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न सारे जीनियस दाढ़ी रखते हैं और न सारे दाढ़ी वाले जीनियस होते हैं
Opinion

न सारे जीनियस दाढ़ी रखते हैं और न सारे दाढ़ी वाले जीनियस होते हैं

एक मुद्दा उठाया गया कि दाढ़ी चाहे जीनियस दिखने की चाह में कोई आम आदमी, मीडियाकर रखे या खास दिखने की चाह‍ में जीनियस, मूलत: वह आलसी होता है।

मैं नहीं जानता कि ये मुद्दा उठाने वाले महोदय के सामने कौन से मीडियाकर, जीनियस या दाढ़ी वाले रहे होंगे, लेकिन संयोग से दाढ़ी वाला मैं भी हूं (जीनियस होने का कोई मुगालता नहीं) और इस वर्ग की सच्चाई शायद बेहतर ज्यादा जानता हूं।

सिर्फ आलस ही तो नहीं होता दाढ़ी रखने का कारण और न जीनियस या खास लगने की चाह ही आदमी को दाढ़ी रखने के लिए उकसाती है। बहुत कुछ होता है हर दाढ़ी के पीछे। हर दाढ़ी वाले के पीछे। कहा और अनकहा। कई बार असफल प्रेम भी या जीवन में और कोई असफलता भी। (छठे सातवें दशक की ज्यादातर फिल्मों में देखिये या गाइड में देव आनंद।)

पहली बात तो दाढ़ी रखने के पक्ष में ये कि दाढ़ी रखने का फैसला उस उम्र में ही ले लिया जाता है जब दाढ़ी और मुहांसे एक साथ आने शुरू होते हैं। एक तो सत्रह अट्ठारह बरस में उन मुहांसों को छुपाने की चाह और रोज़ाना नाज़ुक और कोमल चेहरे पर उस्तरा फेरने से बचने की कोशिश ही आम तौर पर दाढ़ी बढ़ाने का फैसला करने में मदद करती है। बेशक अलग दिखने की चाह भी रहती ही है लेकिन जीनियस या खास लगने की कोशिश तो बिल्कुल भी नहीं होती उस वक्त। हां, अगर कोई गर्ल फ्रेंड बन गयी हो उस वक्त तक‍ और कहीं भूले से दाढ़ी की तारीफ भी कर दे तो फिर कहना ही क्या। तब उस कच्ची और हर तरह के सपनों से भरी नाजुक उम्र में आप कहां तय कर पाते हैं कि खास तरह का साहित्यकार या पत्रकार या बुद्धि‍जीवी बनना है आगे चलकर कि दाढ़ी रख लें तो मदद मिलेगी या खास नज़र आने में मदद करेगी दाढ़ी।

एक बात और। जो उस उम्र में दाढ़ी रखने का फैसला कर लेते हैं फिर जिंदगी भर उसे निभाहते भी हैं। आपने कभी नहीं देखा होगा कि कोई आदमी तीस या पैंतीस बरस की उम्र में दाढ़ी रखने का फैसला करे और आजीवन रखे भी रहे। जबकि शुरू से ही दाढ़ी रखने वाले जब तक हो सके, इसे प्यार से निभाहते भी हैं और दाढ़ी की कद्र करना भी जानते हैं। हां, कुछ दा़ढ़ीवार सिर्फ फोटो खिंचाने के मकसद से एक बार पूरी या अधूरी दाढ़ी रख भर लेते हैं और फोटो खिंचाने का मकसद पूरा होते ही फिर से सफाचट हो जाते हैं।

हां जो दाढ़ी रखे रहते हैं, तब तक ये उनके व्यक्तित्व का अनिवार्य हिस्सा बन चुकी होती है। वे चाहें तो भी इससे अलग नहीं हो सकते। हो ही नहीं सकते। मेरी मां शुरू के दस पन्द्रह बरस मेरे पीछे पड़ी रही कि मैं दाढ़ी हटा दूं लेकिन जब मैं सिर्फ मां की खुशी के लिए कभी दाढ़ी साफ करवा भी लेता था तो मां यही कहती थी कि तू दाढ़ी में ही ठीक लगता है। रख ले।

