शहर में आए दिन साहित्यिक और गैर साहित्यिक जमावड़े होते ही रहते हैं। शुरू-शुरू में मुझे बहुत तकलीफ होती थी कि मुझे किसी ऐसे आयोजन के लिए बुलावा क्यों नहीं आता। मैं बैठा कुढ़ता रहता कि देखो, सारा शहर साहित्य…
शहर में आए दिन साहित्यिक और गैर साहित्यिक जमावड़े होते ही रहते हैं। शुरू-शुरू में मुझे बहुत तकलीफ होती थी कि मुझे किसी ऐसे आयोजन के लिए बुलावा क्यों नहीं आता। मैं बैठा कुढ़ता रहता कि देखो, सारा शहर साहित्य…
पुल की बात करते ही बचपन का एक पुल याद आता हैजो नानी घर जाने के रास्ते में आया करता थाइतना संकरा और इतना कमजोर कि एक रिक्शा भी गुजरता तो हिल पड़ता थाउसपर से गुजरते मैं हमेशा भय से…
घर के सबसे उपेक्षित कोने में बरसों पुराना जंग खाया बक्सा है एक जिसमें तमाम इतिहास बन चुकी चीज़ों के साथ मथढक्की की साड़ी के नीचे पैंतीस सालों से दबा पड़ा है माँ की डिग्रियों का एक पुलिंदा बचपन में…
"दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है. इसका प्रयोग महत्वाकांक्षी खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं. इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया था. यह भीड़ धार्मिक उन्मादियों के…
उस देश का यारो क्या कहना? और क्यों कहना? कहने से बात बेकार बढ़ती है। इसीलिए उस देश का बड़ा वजीर तो कुछ कहता ही नहीं था। कहना पड़ जाता था तो पिष्टोक्तियों में ही बोलता था। पिष्टोक्तियों से कोई…
एक क़त्ल की उस सर्द अँधेरी रात हसन-हुसैन की याद में छलनी सीनों के करुण विलापों के बीच जिस अनाम गाँव में जन्मा मैं किसी शेष नाग के फन का सहारा हासिल नहीं था उसे किसी देव की जटा से…
चील ने फिर से झपट्टा मारा है। ऊपर, आकाश में मँडरा रही थी जब सहसा, अर्धवृत्त बनाती हुई तेजी से नीचे उतरी और एक ही झपट्टे में, मांस के लोथड़े को पंजों में दबोच कर फिर से वैसा ही अर्द्धवृत्त…
आज मिस्टर शामनाथ के घर चीफ की दावत थी। शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को पसीना पोंछने की फुर्सत न थी। पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने, उलझे हुए बालों का जूड़ा बनाए मुँह पर फैली हुई सुर्खी और पाउड़र को मले और…
खाट की पाटी पर बैठा चाचा मंगलसेन हाथ में चिलम थामे सपने देख रहा था। उसने देखा कि वह समधियों के घर बैठा है और वीरजी की सगाई हो रही है। उसकी पगड़ी पर केसर के छींटे हैं और हाथ…
घुमक्कड़ी के दिनों में मुझे खुद मालूम न होता कि कब किस घाट जा लगूँगा। कभी भूमध्य सागर के तट पर भूली बिसरी किसी सभ्यता के खंडहर देख रहा होता, तो कभी यूरोप के किसी नगर की जनाकीर्ण सड़कों पर…