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Home Reference Women Aurat Hone Ki Saza
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Aurat Hone Ki Saza
by Arvind Jain
4.6
4.6 out of 5
Creators
AuthorArvind Jain
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisहंस, जुलाई, 1993 के संपादकीय में राजेन्द्र यादव ने लिखा था, ‘‘कितना सही नाम रखा है अरविंद जैन ने अपनी पुस्तक काकृ‘औरत होने की सजाष्’। ...‘‘कहते रहिए आप सारे क़ानूनों को सामंती, सवर्णवादी या मेल-शॉवेनिस्टिक...हम क्यों आसानी से उन क़ानूनों में फेर-बदल करें जो हमारे ही वर्चस्व में सेंध लगाते हों? अरविंद जैन का कहना हैµसमाज, सत्ता, संसद और न्यायपालिका पर पुरुषों का अधिकार होने की वजह से सारे क़ानून और उनकी व्याख्याएँ इस प्रकार से की गई हैं कि आदमी के बच निकलने के हजषरों चोर दरवाजष्े मौजूद हैं जबकि औरत के लिए क़ानूनी चक्रव्यूह से निकल पाना एकदम असंभव...’’
कानूनी प्रावधानों की चीर-फाड़ करते और अदालती फष्ैसलों पर प्रश्नचिद्द लगाते ये लेख क़ानूनी अंतर्विरोधों और विसंगतियों के प्रामाणिक खोजी दस्तावेजश् हैं जो निश्चित रूप से गंभीर अध्ययन, मौलिक चिंतन और गहरे मानवीय सरोकारों के बिना संभव नहीं। ऐसा काम सिफर्ष् वकील, विधिवेत्ता या शोध-छात्रा के बस की बात नहीं है। क़ानूनी पेचीदगियों को साफ़, सरल और सहज भाषा में ही नहीं, बल्कि बेहद रोचक, रचनात्मक और नवीन शिल्प में भी लिखा गया है।
पुस्तक पढ़ने के बाद हो सकता है, आपको भी लगे, ‘‘अरे, ऐसे भी क़ानून हैं? मुझे तो अभी तक पता ही नहीं था ! ’’ या फिर, ‘‘हम तो सोच भी नहीं सकते कि सुप्रीम कोर्ट से सजष के बावजष्ूद हत्यारे सालों छुट्टे घूम सकते हैं!’’