भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि परिवर्तन के हर युग में अपने मूल स्वरूप को किसी-न-किसी रूप में सुरक्षित रख सकी है, फिर चाहे वह आज भी पूजित उच्चारित वैदिक ऋचाएँ हों या हमारा जीवन दर्शन समाहित किये हुए लोकगीत, लोककथाएँ या कहावतें। डॉ. कुमार विश्वास हापुड़ में जन्मे और कौरवी भूमि ही उनकी कर्मभूमि रही है। कुमार विश्वास के कवितापाठ में मैंने लोक की छाप देखी है, लोक जैसी सहजता, और हमारे सहेजते हुए बढ़ने वाली चेतना! वे जन-जन के प्रिय कवि कैसे बने, इसकी बुनियाद में उनका अद्भुत लोक अध्ययन झलकता है, लोक के प्रति श्रद्धा और चिन्ता भाव परिलक्षित होता है। -मालिनी अवस्थी पद्मश्री अलंकृत सुप्रसिद्ध लोक गायिका

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Binding: Paperback
About the author डॉ. कुमार विश्वास का जन्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में, 10 फरवरी 1970 को वसन्त पंचमी के दिन हुआ। कलावादी माँ का लयात्मक लोकज्ञान व प्राध्यापक पिता का भयात्मक अनुशासन साथ-साथ मिले। इंजीनियरिंग से लेकर प्रादेशिक सेवा तक और कामू से लेकर कामशास्त्र तक, थोक में भटके, पर अटके सिर्फ़ साहित्य पर। आईआईटी से लेकर आईटीआई तक और कुलपतियों से लेकर कुलियों तक, उनके चाहने वालों की फ़ेहरिस्त भारत की लोकतान्त्रिक समस्याओं जैसी विविध व अन्तहीन है। वे टीवी की रंगीन स्क्रीन से लेकर एफएम रेडियो के माइक्रो स्पीकर तक हर जगह सुनाई-दिखाई देते हैं। करोड़ों युवा उनसे प्रेरणा पाते हैं और साहित्य को विस्तार देने के सुपथ पर बढ़ते हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं-इक पगली लड़की के बिन (1996), कोई दीवाना कहता है (2007) और फिर मेरी याद (2019)। उन्होंने वर्ष 2017 में जॉन एलिया पर देवनागरी लिपि में प्रकाशित पहली पुस्तक मैं जो हूँ ‘जॉन एलिया’ हूँ का सम्पादन भी किया है। वर्तमान में उनकी तीन अन्य पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Vani Prakashan
  • Pages: 208
  • Binding: Paperback
  • ISBN: 9789390678808
  • Category: Criticism & Interviews
  • Related Category: Politics & Current Affairs
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