वो मरते मर गया मगर मुग़्लिया शहनशाहियत की ज़िद को बरक़रार रखा। फ़तहपुर सीकरी के सुनसान खंडरों में गोरी दादी का मकान पुराने सूखे ज़ख़्म की तरह खटकता था। कगया ईंट का दो मंज़िला घुटा घुटा सा मकान एक मार…
वो मरते मर गया मगर मुग़्लिया शहनशाहियत की ज़िद को बरक़रार रखा। फ़तहपुर सीकरी के सुनसान खंडरों में गोरी दादी का मकान पुराने सूखे ज़ख़्म की तरह खटकता था। कगया ईंट का दो मंज़िला घुटा घुटा सा मकान एक मार…
बड़ी मुमानी का कफ़न भी मैला नहीं हुआ था कि सारे ख़ानदान को शुजाअ’त मामूँ की दूसरी शादी की फ़िक्र डसने लगी। उठत बैठते दुल्हन तलाश की जाने लगी। जब कभी खाने पीने से निमट कर बीवियाँ बेटियों की बरी…
“तो ये है तुम्हारी क़ब्र आपा… लाहौल-व-ला-क़ुव्वत…” वहीद ने अच्छा भला लंबा सिगरेट फेंक कर दूसरा सुलगा लिया। कोई और वक़्त होता तो जमीला उससे बुरी तरह लड़ती उसे यही बुरा लगता था कि सिगरेट सुलगाली जाये और पी ना…
एक ज़माना था जब मेरा ख़याल था कि दुनिया में बच्चे के सबसे बड़े दुश्मन उसके माँ बाप और भाई-बंद होते हैं। वो उसके दिल की बात समझने की कोशिश नहीं करते। बेजा ज़बर-दस्तियों से उसकी उभरती हुई ताक़तों को…
उसकी सांस फूली हुई थी। लिफ़्ट ख़राब होने की वजह से वो इतनी बहुत सी सीढ़ियाँ एक ही साँस में चढ़ आई थी। आते ही वो बेसुध पलंग पर गिर पड़ी और हाथ के इशारे से मुझे ख़ामोश रहने को…
सहदरी के चौके पर आज फिर साफ – सुथरी जाजम बिछी थी। टूटी – फूटी खपरैल की झिर्रियों में से धूप के आडे – तिरछे कतले पूरे दालान में बिखरे हुए थे। मोहल्ले टोले की औरतें खामोश और सहमी हुई…
सबके चेहरे उड़े हुए थे। घर में खाना तक न पका था। आज छठा दिन था। बच्चे स्कूल छोड़े, घर में बैठे, अपनी और सारे परिवार की जिंदगी बवाल किये दे रहे थे. वही मारपिताई, धौल धप्पा वही उधम, जैसे…
जब लोहे के चने चब चुके तो ख़ुदा ख़ुदा करके जवानी बुख़ार की तरह चढ़नी शुरू हुई। रग-रग से बहती आग का दरिया उमड़ पड़ा। अल्हड़ चाल, नशे में ग़र्क़, शबाब में मस्त। मगर उसके साथ-साथ कुल पाजामे इतने छोटे…
जब तक कॉलेज सर पर सवार रहा, पढ़ने-लिखने से फुर्सत ही न मिली जो साहित्य की ओर ध्यान दिया जाता। और कॉलेज से निकलकर बस दिल में यही बात बैठ गयी कि हर वह चीज़ जो दो साल पहले लिखी…
नन्ही की नानी का मां बाप का नाम तो अल्लाह जाने किया था. लोगों ने कभी उन्हें उस नाम से याद ना किया. जब छोटी सी गलियों में नाक सुड़-सुड़ाती फिरती थीं तो बफ़ातन की लौंडिया के नाम से पुकारी…