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ये बाल मुझे दे दे
Memoirs

ये बाल मुझे दे दे

तब राजीव गांधी जिंदा थे। शायद प्रधान मंत्री भी थे। शायद क्या, प्रधान मंत्री ही थे। उन्हीं दिनों बाज़ार में नूप तेल आया था। सिर पर बाल उगाने का शर्तिया इलाज। इतना शर्तिया कि अनूप तेल वाले हर शीशी के साथ एक कंघी मुफ्त देते थे। उन्हें पता था कि तेल लगाते ही रातों-रात आपके सिर पर बाल उग आयेंगे तो आधी रात को आप कहां कंघी खोजते फिरेंगे। वे यही सोच के कंघी मुफ्त देते थे। ये होती है आशावाद की चरम सीमा।

कहा जाता है कि राजीव गांधी ने भी अपने खोये हुए बाल अनूप तेल की मेहरबानी से ही पाये थे। कहा तो ये भी जाता है कि राजीव गांधी अनूप तेल के अघोषित ब्रैंड एम्बेसेडर थे। राजीव गांधी जी के जाने के बाद पता नहीं तेल का क्या हुआ लेकिन तब से देश में गंजों की तादाद बहुत बढ़ गयी है। हर तरफ गंजे ही गंजे नज़र आते हैं।

सब गंजों की एक स्थायी चिंता होती है कि गिरते बालों को कैसे रोकें और गिर चुके बालों को वापिस कैसे पायें। गंजों की इस स्थायी और सदाबहार चिंता का ध्यान रखते हुए अब बाल उगाने, लगाने और सहलाने वाली बहुत सी कंपनियां बाज़ार में उतर गयी हैं। वे सारे गंजे सिरों पर बाल उगाने के लिए एक तरह से छटपटा रही हैं। उनसे गंजों का गंजापन देखा नहीं जा रहा। लेकिन गंजे हैं कि अपने सिर पर हाथ ही नहीं धरने दे रहे। उनका सारा धंधा चौपट किये दे रहे हैं। इन कंपनियों का बस चले तो गुस्से में सारे गंजों के बाल नोच लें, लेकिन संकट यही है कि गंजों के बाल नहीं है और बाल लगवाने के लिए वे तैयार नहीं हैं। गंजे हैं कि मानते नहीं। न लगवाने को, न नुचवाने को।

अब बाज़ार में एक नयी कंपनी आ गयी है। वे गिन कर बाल बेच रहे हैं। 75000 रुपये में 3000 बाल। यानी लगभग 250 रुपये का एक बाल। वैसे कंपनी ने यह नहीं बताया है कि बाल किसके सिर से उतार कर आपके सिर पर लगाये जा रहे हैं और कि 250 रुपये के एक बाल की औसतन लम्बाई क्या होगी। वारंटी और गारंटी के बारे में भी वे चीनी कंपनियों की तरह खामोश हैं। बाइ वन गेट वन फ्री भी नहीं कह रहे। ये भी नहीं बता रहे कि ये सिर्फ बाल की कीमत है या इसमें लगवायी शामिल है। पिछले दिनों मैं इसी तरह के झांसे में फंस चुका। एक इंजेक्शन था 1560 रुपये का लेकिन डे केयर सेंटर में इसे लगवाने के चार्ज ही 12000 ले लिये।

वैसे जिसके सिर पर लाखों बाल हों उनके लिए ये गणित बेकार है लेकिन जिसके सिर पर एक भी बाल न हो या गिने चुने बाल हों उनके लिए एक एक बाल की कीमत मायने रखती है। वैसे भी ये कंपनी बाल खरीदने की नहीं, बाल बेचने की बात कर रही है।

ज़रा सोचिये, गंजों के कितने अच्छे दिन आ गये। जेब में जहां 250 रुपये आये, बाल क्लिनिक के आगे लगी कतार में जा कर खड़े हो जायेंगे कि यहां कान के ऊपर या बायीं तरफ या दायीं तरफ एक लम्बा सा बाल टांक दो। हो सकता है, एक एक बाल लगवाने के इच्छुक गंजों की लम्बी कतारें देख कर कंपनी खुश होने के बजाये ये शर्त ही रख दे कि कम से कम 10 या बीस बाल लगवाने वाले ही कतार में खड़े रहें और बाकी कतार छोड़ कर चले जायें और तभी कतार में वापिस आयें जब उनकी जेब में दस बाल लगवाने लायक पैसे हों। शायद आज नकद और कल उधार या उधार प्रेम की कैंची है जैसा बोर्ड भी लगवा दें। क्रेडिट कार्ड पर पाँच प्रतिशत कैश बैक का ऑफर भी देने लगें। ये बाज़ार है और बाज़ार में सबकुछ बिकता है। पहन के उतारी हुई चड्ढी भी।

