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गांधी-स्मृति लायंस क्लब स्टाइल
Memoirs

गांधी-स्मृति लायंस क्लब स्टाइल

पिछले कई दिनों से हमारा दूरदर्शन अंग्रेजी में एक संदेश दे रहा था कि हम सब भारतीय 30 जनवरी 1994 का दिन एकता रक्षाबंधन के रूप में मनाएँ, अपने-अपने शहर में मानव श्रृंखलाएँ बनाएँ और उस श्रृंखला में अपने बायीं तरफ खड़े नर, खड़ी नारी के हाथ पर एकता राखी बाँधकर एक शपथ लें (दूरदर्शन यह शपथ भी अंग्रेजी में दिखा रहा था)।

संदेश यह भी था कि इस शपथ से उसमें और हममें एकता रक्षाबंधन की वजह से भाई-बहन का रिश्ता कायम हो जाएगा और इससे हमारा देश एकदम मजबूत हो जाएगा। अलबत्ता, दूरदर्शन ने यह नहीं बताया कि उस दिन महात्मा गांधी को हमेशा की तरह याद करना है या नहीं और कि यह भाई-बहन का एकता वाला रिश्ता सिर्फ एकता कड़ी में रहने के दौरान ही रहना है या आगे भी चलता रहेगा। देश की मजबूती इस कड़ी की वजह से कितनी देर रहने वाली है, यह भी नहीं बताया गया।

बाकी देश की तो मुझे खबर नहीं, लेकिन हमारे शहर में एकता की यह कड़ी बनाने का ठेका हमारे शहर के लायंस क्लब ने ले लिया, हालांकि इसके लिए कोई ज्यादा दावेदार थे भी नहीं। मुझे यह भी खबर नहीं कि देश के बाकी शहरों या दुनिया के बाकी देशों के लायंस क्लब वाले कैसे होते हैं। वैसे यहाँ के लायंस क्लब वाले थ्री पीस सूटधारी होते हैं। बँगलों में रहते हैं । वातानुकूलित कारों में चलते हैं और ऐसे ही केबिनों में बैठते हैं। ये किसी भी ऐसे धंधे से जुड़े हो सकते हैं जिससे ये सारे ठाठ-बाट और सोने के फ्रेम वाले चश्मे मेंटेन कर सकें। इन्हें हाथ मिलाने, फोटो खिचवाने और स्वागत करने का स्थायी रोग होता है। वे हर तरह का आयोजन पसंद करते हैं। आम तौर पर विधवाओं को सिलाई मशीनें देते इनकी फोटो सबसे ज्यादा देखी जा सकती हैं।

तो हुआ यह कि मैं अपने बाकी सारे कार्यक्रम स्थगित करके गांधी पुल के पास, गांधीजी की मूर्ति को प्रणाम करके अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देने जा पहुँचा। इन्कम टैक्स सर्किल पर लगी गांधी जी की मूर्ति शहर में हर तरह के आंदोलन, जलसे, धरने, हड़ताल, विरोध, तोड़ फोड और दंगा कराने का एक मात्र स्थान है। यों समझ लें कि दिल्ली का बोट क्लब या मुंबई का आज़ाद मैदान जिस काम में आते हैं, उसी काम के लिए ये चौराहा आता है।

