मंटो! जिक्र आते ही जैसे झुरझुरी छूटती है। आदमी क्षण भर को ठिठकता है पढ़ने की हिम्मत जुटाने को। बिल्कुल वैसी ही प्रतिनिधि कहानी है गुरुमुख सिंह की वसीयत। और प्रतिनिधत्व किसका, हमारे बँटवारे का। आधुनिक इतिहास के सबसे खौफनाक मंजर का।
कहानी का संतोख, गुरुमुख सिंह जी का बेटा है छोटी ईद को जज साहब के यहाँ सेवईयाँ लेकर आता है। दरवाजे पर आगल की आवाज उनके चेहरों को झक कर देती है लेकिन जज साहब को विश्वास होता है कि गुरुमुख ही होगा। हर साल यूँ ही आता था वो सौगात लेकर। जज साहब ने झूठे केस से तबाह हो रही उसकी जिन्दगी को बचाया था। जज साहब तो उठ नहीं सकते, उन्हें फसाद के कुछ दिनों बाद ही लकवा मार गया था। बेटा बशारत आकर बताता है कि है तो कोई सिख ही लेकिन गुरुमुख सिंह जी नहीं है। जज साहब बड़ी बेटी सुगरा को कहते हैं, जाओ वही है। लेकिन वो संतोख होता है। बताता है कि गुरुमुख सिंह जी का देहान्त एक महीने पहले ही हुआ है लेकिन वे जबानी वसीयत कर गए है कि ये सिलसिला यूँ ही बदस्तूर जारी रहे।
कहानी दिल भीगा कर खत्म होने को होती है। अन्तिम दो लाइनें, और मंटो अपना खेल खेल जाते हैं।
“और ये कह कर वो थरे से उतर गया……. सुग़रा सोचती ही रह गई कि वो उसे ठहराए और कहे के जज साहब के लिए किसी डाक्टर का बंद–ओ–बस्त करदे।
सरदार गुरमुख सिंह का लड़का संतोख जज साहब के मकान से थड़े से उतर कर चंद गज़ के आगे बढ़ा तो चार ठाटा बांधे हुए आदमी इस के पास आए। दो के पास जलती मशालें थीं और दो के पास मिट्टी के तेल के कनस्तर और कुछ दूसरी आतिश ख़ेज़ चीज़ें। एक ने संतोख से पूछा। “क्यों सरदार जी, अपना काम कर आए?”
संतोख ने सर हिला कर जवाब दिया। “हाँ कर आया।”
उस आदमी ने ठाटे के अंदर हंस कर पूछा। “तो करदें मुआमला ठंडा जज साहब का।”
“हाँ…….जैसी तुम्हारी मर्ज़ी!” ये कह कर सरदार गुरमुख सिंह का लड़का चल दिया।
एक बार फिर मंटो एक इन्सान के भीतर बस रहे न जाने कितने उथले-छिछले इन्सानों में से किसी एक से रूबरू करवा देते हैं। अनजाने ही आप अपने अन्दर बस रहे उस इन्सान से घृणा करने लगते हैं, निजात पाना चाहते हैं और यही उनके लिखे की उपलब्धि है।
गुरुमुख सिंह की वसीयत और अन्य कहानियाँ प्रकाशक - राजपाल एंड संस मूल्य - 195/-
मंटो पर कहानियों के अश्लील होने के लिए, गलीज होने के लिए छह बार मुकदमें चले। तीन पाकिस्तान बनने से पहले और तीन पाकिस्तान बनने के बाद। इल्जाम साबित एक बार भी नहीं हुआ लेकिन हर बार उनका कहना यही होता था कि यदि मेरी कहानियाँ अश्लील और गलीज हैं तो इसलिए कि तुम्हारा समाज अश्लील और गलीज है।
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