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Bhavan : Sahitya Aur Anya Kalaon Ka Anushilan
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Bhavan : Sahitya Aur Anya Kalaon Ka Anushilan

by Mukund Laath
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Creators
Author Mukund Laath
Publisher Rajkamal Prakashan
Synopsis पिछली और वर्तमान सदी को आधुनिक स्त्री की समस्याएँ भी जब बार-बार परम्परा और संस्कृति के परिपेक्ष्य में ही समाधान खोजती हैं तो सुदूर मानव इतिहास में न सही निकट के इतिहास में जाकर खोजबीन आवश्यक हो जाती है । उन्तीसर्वी सदी नवजागरण की सदी है और आधुनिकता इसी नवजागरण का प्रतिफलन है । चूँकि’ आधुनिक स्त्री’ के जन्म का श्रेय भी इसी शती को दिया जाता है तो इक्सीसवीं सदी में आधुनिक स्त्री की समस्या का समाधान खोजने इसी शताब्दी के पास जाना होगा । यह पुस्तक इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में भी आधुनिक स्त्रियों के सामने मुँह बाए खड़े प्रश्नों की जड़ तक पहुंचने को वह दृष्टि है जिसे विभिन्न घटकों से गुजरते व्याख्यायित करने की कोशिश की गई है । पहले अध्याय में जहाँ 'भारतेन्दु युग : उन्तीसवीं शताब्दी और औपनिवेशिक परिस्थितियों’ में उन्तीसवीं सदी की औपनिवेशिक परिस्थितियों और हिन्दी नवजागरण के अन्तर्सम्बन्धों का विश्लेषण किया गया है, वहीं द्वितीय अध्याय ‘औपनिवेशिक आर्थिक शोषण, हिन्दी नवजागरण और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' में औपनिवेशिक शासन-काल में हिन्दी नवजागरण के बीज और उसके पल्लवन के परिवेश की प्रस्तुति का प्रयास है । तृतीय अध्याय में ‘धर्म, खंडित आधुनिकता एवं स्त्री' में केवल हिन्दी या भारतीय नहीं बल्कि पूरे विश्व की स्त्रियों के प्रति धर्म की विद्वेषपूर्ण भावना का एक विहंगम अवलोकन है । चतुर्थ अध्याय 'स्त्री और उन्तीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध का हिन्दी साहित्य’ में पैंतीस वर्षों के सामाजिक प्रश्नों में समाविष्ट स्त्री-प्रश्नों को संबोधित करने को जुगत है । ये पैंतीस वर्ष वस्तुत्त: भारतेन्दु के जीवन-वर्ष हैं । वहीं पंचम अध्याय ‘उन्तीसवीं सदी के अन्तिम डेढ़ दशक और स्त्री-प्रश्च' में उन्तीसर्वी सदी के अन्तिम डेढ़ दशकों में संबोधित स्त्री-प्रश्नों को ‘मूल’ के साथ चिन्हित किया गया है । कह सकते हैं कि पुस्तक में उन्नसवीं शताब्दी के औपनिवेशिक शासन-काल में स्त्री-परिप्रेक्ष्य में धारणाओं-रूढियों, भावनाओँ-पूर्वग्रहों, आग्रहों-दुराग्रहों, अनमेल विवाह, वर-कन्या विक्रय, स्त्री-दासता, स्त्री-अशिक्षा, स्त्री-परित्याग, छुआछूत आदि से टकराते तर्क और विश्लेषण को जो जमीन तैयार की गई है, वह अपने चिन्तन मेँ महत्त्वपूर्ण तो है ही, विरल भी है ।

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Binding: HardBack
About the author
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 564
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9789388933810
  • Category: Art & Culture
  • Related Category: Society
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