इस समय तक शहर भर के लायंस क्लब वाले कारों, स्कूटरों पर लदकर वहाँ पहुँचने लगे। एक तरफ बीस-पच्चीस लायंस क्लब-महिलाएँ सजी-धजी एक कतार में खड़ी हैं। हाथों में देशभक्ति के नारों वाले बैनर हैं। एकता की कड़ी की शुरुआत इन्हीं से होनेवाली है, ऐसा पता चला। इन खाती-पीती शेरनियों के ठीक बाद मझोली हैसियत के लायंस क्लब वाले खड़े हैं जिन्होंने तिरंगे झंडे के कपड़े की कमीजें पहनी हुई हैं। इन दोयम दर्जे के कार्यकर्तानुमा लोगों के बाद कुछ होमगार्ड हैं, एन.सी.सी. को कुछ कैडेट्स हैं, किसी गरीब-से स्कूल के गरीब-से विद्यार्थी हैं, जो काला चश्माधारी अध्यापक और सिल्क की खूबसूरत साड़ी पहने एक मुटल्ली अध्यापिका के साथ हाँका करके लाये गए प्रतीत हो रहे हैं। इनके बाद लायंस क्लब-संतानें जो पिकनिक के मूड में खड़ी चुहलबाजी में लीन हैं। इनके बाद फिर कुछ और स्कूलों के बच्चे हैं, अनाथालयों को कुछ लड़कियाँ हैं और फौजी वर्दी पहने कुछ लोग हैं। ज्यादातर के हाथ में एकता के नारे वाले या स्कूल का नाम दर्शानेवाले बैनर हैं। कुल तीन-चार सौ लोगों का जमावड़ा। एकता कड़ी की कुल लम्बाई इन सबको मिलाकर दो-ढाई सौ गज तक हो गई है। हर वर्ग अलग-थलग खड़ा है, जैसे उसे सिर्फ अपने समूह तक एकता की चिंता करनी है।

गांधीजी की मूर्ति की तरफ पीठ करके थ्री पीस सूटधारी लायंस क्लब वालों का एक दल बेचैनी से आगे-पीछे हो रहा है। बार-बार घड़ी देख रहा है। कुछ लोग यों ही व्यस्त नज़र आ रहे हैं, खुद दौड़ रहे हैं, किसी को दौड़ा रहे हैं।  जो कड़ी में नहीं खड़े हैं, उन सबने अपने सफेद कपड़ों पर एक छपी हुई टी शर्ट पहन रखी हैं, जिस पर अंग्रेजी में लिखा है कि वे एकता की कड़ी का एक हिस्सा हैं।

ये लोग कड़ी में खड़े लोगों को समझा रहे हैं कि साथ वाले, वाली का हाथ कैसे थामना है और एकता राखी कैसे बाँधनी है। धीरे-धीरे चौराहे पर आयोजकनुमा लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। अलबत्ता, एकता कड़ी में खड़े लोगों की संख्या अभी भी उतनी ही है। आयोजक आते हैं, कार से उतरते हैं। पहले से मौजूद आयोजकों से दुआ-सलाम करते हैं और अपने क्लब का बैज सहलाते हुए एकदम व्यस्त हो जाते हैं। कुछेक कार्यकर्तानुमा लोग ऐसे भी हैं जो स्कूटरों, कारों, जीपों पर लदे दूर-दूर तक व्यवस्था सँभाल रहे हैं, इन सबने भी झंडे या टी शर्ट धारण कर रखे हैं। 

इतने में शहर के सबसे बड़े लायंस क्लबी पधार गए हैं। चीफ आयोजक समेत सारी आयोजन समिति उनकी तरफ लपकी। उन्होंने आते ही बताया, बस मुख्य अतिथि चल ही चुके हैं। फिर पूछा उन्होंने, कैमरा, वीडियो, टी.वी. टीम, माइक, गुलदस्ता सब रेडी हैं ना? पूरी आयोजन समिति ने सिर हिलाया। तभी चीफ आयोजक ने उन्हें समझाया कि वे भी अपना कोट उतारकर टी शर्ट पहन लें। उन्होंने बड़े बेमन से कोट उत्तार, फिर टाई उतारने लगे। कुछ सोचकर टाई रहने दी और टी शर्ट गले में डाली। 

