प्रेम-घातों को किससे कहे लड़की वह इश्क़ लिखे तो काग़ज़ पर फ़रेब उगे रोना मुफ़ीद नहीं किसी के सामने प्याज़ काटने का बहाना हो या नल की धार बहती हो बंद दरवाज़े के पार 85 नंबर की बस में रात…
प्रेम-घातों को किससे कहे लड़की वह इश्क़ लिखे तो काग़ज़ पर फ़रेब उगे रोना मुफ़ीद नहीं किसी के सामने प्याज़ काटने का बहाना हो या नल की धार बहती हो बंद दरवाज़े के पार 85 नंबर की बस में रात…
जागते दिनों की तमाम साज़िशों के बाद नींद एक मरहम है यह हौले से आकर चुपचाप भरती है आग़ोश में माँ-सी थपकियाँ देती है और हम एक मौत ओढ़कर सो जाते हैं मृत्यु के इन नितांत निजी पलों में कल…
कुछ लोगों का कोई देश नहीं होता इस पूरी पृथ्वी पर ऐसी कोई चार दीवारों वाली छत नहीं होती जिसे वे घर बुला सकें ऐसा कोई मानचित्र नहीं जिसके किसी कोने पर नीली स्याही लगा वह दिखा सकें अपना राज्य…
आषाढ़ के एक दिन में हृदय में कोई नाम बारिशों-सा हल्का काग़ज़ पर लिखना चाहूँ तो एक भारी पत्थर पानी-सी बहती है अडेल की आवाज़ : बारिशों को आग लगा दो… और कहीं एक तपता रेगिस्तान रो देता होगा संसार…
एक पुरुष ने लिखा दुखऔर यह दुनिया भर के वंचितों की आवाज़ बन गयाएक स्त्री ने लिखा दुःखयह उसका दिया एक उलाहना था एक पुरुष लिखता है सुखवहाँ संसार भर की उम्मीद समाई होती हैएक स्त्री ने लिखा सुखयह उसका…
उस घर से जाते हुए अंजुलि भर अन्न लेनाऔर पीछे की ओर उछाल देनापलट कर मत देखना पुत्री, बँध जाओगीतुम अन्न बिखेरो, पिता-भाई को धन-धान्य का सौभाग्य सौंपोऔर आगे बढ़ जाओख़ुद को यहाँ मत रोपनाहमने तुम्हें हृदय में सहेज लिया…
हम स्मृतियों में लौटते हैं क्योंकि लौटने के लिए कहीं कुछ और नहीं वे सभी जगहें जहाँ हम जा सकते थे हमारी पहुँच से थोड़ा आगे बढ़ चुकी हैं या इतना पीछे छूट गई हैं कि हमारे पैर नहीं नाप…
इस अनिश्चित जीवन में स्थायी बस सहेज लिए गए दुःख हैं वह रौशनी के लिए खोलती है खिड़कियाँ बाहर पत्थर उसकी प्रतीक्षा में रहते हैं सुख बाईं आँख में भूल से पड़ आया एक कंकड़ है जो ढेर सारे पानी…
पूर्वार्द्ध मैंने अपनी देह सहेजीऔर आत्मा को प्रताड़ित कियाउसे अक्सर विषाद के खौलते तेल में तड़पता छोड़ दिया या आँसुओं के खारेपन में डूब जाने दिया,स्मृतियों के गहन वन में भटकतीवह भूलती गई वापसी का रास्ता, अपना अनंत संगीत विस्मृत…
किसी कामनावश नहीं मिले थे उनके होंठ सदियों से अतृप्त थीं वे शताब्दियों से निर्वासित देवों के हृदय से जिनकी शय्या पर बिछाई जाती रहीं फूलों की तरह और मसल कर फेंकी जाती रहीं भोगा गया तन अनछुई रही आत्मा…