पुराना मुहावरा है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। जब एक एक बाल के दिन आयेंगे तो नया बाज़ार विकसित होगा। बाल ऋण मिलना शुरू हो जायेगा। आसान दरों पर। जब एक एक बाल की कीमत चुकायी जायेगी तो उनकी देखभाल भी जरूरी हो जायेगी। तय है बाज़ार में बाल बीमा कंपनियां भी आ जायेंगी जो शर्तें लागू का बड़ा सा बोर्ड लगा कर एक एक बाल का बीमा करेंगी। बाज़ार में आये इस नये उत्पाद के आने से भाषा भी समृद्ध होगी ही। नये मुहावरे बनेंगे और पुराने मुहावरे नये अर्थ ग्रहण करेंगे। पहले मुहावरा था – अंधा क्या चाहे दो आंखें, अब नया मुहावरा बनेगा – गंजा क्या चाहे दो बाल। गंजा शब्द शायद डिक्शनरी में ही रह जाये।

अब बाल खरीद कर लगवाने वाला आदमी आंधी, तूफान, झगड़े फसाद या कोई भी संकट आने पर सबसे पहले अपने बाल बचायेगा। अब यही कहेगा – बाल है तो जहान है। अब लोग किसी गंजे की हैसियत बताते समय कहा करेंगे – उसकी दस हजार बाल खरीदने की हैसियत है। उसे छोटा मोटा मत मझें। तब फिल्मों के दृश्य इस तरह होंगे। फिल्म शोले – गब्बर गंजा है। उसके सामने ठाकुर हैं। गब्बर चिल्लाता है – ये बाल मुझे दे दे ठाकुर। आगे का दृश्य आप खुद कल्पना कर लें।

मेरे एक चाचा गंजे हैं और विग लगाते हैं। अपनी विग को ले कर बहुत सतर्क रहते हैं। एक दिन स्टूल पर चढ़े दीवार पर कील ठोंक रहे थे। बैलेंस बिगड़ा और धड़ाम से नीचे आ गिरे। गफलत में विग भी अलग हुई और पहनी हुई लुंगी भी। कहने की ज़रूरत नहीं कि पहले उन्होंने विग ही संभाली थी। अब वे भी शान से बाल लगवा सकते हैं। वैसे भी रिटायर होने के बाद उन्हें काफी पैसे मिले हैं। एकाध लाख बाल तो चुटकियों में लगवा सकते हैं। हो सकता है उन्हें भारी डिस्काउंट भी मिल जाये।

तय है आने वाले दिनों में गिन कर बाल खरीदने वाले भी अपनी दुकानें खोलेंगे ही। आखिर 250 रुपये प्रति बाल बेचने वाली ये कंपनियां तिरुपति के नाइयों के भरोसे ही तो नहीं चलेंगी। बाजार में मांग और आपूर्ति का संतुलन बनाने के लिए बाल खरीदने, खरीदने से पहले खरीदने लायक बनाने और बिकवाने के लिए भी कंपनियां बाजार में उतरेंगी। दलाल भी आयेंगे। आप देखेंगे कि आप अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ बाज़ार में जा रहे हैं और कोई दलाल तपाक से उनकी राह रोक कर खड़ा हो जाये – आपके बाल बहुत सुंदर हैं। थोड़े से बेचेंगी। अच्छी कीमत दिलवा दूंगा। आप घंटे भर से प्रेमिका की राह देख रहे होंगे और वह थोड़े से फालतू बाल बेचने के लिए कहीं कतार में खड़ी होगी। किसी को पता भी नहीं चलेगा। कुछ दलाल इस तरह बात करेंगे – कमाल करती हैं भेन्जी आप भी। अभी परसों ही अपनी टॉप हिरोइन 1000 बाल बेच के गयी हैं। किसी को पता चला क्या।

मुझे तो उन्हीं अच्छे दिनों का इंतज़ार है। पत्नियां अब हेयर सैलून के भारी बिल का भुगतान थोड़े से बाल बेच कर किया करेंगी। सैलून वाले भी ये बोर्ड लगाने पर मजबूर होंगे – हम भुगतान के बदले बाल स्वीकार करते हैं। तब लोग पैसों की जरूरत होने पर एटीएम जाने के बजाये बाल खरीदने वाली दुकान के सामने कतार में लग जाया करेंगे।

काश, आज सुमित्रा नंदन पंत होते तो कितने अमीर होते।

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