तभी एकाएक शहर सबसे बड़े पुलिस अधिकारी जो हैं, वे आ पहुँचे। वे इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि है। सभी बड़े-बड़े लोग उनकी गाड़ी की तरफ लपके। उनके आगे हैं-हे की। फिर वे उस स्थान पर आ गए जहाँ एक कार की छत पर लाउड स्पीकर रखा है। सब लोग गांधी जी की तरफ पीठ करके खड़े हो गए। शहर के सबसे बड़े लायंस क्लब वाले ने शहरे के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी का एक बड़े महंगे पुष्प गुच्छ से स्वागत किया और उनसे अनुरोध किया वे शपथ चढ़े ताकि सब लोग उसे दोहरा सकें। मुख्य अतिथि ने भिनभिनाहट के स्वर में शपथ पढ़ी। कुछ लोगों ने भिनभिनाकर दोहरा दी। कुछ लोगों ने तालियाँ बजा दी हैं। तभी मुख्य अतिथि ने भाषण देना शुरू कर दिया है, जिसका मतलब यह है कि शहर में अमन और शांति दोनों होने चाहिए। पिछले साल भी थे। इस साल भी होने चाहिए। जनता का कर्तव्य है कि शांति कायम करने में पुलिस की मदद करें, वगैरह-वगैरह । फिर उन्होंने इस दिशा में सहयोग के लिए शहर के लायंस का आभार वगैरह माना। अभी उन्होंने अपनी बात खत्म ही की है कि उनके पीछे खड़ी एक ललाइन ने उनसे माइक लेकर राष्ट्रगीत गाना शुरू कर दिया। राष्ट्रगीत के खत्म होते न होते भारत देश और भारत माता की जय बोल दी गई। अभी भारत माता की दो ही बार जय बोली गई है कि शहर के सबसे बड़े लायंस क्लब वाले ने उन भेनजी से माइक लगभग छीन लिया है और बता रहे हैं कि मुख्य अतिथि अत्यंत व्यस्त हैं और कि वे बड़ी मुश्किल से यहाँ आ पाए हैं और कि उन्हें कहीं और जाना है और कि यह कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। इस बीच टी. वी., वीडियो अपना काम करते रहे । ट्रैफिक बदस्तूर चलता रहा। हॉर्न बजते रहे। ट्रैफिक पुलिस और दूसरे पुलिस वाले ऑटो और ठेले वालों की माँ-बहनों की याद करते रहे। 

तभी किसी को याद आया मुख्य अतिथि के साथ फोटो तो हुआ ही नहीं, उन्होंने माइक पर ही प्रमुख सरामों-सरामाओं को आवाज़ दी और खीसें निपोरीं, जिसे कैमरे ने कैद कर लिया। फोटो खिचते ही मुख्य अतिथि अत्यंत ज़रूरी काम से चले गए हैं। इस सारी कार्रवाई में सात या आठ मिनट लगे और इस पूरी कार्रवाई के से निपट जाने का पता सिर्फ उन्हीं को चल पाया जो आयोजक हैं, या एकता कड़ी के एकदम शुरू में खड़े हैं। जिन्हें आज के दिन एकता की मज़बूत कड़ी बनानी है, कड़ी में खड़े होकर दायीं तरफ खड़े व्यक्ति से राखी बंधवाकर बायीं तरफ खड़े व्यक्ति को राखी बाँधनी है और देश की मजबूती के लिए शपथ लेनी है और जो पिछले डेढ़ घंटे से धूप और धूल और ट्रैफिक के धुएँ में खड़े हैं, इंतजार कर रहे हैं कि कब कार्यक्रम शुरू हो, खत्म हो और वे घर जाएँ, वे सब जने और जनियाँ अब भी कभी एक पैर पर खड़े होते हैं तो कभी दूसरे पर। कभी अपनी घड़ियाँ देखते हैं तो कभी सामने वाले से टाइम पूछते हैं। उन्हें कार्यक्रम के शुरू होने और निपट जाने की खबर ही नहीं है।

