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Home Literature Poetry Beej Se Phool Tak
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Beej Se Phool Tak
by Ekant Shrivastava
4.6
4.6 out of 5
Creators
AuthorEkant Shrivastava
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisबीज से फूल तक' की कविताओं में एक खास तरह की कशिश है । उसे एकान्त एक जगह 'गुरुत्वाकर्षण' कहते हैं जब समुद्र उन्हें अपनी तरफ खींचता है और अपनी तरफ खींचती है पृथ्वी ।' इस खींच-तान में समुद्र की अद्भुत छवियाँ छिटकी हैं । 'समुद्र पर सूर्योदय में 'श्याम जल में झड़ते हैं इंगुरी के फूल, क्षितिज की झुकी हुई टहनी से ।' और 'एक बहुत बड़ा हवनकुंड है भोर का समुद्र, मंत्रपुष्ट उठता है जल, हाहाकार है जल का मंत्रोच्चार ।' फिर 'ढलती धूप की धीमी आँच में, पिघलता है शाम का समुद्र ।' लेकिन इन दोनों घड़ियों के बीच दोपहर का समुद्र तो अद्वितीय है । वह 'हल्दी-मिला दूध है', 'जल का उद्विग्न वाद्य है' और है 'पानी का महाकाव्य, पानी की लकीरों पर लिखा हुआ, पानी का लोकगीत, पानी के कंठ से उठता हुआ ।' हिंदी में समुद्र पर पहली बार ऐसी कविताएँ दृष्टिगत हुई है सम्भवत: । समुद्र को 'पानी का महाकाव्य' कहने का गौरव एकान्त को ही प्राप्त हुआ है । ऐसा लगता है जैसे कोई पहले-पहल समुद्र को देख रहा हो : धरती पर पहला मनुष्य और हिन्दी का पहला कवि! इस प्रसंग की सबसे कल्पनाशील कविता सम्भवत: 'जल पाँखी' है : 'वे पानी के फूल हैं, पानी में ही फूलते, महकते, और झड़ते हुए, वे रात भर पानी की आँखों में, रंगीन स्वप्न की तरह रहते हैं, और भोर के धुँधलके में उड़ते हैं, जैसे धरती के प्रार्थना गीत हों ।'
लेकिन प्रबल गुरुत्वाकर्षण समुद्र से अधिक पृथ्वी का ही है । बड़ी कथा वही है जो छोटी कथा को अपनी तरफ खींचती है 'जैसे पृथ्वी खींचती है हमें अपने गुरुत्वाकर्षण से, जब हम उससे दूर जाने लगते हैं, वह बचाए रखती है, हमारे पाँवों को विस्थापित होने से ।' इसलिए 'बीज से फूल तक' की अधिकांश कविताओं का बीज भाव यह 'विस्थापन' ही है जिसमें अपनी धरती और अपने लोगों के प्रति आकर्षण तीव्रतर हो जाता है ।
एकान्त वस्तुत: छत्तीसगढ़ की 'कन्हार' के कवि हैं और 'कन्हार केवल मिट्टी का नाम नहीं है' और यह केवल
एक छोटा-सा 'अंचल' भी नहीं है क्योंकि 'देश के किसी भी हिस्से में मिल जाएगा छत्तीसगढ़ ।' इस दृष्टि से एकान्त को कोरा 'आंचलिक' कवि कहना भी ठीक न होगा ।
फिर भी 'बीज से फूल तक' कविता का ऐसा विशिष्ट अंचल है 'जहाँ शब्दों की महक से, गमकता है कागज का हृदय, और मनुष्य की महक से धरती ।' इस प्रसंग में एकान्त यह याद दिलाना नहीं भूलते कि 'दिन-ब-दिन राख हो रही इस दुनिया में 7 जो चीज हमें बचाए रखती है 7 वह केवल मनुष्य की महक है ।' इसीलिए उनकी इस उक्ति में सन्देह नहीं होता कि 'मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ, कि उस सुगंध को-जो मिट्टी की देह और 7 मनुष्य की साँस को सुवासित करती है-मैं बचाए 7 रख सका हूँ? हालाँकि दिनों-दिन यह कठिन होता जा रहा है ।' (बुखार) ।
'बीज से फूल तक' का काव्य-संसार एक ओर माँ-बाप, भाई-बहन का भरा-पूरा परिवार है तो दूसरी ओर अंधी लड़की, अपाहिज और बधिर जैसे असहाय लोगों का शरण्य भी ओर 'कन्हार' जैसी लम्बी कविता तो एक तरह से नख-दर्पण में आज के भारत का छाया-चित्र ही है ।
यदि वे साँस का नगाड़ा बजाते हैं तो उस स्पर्श से भी वाकिफ हैं जिसमें किसी को छूने में उँगलियों के जल जाने की आशंका होती है । इस क्रम में दिवंगत भाई के लिए लिखी हुई कविताएँ सबसे मर्मस्पर्शी हैं, खास तौर से 'पाँचवें की याद'!
'अन्न हैं मेरे शब्द' से अपनी काव्य-यात्रा आरम्भ करने वाले एकान्त आज भी विश्वास करते हैं कि 'जहाँ कोई नहीं रहता 7 वहाँ शब्द रहते हैं ।' आज जब चारों ओर से 'शब्द पर हमला' हो रहा है, एकान्त उन थोड़े से कवियों में हैं जो 'शब्द' को अपनी कविताओं से एक नया अर्थ दे रहे हैं ।
निश्चय ही एकान्त का यह तीसरा काव्य-संकलन एक लम्बी छलाँग है और ऊँची उड़ान भी-कवि के ही शब्दों में एक भयानक शून्य की भरपाई!
-नामवर सिंह