Synopsisस्वातंत्रयोत्तर भारत के शिखरस्थ लेखकों में प्रमुख, यशपाल ने अपने प्रत्येक उपन्यास को पाठक के मन-रंजन से हटाकर उसकी वैचारिक समृद्धि को लक्षित किया है ! विचारधारा से उनकी प्रतिबद्धता ने उनकी रचनात्मकता को हर बार एक नया आयाम दिया, और उनकी हर रचना एक नए तेवर के साथ सामने आई !
'अप्सरा का शाप' में उन्होंने दुष्यंत-शकुंतला के पौराणिक आख्यान को आधुनिक संवेदना और तर्कणा के आधार पर पुनराख्यायित किया है ! यशपाल के शब्दों में : 'शकुंतला की कथा पतिव्रत धर्म में निष्ठां की पौराणिक कथा है ! महाभारत के प्रेणता तथा कालिदास ने उस कथा का उपयोग अपने-अपने समय की भावनाओं, मान्यताओं तथा प्रयोजनों के अनुसार किया है ! उन्हीं के अनुकरण में 'अप्सरा का शाप' के लेखक ने भी अपने युग की भावना तथा दृष्टि के अनुसार शकुंतला के अनुभवों की कल्पना की है !'
उपन्यास की केन्द्रीय वस्तु दुष्यंत का शकुन्तला से अपने प्रेम सम्बन्ध को भूल जाना है, इसी को अपने नजरिए से देखते हुए लेखक ने इस उपन्यास में नायक 'दुष्यंत' की पुनर्स्थापना की है और बताया है कि नायक ने जो किया, उसके आधार पर आज के युग में उसे धीरोदात्त की पदवी नहीं दी जा सकती !
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Binding: PaperBack
About the author
यशपाल (3 दिसम्बर 1903 - 26 दिसम्बर 1976 का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते है। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से जनजागरण का काम शुरु किया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1970 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।यशपाल के लेखन की प्रमुख विधा उपन्यास है, लेकिन अपने लेखन की शुरूआत उन्होने कहानियों से ही की। उनकी कहानियाँ अपने समय की राजनीति से उस रूप में आक्रांत नहीं हैं, जैसे उनके उपन्यास। नई कहानी के दौर में स्त्री के देह और मन के कृत्रिम विभाजन के विरुद्ध एक संपूर्ण स्त्री की जिस छवि पर जोर दिया गया, उसकी वास्तविक शुरूआत यशपाल से ही होती है। आज की कहानी के सोच की जो दिशा है, उसमें यशपाल की कितनी ही कहानियाँ बतौर खाद इस्तेमाल हुई है। वर्तमान और आगत कथा-परिदृश्य की संभावनाओं की दृष्टि से उनकी सार्थकता असंदिग्ध है। उनके कहानी-संग्रहों में पिंजरे की उड़ान, ज्ञानदान, भस्मावृत्त चिनगारी, फूलों का कुर्ता, धर्मयुद्ध, तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ और उत्तमी की माँ प्रमुख हैं।