दाढ़ी रखना कहीं भी आलस का प्रतीक नहीं। दाढ़ी रखने वाले सौ में से मुश्किल से दो लोग आलस के कारण दाढ़ी रखते होंगे। दुनिया भर में दाढ़ी रखने का प्रचलन है। सदियों से। अलग अलग तरह की दाढ़ी। जितने दाढ़ी वाले उतनी तरह की दाढ़ी। पूरी मर्द आबादी में से सात प्रतिशत लोग दाढ़ी रखते हैं। अलग अलग कारणों से और ये दाढ़ी रखने वाले सारे लोग न तो जीनियस हैं और न मीडियाकर। (पता नहीं क्या सोचकर हमारे देवताओं की तस्वीरों में कुछ देवताओं को क्लीन शेव दिखाया जाता है और कुछ को मुच्छड़, अलबत्ता सारे ऋषि मुनि अनिवार्य रूप से दाढ़ी वाले होते हैं। हमारे राम और कृष्ण क्लीन शेव वाले और यीशु मसीह दाढ़ी वाले। सिख धर्म के सभी गुरु अनिवार्य रूप से दाढ़ी वाले, रावण और दुर्योधन मूछों वाले, अकबर और महाराणा प्रताप मूछों वाले, नारद जी क्लीन शेवन और दशरथ वगैरह दाढ़ी वाले।)

दाढ़ी रखना महंगा सौदा है। आप महीने भर में जितना समय और धन अपनी शेव कराने में खर्च करते होंगे उससे ज्यादा समय और धन दाढ़ी खुरचवाने में, ट्रिमिंग कराने में और उसकी साज सज्जा करने में खर्च करना पड़ता है हमें। कुछ नाम गिनाऊं। गुलज़ार साहब की दाढ़ी यूं ही बरसों से सिर्फ चार दिन वाली दाढ़ी नहीं लगती। आप  निराला, रवीन्द्र नाथ टैगोर, तोलस्तोय, अज्ञेय जी को देखें, ज्ञानरंजन, दूधनाथ सिंह, काशीनाथ सिंह, आलोक धन्वा, से रा यात्री, राजेश जोशी, असगर वजाहत, ज्ञानेन्द्र पति, प्रेम पाल शर्मा और ओमा शर्मा, सत्य नारायण, अरुण प्रकाश (अब नहीं रहे), सूरज प्रकाश, अर्नेस्ट हेमिंग्वे, श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, यासेर आराफात, फिदेल कास्त्रो, बहुत लम्बी सूची है और पूरी सूची देना न तो संभव है न जरूरी। किसी की भी दाढ़ी देखें, उसे करीने से सजाया संवारा गया है। अब तो बच्चन सीनियर और अनिल कपूर भी कुछ अलग दिखने की चाह में अध दाढ़ी वाले हो गये हैं। कथाकार मित्र सुरेश उनियाल छमाही दाढ़ी रखते रहे हैं। मजे की बात मूछों वाले लेखक कम हैं और क्लीन शेवन ज्यादा। नामवर जी क्लीन शेवन तो काशी नाथ सिंह दाढ़ी वाले। वी एन राय मूछों वाले तो उनके भाई छोटी मूंछों वाले। आचार्य राम चंद्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी झबरी मूंछों वाले। गालिब दाढ़ी वाले और और बहादुर शाह ज़फर भव्य दाढ़ी वाले।  

आप दाढ़ी रखने के मामले में आलस कर ही नहीं सकते। हां, बाबा रामदेव और बापू आसाराम जरूर दाढ़ी पर उतना समय या धन नहीं लगाते होंगे जितना हमारे ओशो लगाते थे। उनकी दाढ़ी करीने से रखी गयी और भव्य लगती थी। श्री श्री श्री रविशंकर की दाढ़ी भी ओशो की धुन पर बनायी गयी रिमेक लगती है। उसे बेहतर बनाया जा सकता है।  

फिल्मों में क्लीन शेवन, मूंछ वाले और दाढ़ी  वाले चरित्र पता नहीं क्या सोच कर रखे जाते हैं। 

तो मेरा ये ख्याल ही है कि कभी न कभी सबने किसी के कहने पर दाढ़ी रखी भी होगी और किसी के कहने पर हटायी भी होगी। पुराने फोटो एलबम गवाह होंगे।

अब हमारी तो रह गयी, पचास बरस से रखे हुए हैं। जो नहीं रख पाये वे जाने।

जून 2009

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