सैयदा परवीन शाकिर पाकिस्तान की उन कवयित्रियों में से एक हैं जिनके शेरों में लोकगीत की सादगी और लय भी है और क्लासिकी संगीत की नफ़ासत भी और नज़ाकत भी। परवीन शाकिर नज़्में और ग़ज़लें भोलेपन और सॉफ़िस्टीकेशन का दिलआवेज़ संगम है। पाकिस्तान की इस मशहूर शायरा ने जब 1982 में सेंट्रल सुपीरयर सर्विस की लिखित परीक्षा दी तो उस परीक्षा में उन्हीं पर एक सवाल पूछा गया था जिसे देखकर वह आत्मविभोर हो गई थी।
परवीन शाकिर ने बहुत ही कम उम्र में लिखना शुरू कर दिया था। मोहब्बत और औरत उनकी शायरी के खास पहलू हैं। उनकी शायरी में औरत इज़हारे मोहब्बत करती हुई, अपने गीतों में अपने महबूब को बयान और याद करती हुई औरत नज़र आती है।
परवीन शाकिर की की कविताओं में एक लड़की के ‘बीवी’, ‘मां ‘ और एक ‘औरत’ तक का सफर दिखता है। उन्होंने वैवाहिक प्रेम के जितने आयामों को छुआ है उतना कोई पुरुष कवि चाह कर भी नहीं कर पाया है। उन्होंने बेवफ़ाई, वियोग और तलाक जैसे विषयों को छुआ है।
एक नज़्म में उन्होंने अपने युवा बेटे को संबोधित करते हुए लिखा है कि उसे इस बात पर शर्म नहीं आनी चाहिए कि उसे एक शायरा के बेटे के रूप में जाना जाता है न कि एक पिता के बेटे के रूप में। उन्होंने उर्दू शायरी में एक औरत की मौजूदगी को मज़बूती के साथ दर्ज कराया।
पेश हैं पाकिस्तान की मक़बूल शायराओं में शुमार परवीन शाकिर की मशहूर ग़ज़लें
पूरा दुख और आधा चांद
पूरा दुख और आधा चांद
हिज्र की शब और ऐसा चांद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चांद
मेरी करवट पर जाग उठे
नींद का कितना कच्चा चांद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चांद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चांद
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की
तेरा पहलू तिरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की
उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
तेरी ख़ुश्बू का पता करती है
तेरी ख़ुश्बू का पता करती है
मुझ पे एहसान हवा करती है
शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
गुफ़्तगू तुझ से रहा करती है
दिल को उस राह पे चलना ही नहीं
जो मुझे तुझ से जुदा करती है
ज़िन्दगी मेरी थी लेकिन अब तो
तेरे कहने में रहा करती है
उस ने देखा ही नहीं वर्ना ये आँख
दिल का एहवाल कहा करती है
बेनियाज़-ए-काफ़-ए-दरिया अन्गुश्त
रेत पर नाम लिखा करती है
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
कूचा-ए-जाँ में सदा करती है
मुझ से भी उस का है वैसा ही सुलूक
हाल जो तेरा अन करती है
दुख हुआ करता है कुछ और बयाँ
बात कुछ और हुआ करती है
अब्र बरसे तो इनायत उस की
शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है
मसला जब भी उठा चिराग़ों का
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है
मुश्किल है अब शहर में निकले कोई घर से
मुश्किल है अब शहर में निकले कोई घर से
दस्तार पे बात आ गई है होती हुई सर से
बरसा भी तो किस दश्त के बे-फ़ैज़ बदन पर
इक उम्र मेरे खेत थे जिस अब्र को तरसे
इस बार जो इंधन के लिये कट के गिरा है
चिड़ियों को बड़ा प्यार था उस बूढ़े शज़र से
मेहनत मेरी आँधी से तो मनसूब नहीं थी
रहना था कोई रब्त शजर का भी समर से
ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में
मैं भीड़ में गुम हो गई तन्हाई के डर से
बेनाम मुसाफ़त ही मुक़द्दर है तो क्या ग़म
मन्ज़िल का त’य्युन कभी होता है सफ़र से
पथराया है दिल यूँ कि कोई इस्म पढ़ा जाये
ये शहर निकलता नहीं जादू के असर से
निकले हैं तो रस्ते में कहीं शाम भी होगी
सूरज भी मगर आयेगा इस राह-गुज़र से
डॉक्टर नसीर अली से परवीन शाकिर की शादी डॉक्टर हुई , इनका एक बेटा मुराद अली भी है. डॉक्टर नसीर से बाद में उन्होंने तलाक ले लिया. 26 दिसंबर 1994 को एक रोड एक्सीडेंट में 42 साल की उम्र में परवीन शाकिर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। इस्लामाबाद में जिस सड़क पर उनका निधन हुआ उस सड़क को उन्हीं का नाम परवीन शाकिर रोड’ दिया गया।
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