एक शहर में मेरी रिहायश को सोलहवाँ साल लगा है पर यह उम्र का वह सोलह नहीं जहाँ से एक दुनिया बननी शुरू होती है इस सोलहवें में एक शहर के हिस्से लिखे जा चुके हैं : मेरे जीवन के…
एक शहर में मेरी रिहायश को सोलहवाँ साल लगा है पर यह उम्र का वह सोलह नहीं जहाँ से एक दुनिया बननी शुरू होती है इस सोलहवें में एक शहर के हिस्से लिखे जा चुके हैं : मेरे जीवन के…
लौटना सिर्फ़ एक शब्द मात्र नहीं है इसके उच्चारण भर से लौटता है एक इतिहास अव्यस्थित हो जाता है एक भूगोल लौटते हुए तुम खोजते हो तुम्हारे पदचापों की पहचान से भरी पगडंडियाँ पर वे सब की सब या तो…
गाँव के सीमांत पर सदियों से खड़ा था एक बूढ़ा बरगद— किसी औघड़-सा अपनी जटाएँ फैलाएँ अपने गर्भ में सहेजे था एक देवता-स्त्री को यह रक्षक स्त्री है तो गाँव सलामत है, ऐसा कहते कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं उसके खोंइछे…
जबकि हममें से कइयों को इस बात पर भी दुविधा हो सकती है कि हम प्रेम की संतानें हैं या नफ़रत की या किसी रात एक दिनचर्या या अनिच्छा से ही गुज़रते हुए हमें सँजो लिया गया अपने गर्भ में…
वहाँ किसी को जीतना नहीं है हार दोनों की तय है प्रेम के उत्कट क्षण ख़ुद को ख़ाली करता हुआ एक उन्मत्त, अधीर उसे ख़ुद में समेट लेने को व्याकुल प्रणयी बाँहें वक्ष, उदर, ग्रीवा, पृष्ठ, भुजाएँ आँखें, चिबुक, कर्ण…
वह जो असाधारण स्त्री है वह तुम्हारे प्रेम में पालतू हो जाएगी उसे रुचिकर लगेगी वनैले पशुओं-सी तुम्हारी कामना रात्रि के अंतिम प्रहर में तुम्हारे स्पर्श से उग आएगी उसकी स्त्री पर उसे नहीं भाएगा यह याद दिलाए जाना सूर्य…
वह कस कर जकड़ता है उसे अपने बाज़ुओं में और चाहता है कि प्रेयसी की देह पर छूट गए अनगिनत नील निशानों को आने वाले दिनों के लिए सहेज लिया जाए जब शेष हो अनुपस्थिति की नमी उसके आतुर होंठ…
अस्पर्श स्त्री अपनी योनि में रहती है यह नानी ने अपनी माँ से सुना था उन्होंने पहले माँ और फिर मुझे इतने कपड़ों में लपेटा कि धूप, हवा, बारिश सबसे अछूती रही वह मालिश के दौरान भी भले ही खुली…
सोचती हूँ कि तुम्हें एक घर तोड़ने का इल्ज़ाम दूँ या कि उस पुरुष के कहीं रिक्त रह गए हृदय को भरने का श्रेय जो घर गृहस्थी के झमेलों में शायद मेरे प्रेम को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाया…
माँ के लिए लिखी हर कविता में तुम एक अघोषित खलनायक थे पिता तुम्हारी बोली के कई शब्दों को मैंने अपने शब्दकोश से बहिष्कृत कर दिया है क्योंकि वे मेरे भाषा-घर में नहीं समाते थे और तन कर खड़ी हो…