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खुशवंत सिंह
Persona / Writer

खुशवंत सिंह, एक सम्पूर्ण जीवन

सुप्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार, खुशवंत सिंह जितने लोकप्रिय हिंदुस्तान में थे, उतने ही पाकिस्तान में रहे।

खुशवंत सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर हर काल खंड की राजनीतिक उठा पटक देखी। एक पत्रकार के रूप में उन्होंने सबसे लम्बी पारी खेली। उन्होंने पारम्परिक पत्रकारिता को एक नवीन रूप दिया। 1951 में वे आकाशवाणी से जुड़े और 1951 से 1953 तक भारत सरकार की मासिक पत्रिका योजना की शुरुआत और संपादन किया। मुंबई से प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साप्ताहिक ‘इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया’ और ‘न्यू डेल्ही’ का भी उन्होंने संपादन किया। दिल्ली के दौर में वे प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के संपादक रहे।

एक राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर वे हमेशा प्रासंगिक बने रहे। उनके बेअदब लेकिन व्यंग्यपूर्ण अंदाज़ ने उन्हें हर दिल अजीज़ बनाया।

खुशवंत सिंह के व्यक्तित्व का दायरा इतना बड़ा था कि उसका लाभ भारत सरकार ने भी उठाया। वे कुछ समय विदेश मन्त्रालय में भी सक्रिय रहे। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे।

खुशवंत सिंह, एक चिर-प्रासंगिक कथाकार

खुशवंत सिंह आज भी मुख्यतः एक कथाकार के रूप में याद किये जाते हैं। उपन्यास एवं कहानियों के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय योगदान है। साथ-ही-साथ उनका व्यंग्य एवं इतिहास के क्षेत्र में भी योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है। संस्मरण (मेमॉयर) एवं आत्मकथा लेखन में उन्होंने नए प्रयोग किये एवं खुल कर लिखा।

एक विचारक के तौर पर उन्होंने अपने आप को कभी पुराने विचारों से ग्रस्त नहीं होने दिया और बहुत सी मजेदार रचनाएँ की। दो खंडों में प्रकाशित ‘सिक्खों का इतिहास’ उनकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है। साहित्य के क्षेत्र में खुशवंत सिंह ने जीवन पर्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

सेक्स, और धर्म जैसे संवेदनशील विषयों पर खुशवंत सिंह ने जिस खुलेपन से लिखा शायद ही किसी और ने लिखा हो। हालाँकि इस वजह से वे आलोचना के केंद्र में बने रहे। खुशवन्त सिंह के उपन्यासों में प्रसिद्ध हैं – ‘डेल्ही’, ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’, ‘दि कंपनी ऑफ़ वूमन’। इसके अलावा उन्होंने लगभग 100 महत्वपूर्ण किताबें लिखी।

यहाँ प्रस्तुत हैं खुशवंत सिंह की कुछ कृतियाँ:

औरतें

यह एक सेक्स की तलाश में भटकते हुए आदमी की कहानी है। अपनी विषयवस्तु के कारण यह पुस्तक बहुत चर्चा में रही और आज भी खुशवंत सिंह की प्रसिद्द कृतियों में गिनी जाती है। सेक्स का खुलकर चित्रण करने के लिए एक 85-वर्षीय लेखक को ही आगे आना पड़ा, यह बात भारतीय साहित्यिक जगत की विषयवस्तुओं को लेकर साहस की कमी को भी इंगित करती है। खुशवन्त सिंह ने अनेक धर्मों-ईसाई, मुस्लिम, हिन्दू, बौद्ध और सिख-की स्त्रियों से नायक मोहनकुमार का सम्बन्ध कराया है।

सनसेट क्लब

पंचानवे वर्ष की उम्र में खुशवंत सिंह की यह उपन्यास लिखने की कोई मंशा नहीं थी। लेकिन उनके अंदर का लेखक कुछ लिखने को कुलबुला रहा था, और जब उनकी एक मित्र ने उन्हें अपने दिवंगत दोस्तों की यादों को शब्दों में गूंथने की सलाह दी तो उन्हें यह बात जम गई, और पुरानी यादों में कल्पनाओं के रंग भरकर बना ‘सनसेट क्लब’। तीन उम्रदराज दोस्त हर शाम दिल्ली के लोदी गार्डन सैर के लिए आते हैं। बाग में लगी एक बेंच उनका अड्डा है जहाँ वे रोज कुछ देर गपशप करके अपनी जीवन-संध्या में रंग भरने की कोशिश करते हैं।

