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मेरी बम्बई वापसी
Memoirs

मेरी बम्बई वापसी

बरसों बाद बम्बई लौटा हूँ। देख रहा हूँ, इस दौरान यहाँ बहुत कुछ बदल गया है। वैसे उन चीजों की सूची भी बहुत लम्बी है, जो नहीं बदली हैं। इस बीच बम्बई मुम्बई में बदल गयी। यहाँ सरकार बदल गई, हालाँकि समस्याएँ जस की तस हैं, बल्कि बढ़ ही गई हैं। महँगाई बढ़ी है। भीड़ बढ़ी है। ट्रेनें बढ़ी हैं तो किराये भी बढ़े हैं। पहले सुबह-शाम भीड़ के कारण दो-एक लोकल छोड़ने के बाद आदमी तीसरी लोकल में घुसने की हिम्मत जुटा ही लेता था, अब छोड़ी जाने वाली लोकलों की संख्या पाँच-सात तक पहुँचने लगी है। अलबत्ता, ट्रेनों के भीतर का मामला बिलकुल पहले जैसा ही है। ताश वाले, भजन वाले, जेबकतरे, भिखमंगे, सामान बेचने वाले, यहाँ तक कि चौथी सीट के लिए बाकी तीन के रहमो-करम पर अपने शरीर का किसी तरह बैलेंस किये हुए यात्री, या फिर फर्स्ट क्लास के व्हाइट कॉलर वाक्युद्ध, जो अंग्रेजी में शुरू होकर मराठी, हिन्दी में खत्म हुआ करते हैं, सब वैसे ही हैं। लोग अभी भी अखबार, पत्रिका माँगकर पढ़ते हैं और दूसरों के कंधे पर सिर टिकाये ऊँघते हैं। 

मैंने नोट किया कि लोग प्लेटफार्मों पर अभी भी परिचितों को दूर से देखकर, जीभ दबाकर च्ची ची या होंठ गोल करके पूअ पूअ की विचित्र-सी आवाज़ ही निकालते हैं। कुछ चीजें पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती हैं।

बिना टिकट यात्री इन बरसों में बढ़ गए हैं। पकड़े भी ज्यादा जाने लगे हैं और पैसे देकर छूटने वालों की संख्या भी बढ़ी है। इसके विपरीत ईमानदारी से टिकट लेकर यात्रा करने वाले अभी भी आधा-आधा घंटा लाइन में खड़े रहते हैं। महिलाएँ अभी भी भागते हुए ही लोकल पकड़ती हैं। मरीन लाइंस स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर चार के स्टाल पर अभी भी वह आदमी उबले आलू छीलता नज़र आता है, जो कई बरस पहले भी यही काम करता नज़र आता था। 

इस दौरान बसों में भी भीड़ बढ़ी है। प्रदूषण तो खैर, सब जगह बढ़ा है। सड़कें यहाँ पहले की तुलना में बेहतर हो गई हैं, लेकिन गड्ढे और गहरे हो गए हैं। कचरे के ढेर लगभग वैसे ही हैं। (शायद वही हों।) डबल डेकर बसों में ऊपर बैठे यात्री अभी भी पहले की तरह पिच्च से खिड़की के बाहर थूक देते हैं। चर्चगेट और फाउण्टेन पर पुलिस वाला अभी भी रस्सी पकड़े भीड़ को रोकने की कोशिश करता नज़र आता है।

फुटपाथों पर हॉकर बढ़ गए हैं। वैसे सामान भी बढ़ा है और खरीदार भी बढ़े हैं। आम आदमी अभी भी वड़ा पाव खाता है, लेकिन अब वड़ा पाव भी उसके लिए स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। अलबत्ता, शहर में ठण्डे, महँगे होटलों और बारों की संख्या इस बीच बहुत बढ़ गई है, जहाँ शोख हसीनाएँ सर्व करती हैं और ग़ज़लें गाती हैं। वहाँ मैकेनिक और ठेकेदार किस्म के लोग रेक्सीन की कुर्सियों पर बैठे बीड़ियाँ फूंकते हुए वाह वाह करते हैं और पैसे लुटाते हैं।

अमिताभ बच्चन इस बीच बड़े परदे के आगे से हटकर छोटे परदे के पीछे चले गए हैं। संजय दत्त सीखचों के पीछे का, अपने जीवन का सबसे लम्बा, जीवन्त और दुखद शॉट देने में व्यस्त हैं । इस शॉट में डुप्लीकेट नहीं चलता। इन बरसों में कमर मटकाऊ और सीना हिलाऊ मार्का तारिकाओं की नयी पीढ़ी छा गई है, जो परदे पर पीटी करने के बीस-बीस लाख ले रही हैं। राजकुमार की जगह नाना पाटेकर आ गए हैं। अलबत्ता, फिल्में पहले की तुलना में ज्यादा घटिया बन रही हैं। हाँ, हर भारतीय के लिए दूरदर्शन के जरिये बीस घंटे दैनिक मनोरंजन अनिवार्य कर दिया गया है, लेकिन यह भी सभी जगह हुआ है। केन्द्र बेशक उसका बम्बई ही है।

पाली हिल और उससे चार कोस दूर बसे अँटाप हिल के बीच अब भी उतना ही फासला है, जितना पहले था। दोनों जगह की भाषा, तहजीब, तौर-तरीके, लाइफ स्टाइल, जीवन-स्तर में अभी भी जमीन-आसमान का फर्क है। हाँ, इन बरसों में मकानों की कीमत कई गुना बढ़ गई है और हजारों के फ्लैट में रहने वाले अब करोड़ों के घर में रहने का सुख उठा रहे हैं। अबलत्ता, आम आदमी का इकलौता सपना अभी भी घर ही है।

गैंगवार और उनसे जुड़ी हत्याएँ अभी भी जारी हैं। हाजी मस्तान इस बीच गुज़र गए हैं। मोरारजी देसाई भी। गावस्कर रिटायर हो गए हैं। काम्बली तथा सचिन ने शादी कर ली है। ट्रैफिक पुलिस वालों ने इस बीच अपने रेट बढ़ा दिए हैं। हुसैन ने दाढ़ी साफ करा ली है और वे आजकल माधुरी दीक्षित पर फिदा हैं। लोग जब ज्यादा पढ़ने लगे हैं। जब गया था, दोपहर को तीन अखबार छपते थे, अब बीस से ज्यादा छपते हैं। 

बम्बई की लड़कियाँ अभी भी खूबसूरत लगती हैं। आकर्षित करती हैं। यहाँ का समंदर अभी भी पहले ही तरह ठाट मारता है, लेकिन लोग यहाँ अब भी अकेले, उदास और तनावग्रस्त हैं। हाँ, मानसून अब धोखेबाज़ हो चला है।

इन सारी चीज़ों के बावजूद मैंने पाया कि मुम्बई में रहने के आकर्षण और चैलेंज पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। इस शहर पर अभी भी यह मुहावरा पूरी तरह फिट बैठता है कि यहाँ राहें आती तो बहुत हैं, जाती एक भी नहीं है । बम्बई सबको बुलाती है- एक बार आओ तो सही। आना तुम्हारी मर्जी से। भेजना मेरी मर्जी से।

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