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लिफ्ट प्लीज़
Memoirs

लिफ्ट प्लीज़

खबर मजेदार है। अपनी मुम्बई भी अक्खी दुनिया में निराली नगरी है। यहाँ की समस्याएँ जितनी निराली होती हैं, उनके समाधान भी उतने ही मज़ेदार होते हैं। अब यही ट्रैफिक की समस्या को ही ले लो। दुनिया भर में है यह समस्या और नित इससे निपटने के नए-नए उपाय भी खोजे ही जाते हैं, लेकिन अपनी मुम्बई में, लम्बाई में कोई पचास किलोमीटर लम्बी और चौड़ाई में सड़क-भर चौड़ी इस समस्या का क्या खूब समाधान खोजा है अपने नगर पुत्रों ने। बिलकुल एक्सपोर्ट क्वालिटी का आइडिया है। इससे पहले कि विदेशियों की काली नजर इस पर पड़े, हमारे आइडियाबाज़ों को चाहिए कि जल्दी से इसका पंजीकरण करवा लें। समन्दर के तट पर सूखते लंगोट-सी पसरी अपनी इस मायानगरी में साली जगह की बहुत मारामारी है। आपकी औकात दस कारें खरीदने की हो सकती है, लेकिन उसे चलाएँ कहाँ और पार्क कहाँ करें । फोर्ट एरिया में मेरा एक दोस्त जब मुझे मिलने आया करता था, तो उसका ड्राइवर उससे कहता था कि आप अपने दोस्त से मिलकर आइए, मैं आपको यहीं हार्निमन सर्कल के चक्कर काटता हुआ मिल जाऊँगा। कहीं पार्क करने की जगह मिल गई तो ठीक, वरना पैट्रोल की ही तो बात है। 

अपनी बम्बई में ट्रैफिक की गति और मात्रा का यह आलम है कि सड़क पार करने के लिए इंतज़ार करने के बजाय, मरकर, सड़क के दूसरी तरफ दोबारा जन्म लेना फायदेमंद रहेगा। वक्त तो बचेगा ही, शायद बेहतर जीवन भी मिल जाए। तो, हमारी इसी विकराल समस्या का क्या खूब तोड़ निकाला है अपुन के माइ-बाप ने खाली गाड़ी को शहर में घुसने ही मत दो। अपने शहर की गरीबी और अमीरी के बीच साला इतना फासला है कि सिर्फ पाँच टका लोक इतना गाड़ी खरीद सकता है कि बाकी पिचानवे बाप ने खाली गाड़ी को शहर में घुसने ही मत दो। अपने शहर की गरीबी और अमीरी के बीच साला इतना फासला है कि सिर्फ पाँच टका लोक इतना गाड़ी खरीद सकता है कि बाकी पिचानवे टका लोक को अपनी गाड़ी धोने के काम पर लगा ले। तो येई पाँच टका लोक ही सारी मुसीबत को जड़ है। ये लोक अपने अकेले के वास्ते ये लम्बा-लम्बा गाड़ी लेके चलता है कि जैसे पूरी सड़क का पट्टा अभी-अभी लिखवा के ला रहे हों। ये लोग अपनी गाड़ी पर काले शीशे लगवा के रखते हैं, ताकि कोई लिफ्ट न मांग ले।

लेकिन अब येई ठंडी गाड़ी और गर्म दिमाग वाले बड़े लोग एक-एक बस स्टॉप के आगे अपनी गाड़ी रोककर आवाज लगाया करेंगे-चर्च गेट चार सवारी, नरीमन पाइंट तीन सवारी, एकदम मुफ्त। अभी ये किसी की तरफ देखते तक नहीं और अब हालत यह हो जाएगो कि हाथ जोड़-जोड़कर लोगों से विनती करेंगे – आप हमारी गाड़ी में चलिए। जहाँ कहेंगे छोड़ देंगे। वरना पसरीचा साहब हमारी गाड़ी यहीं माहिम या सायन पर रोक लेंगे और हमें भी आपके साथ इसी स्टॉप पर खड़े होकर बस का इंतजार करना पड़ेगा। 

कल्पना कीजिए।  क्या सीन होगा, माहिम और सायन सर्कल पर एक से एक बड़ कर एक खूबसूरत गाड़ी वाले अपनी-अपनी गाड़ी भरने के लिए भिखारियों तक को मुफ्त में नगर भ्रमण कराने के लिए होड़ लगाएंगे। कोई आने के लिए राजी नहीं होगा, तो लालच दिए जाएँगे, छीना-झपटी होगी, हो सकता है जनता जूतम पैजार के नजारे भी देखने को मिल जाएँ। इस तरह लिफ्ट पाने वाले शर्त रखेंगे – शाम को हमारे ऑफिस से हमें पिक-अप भी करना होगा, तभी चलेंगे।

पसरीचा साहब अपने बहुत कड़क आदमी हैं। एक बार कानून बन गया कि शहर में किसी को भी खाली गाड़ी नहीं लाने दी जाएगी, तो वे किसी का भी लिहाज करने वाले नहीं, चाहे गाड़ी में माधुरी दीक्षित हों, परमेश्वरी गोदरेज या फिर अपने परिवहन मंत्री जी ही क्यों न हों। 

वैसे देखा जाए तो तरीका तो अच्छा सोचा है साहब लोगों ने। सुनते हैं, नरीमन पाइंट पर एक-एक कार की पार्किंग की जगह की कीमत का की कीमत से भी दस गुना ज्यादा है। अब शहर में गाड़ियाँ घुसने ही नहीं दी जाएंगी, तो कीमतों में कुछ तो कमी आएगी। ट्रैफिक कम होगा, तो हॉर्न कम बजेंगे। प्रदूषण कम होगा। समय भी कम लगेगा। लोग-बाग जल्दी घर पहुंच जाया करेंगे। वक्त ज्यादा मिलेगा, तो टीवी देखेंगे। टीवी देखकर बोर होंगे। बोर होने पर मन बहलाव के लिए बाहर निकलेंगे। और बाहर, लम्बी ड्राइव, खासकर मैरीन ड्राइव से बढ़िया कौन-सी जगह हो सकती है। 

लेकिन वहाँ पर तो…।

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