इस बीच कुछ कार्यकर्तानुमा क्लब-सदस्यों ने बच्चों को बिस्कुट का एक-एक पैकेट देना शुरू कर दिया है। अभी आधे बच्चों तक ही बिस्कुट पहुंचे हैं कि बिस्कुट खत्म हो गए हैं। वे और बिस्कुट लेने चले गए और कभी वापस नहीं आए। मुख्य अतिथि के जाते हो सारे आयोजकनुमा लोग गाड़ियों, खुली जीपों में लदकर कहीं दूर चले गए हैं। बच्चे, बूढे अब भी खड़े हैं। महिलाएं समझ नहीं पा रही हैं, क्या करें। एन.सी.सी. कैडेट को इंचार्ज लड़की उन्हें अब भी समझा रही है कि ठीक सवा ग्यारह बजे सायरन बजेगा और मुटल्ली अध्यापिका एक बार फिर चश्माधारी से समय पूछ रही है। भूतपूर्व सैनिक और होमगार्ड अब भी तनी मुद्रा में खड़े हैं। जिन बच्चों तक बिस्कुट नहीं पहुंचे हैं, वे बिस्कुट वाले बच्चों को बहुत हसरत से देख रहे हैं। मेरी जेब में इतने पैसे नहीं हैं कि बाकी बच्चों को बिस्कुट दिला सकूँ। मैं वहाँ से हटकर उस सड़क की तरफ जाता हूँ जहाँ-जहाँ एकता कड़ी बनाई जानी है। अलग-अलग जगहों पर पाँच-पाँच, सात-सात के समूहों में लोग इंतजार में खड़े हैं। महिलाएं खड़ी हैं। उनके पास भी बैनर और तख्तियाँ हैं। अगले चौराहे पर कुछ बनी-ठनी महिलाएं बार-बार दायीं और बायीं तरफ देख रही हैं कि एकता कड़ी कहीं से तो आती दिखाई दे।

इन महिलाओं ने सफेद कीमती साड़ियाँ पहनी हुई हैं, लेकिन रंगीन चश्मे और मेकअप अपनी जगह पर हैं । जहाँ ये महिलाएँ खड़ी हैं, वहीं पास में कुछ सेवानिवृत्त सिपाही हैं, एन.सी.सी. की कुछ लड़कियाँ हैं । अनाथालय के बच्चे हैं और कुछ मुस्तैद होमगार्ड हैं। ये लोग एकता कड़ी बनाकर सड़क के बीचोबीच खड़े हैं। आगे-पीछे ट्रैफिक है। नारे हैं, शोर है और असमंजस की स्थिति है। इसी समय वहाँ एक बारात आ पहुँची है। इसमें बैंड वाले मस्ती में ‘मेरी पैंट भी सेक्सी’ की धुन बजा रहे हैं। बाराती खूब नाच रहे हैं। बारातिनें अपने गहने झुला रही हैं। कुछ मनचले बाराती आतिशबाजी छुड़ा रहे हैं, जिसके धुएँ और शोर से एन.सी.सी. की लड़कियाँ परेशान हो रही हैं। नाचते-गाते बारातियों को रास्ता देने के चक्कर में उनकी एकता कड़ी टूट गई है।

वे भद्र महिलाएँ अभी भी पसोपेश में खड़ी हैं। मुझे उन पर तरस आ रहा है। बेचारी लेडीज़ ! इन्हें पता भी नहीं और उधर सब निपट गया है। मैं उनके पास जाकर बताता हूँ कि एकता कड़ी तो वहाँ से शुरू होकर वहीं खत्म भी हो चुकी है। मुख्य अतिथि, कैमरा, वीडियो वगैरह कब के जा चुके। वे पहले तो बहुत अफसोस के साथ मेरी तरफ देखती हैं, फिर आपस में सलाह करती हैं। फिर वे तख्तियाँ वहीं पटककर अपनी-अपनी कार की तरफ बढ़ जाती हैं।

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