मेरा लहूलुहान पंजाब

बैसाख की पहली तिथि पंजाबी पंचांग के अनुसार नववर्ष दिवस के रूप में मनाई जाती है। इसी दिन 13 अप्रैल, 1978 को जरनैल सिंह भिंडरावाले ने धूम-धड़ाके से पंजाब के रंगमंच पर पदार्पण किया। इस घटना से न केवल पंजाब के जन-जीवन में तूफान आया बल्कि पूरे देश के लिए इसके दूरगामी परिणाम हुए। पूरा पंजाब अशांत और आतंकवाद के हाथों क्षत-विक्षत हो गया और धीरे-धीरे यह समस्या इतनी पेचीदा बन गई कि देश की एकता के लिए यह सचमुच का खतरा बनती दिखाई दी। यह पुस्तक इस समस्या का इतिहास दर्शाती है, स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद पंजाबियों के गिले-शिकवों और असंतोष का विवरण देती है, और सभी प्रमुख घटनाओं पर रोशनी डालती है। लेखक का व्यक्तिगत जुड़ाव पुस्तक को विशेष प्रमाणिकता प्रदान करता है, जो लगभग इसके प्रत्येक पृष्ठ पर प्रकट है।

मेरा भारत

इस पुस्तक में खुशवंत सिंह ने भारत के गौरवशाली इतिहास, आरम्भिक काल से वर्तमान समय तक के देश व देशवासियों की दास्तान, जन-जीवन, कला, संगीत, पर्व-त्यौहार तथा राजनीति-सभी को बेहद रोचक ढंग से प्रवाहपूर्ण भाषा में कलमबद्ध किया है। यह पुस्तक जहाँ एक ओर पाठकों को भारत के विषय में नई जानकारियाँ देती है, वहीं दूसरी और धाराप्रवाह लेखन से आकर्षित भी करती है।

सच प्यार और थोड़ी सी शरारत

खुशवंत सिंह की आत्मकथा सिर्फ़ आत्मकथा नहीं, अपने समय का बयान है। एक पत्रकार की हैसियत से उनके सम्पर्कों का दायरा बहुत बड़ा रहा है। इस आत्मकथा के माध्यम से उन्होंने अपने जीवन के राजनीतिक, सामाजिक माहौल की पुनर्रचना तो की ही है, पत्रकारिता की दुनिया में झाँकने का मौका भी मुहैया किया है। भारत के इतिहास में यह दौर हर दृष्टि से निर्णायक रहा है। इस प्रक्रिया में न जाने कितनी जानी-मानी हस्तियाँ बेनकाब हुई हैं और न जाने कितनी घटनाओं पर से पर्दा उठा है। ऐसा करते हुए खुशवंत सिंह ने हैरत में डालनेवाली साहसिकता का परिचय दिया है। खुशवंत सिंह यह काम बड़ी निर्ममता और बेबाकी के साथ करते हैं। खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में औरों के साथ उन्होंने खुद को भी नहीं बख़्शा है। वक्त के सामने खड़े होकर वे उसे पूरी तटस्थता से देखने की कामयाब कोशिश करते हैं। इस कोशिश में वे एक हद तक खुद अपने सामने भी खड़े हैं – ठीक उसी शरारत-भरी शैली में जिससे ‘मैलिस’ स्तम्भ के पाठक बखूबी परिचित हैं, जिसमें न मुरौवत है और न संकोच। उनकी जिंदगी और उनके वक्त की इस दास्तान में ‘थोड़ी-सी गप है, कुछ गुदगुदाने की कोशिश है, कुछ मशहूर हस्तियों की चीर-फाड़ और कुछ मनोरंजन’ के साथ बहुत-कुछ जानकारी भी।

50 Word Edit on Khushwant Singh

The Books of Khushwant Singh portray a life well-lived. Khushwant Singh books like The Portrait of a Lady speak as much about Khushwant Singh’s literary acumen as the irreverence that came to symbolize his body of work, and ultimately the entire Khushwant Singh biography. India will always celebrate Khushwant Singh.

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