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Dharamvir Bharati
Literature / Persona / Review / Writer

सूरज का सातवाँ घोड़ा, धर्मवीर भारती की एक कालातीत रचना

धर्मवीर भारती का यह प्रयोगात्मक उपन्यास उनके साहित्यिक जीवन की वो कड़ी है जो उन्हें समय की बाध्यता से मुक्त कर सूर्य के सदैव गतिमान एवं चिर-युवा अश्व का रूप देती है जो हिंदी साहित्य के रथ में सबसे आगे बंधा है।

मैं लिख-लिखकर सीखता चल रहा हूँ और सीख-सीखकर लिखता चल रहा हूँ.

धर्मवीर भारती

निष्कर्ष, जीवन का वह सत्य है जो हम स्वयं के लिए गढ़ते हैं। लेकिन क्या प्रेम में निष्कर्ष निकालना और उस पर अपने जीवन का विस्तार करना संभव है? सूरज का सातवां घोड़ा, हिंदी साहित्य का एक ऐसा प्रयोगात्मक उपन्यास है जो इस प्रश्न की खोज में निकला है। अभी भी निकला हुआ है? क्या सच में एक उपन्यास एक बार लिख दिए जाने या पढ़ लिए जाने पर खत्म हो जाता है? शायद वो किताबें जिनमें कुछ ऐसा निष्कर्ष निकलता हो जिसे हम सभी स्वीकारते हैं, पढ़ते ही खत्म हों जाती हों। लेकिन यहाँ हम अपने अपने सत्य की बात कर रहे हैं जो इस उपन्यास को जीवंत बनाती है।

धर्मवीर भारती की यह किताब निष्कर्षवादी दृष्टिकोण रखने वाले एक ऐसे ही अनोखे व्यक्ति के बारे में है, जिनका नाम है माणिक मुल्ला। माणिक मुल्ला कौन हैं, कहाँ से आते हैं, जैसा सोचते हैं वैसा क्यों सोचते हैं, इन सब सवालों के जवाब उपन्यास की शुरुआत में ही धर्मवीर भारती ने बड़े भोलेपन के साथ हमें बड़ी अनभिग्यता के साथ दिए हैं।

मुल्ला उनका उपनाम नहीं, जाति थी। कश्मीरी थे। कई पुश्तों से उनका परिवार यहाँ बसा हुआ था, वे अपने भाई और भाभी के साथ रहते थे। भाई और भाभी का तबादला हो गया था और वे पूरे घर में अकेले रहते थे। इतनी सांस्कृतिक स्वाधीनता और कम्युनिस्म एक साथ उनके घर में थी कि यद्यपि हम लोग उनके घर से बहुत दूर रहते थे, लेकिन वहीँ सबका अड्डा जमा करता था। हम सब उन्हें गुरुवत मानते थे और उनका भी हम सबों पर निश्छल प्रगाढ़ स्नेह था। वे नौकरी करते हैं ये पढ़ते हैं, नौकरी करते हैं तो कहाँ, पढ़ते हैं तो क्या पढ़ते हैं – यह भी हम लोग नहीं जान पाये।

-पुस्तक के उपोद्घात में

किताब, माणिक मुल्ला द्वारा बताई गई कहानियों में विभाजित है। इन कहानियों के जीवंत और जीवित किरदार अपना-अपना सम्पुट लगाए पूरे उपन्यास को एक धरातल पर लाने का काम करते हैं।

जमुना के अल्हड़पन, लिली के स्नेह, सत्ती की ममता, तन्ना की ईमानदारी, रामधन की वफादारी, महेसर की धूर्तता व माणिक मुल्ला के जीवन की उठा-पटक से सुस्सजित, धर्मवीर भारती की भाषा से परिष्कृत यह लघु उपन्यास न केवल निम्न-मध्यम वर्ग के समक्ष खड़ी समस्याएं अपने ही अंदाज़ में इंगित करता है परन्तु प्रेम की समाज, अर्थ एवं देशकाल पर निर्भरता भी बखूबी बयां करता है।

यूँ तो कहानी के मूल में लम्बी-लम्बी जड़ें हैं, लेकिन जड़ों के सहारे खड़ा पेड़ जीवन से परिपूर्ण उसी तरह महकता है जैसे रात्रिकाल में रात की रानी। कुछ जानी पहचानी, कुछ अधूरी-सी, मन का बोझ हल्का करती सुगंध, इन कहानियों में एक बयार की तरह बहती है। ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’, अपने प्रतीकात्मक मायने से दूर एक ऐसी अविरल संभावना है जो अपने आप में पूर्ण होते हुए भी एक जड़ मानवीय अधूरेपन को गढ़ती है।

माणिक मुल्ला का बौद्धिक जीवटता से ग्रस्त जीवन, उतना ही पूर्ण दिखाई देता है जितना अपूर्ण। उसके द्वारा सुनाई गई हर कहानी के आस पास मंडराता प्रायश्चित उतना ही निजी महसूस होता है जितना मौलिक। एक निरीह से अंधियारे से बाहर झांकता कहानी का मुख्य किरदार माणिक मुल्ला, किसी न किसी दरवाज़े पर खड़ा आपके जीवन का हर मौसम में आने वाला वो अतिथि है जो शायद कभी आपसे सीधा आँखें मिला के बात न करे पर बात कुछ निहित सच्चाई वाली कहता रहे।

अगर पुस्तक से पाठक की ओर देखा जाये तो आप पायेंगे कि ये कहानी सूरज के उस घोड़े की है जो हम सब में मौजूद है, हमारा एक ऐसा अंश जो सदा अपने नयेपन पर इठलाता है. चाहे तन्ना की जीवनभर की कायरता हो, या जमुना का निरंतर सांसारिक होता जीवन, ये कहानी उस बदलाव की है जो हमारे मूल भाव से पृथक हम सब में निरंतर गतिशील है।

जीवन का कहानी बन जाना और कहानी का जीवन हो जाना अगर मानवीय मूल्यों में किसी ने सफलता से प्रतिपादित किया है तो वो हैं धर्मवीर भारती। यूँ तो हर लेख अपने आप में अपने लेखक के जीवन का परिदृश्य होता है, लेकिन इस लघु उपन्यास में माणिक मुल्ला, धर्मवीर भारती के बेहद निकट दिखाई देते हैं।

पर कोई न कोई चीज़ ऐसी है जिसने हमेशा अँधेरे को चीरकर आगे बढ़ने, समाज-व्यवस्था को बदलने और मानवता के सहज मूल्यों को पुनः स्थापित करने की ताकत और प्रेरणा दी है। चाहे उसे आत्मा कह लो, चाहे कुछ और। और विश्वास, साहस, सत्य के प्रति निष्ठा, उस प्रकाशवाही आत्मा को उसी तरह आगे ले चलते हैं जैसे सात घोड़े सूर्य को आगे बढ़ा ले सकते हैं।

-माणिक मुल्ला

अनुभव, इतिहास एवं नितांत मानवीयता के तीन खम्भों पर खड़ा, भविष्य के सपने दिखाता व वर्तमान को नए सिरे से खोजता यह सूरज का सदैव तरुण सातवां घोड़ा निरंतर अग्रसर है, ‘जीवन गीत’ गाते हुए नए पड़ावों की ओर.

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