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Poem

पति की प्रेमिका के नाम

सोचती हूँ कि तुम्हें एक घर तोड़ने का इल्ज़ाम दूँ
या कि उस पुरुष के कहीं रिक्त रह गए हृदय को भरने का श्रेय
जो घर गृहस्थी के झमेलों में
शायद मेरे प्रेम को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाया था,
तुम्हारे और मेरे मध्य
एक दूसरे से बँधने के कई कारण थे
हम उसी पुरुष से जुड़े थे
जो मुझे रिक्त कर
तुममें ख़ुद को ख़ाली कर रहा था

तुम्हारे पास जो आया था
वह मेरे प्रेम का शेष था
हमारे संबंध की बची रह गई
इच्छाओं का प्रेत,
यह कितना कठिन रहा होगा
कि तमाम समय मुझ-सा नहीं होने की चेष्टा में
मैं मौजूद रहती होऊँगी तुम्हारे अंदर
और उसकी सुनाई कहानियों के साये
आ जाते होंगे तुम्हारे बिस्तर तक

तुम मुझसे अधिक आकर्षक
अधिक स्नेहिल
अधिक गुणवती होने की अघोषित चेष्टा में
ख़ुद को खोती गईं
और मुझसे मेरा जब सब छिन गया
मैं ख़ुद को खोजने निकली

हमने जी भर कर एक दूसरे को कोसा
एक दूसरे के मरने की दुआएँ माँगीं,
हमारे मध्य एक पुरुष के प्रेम का ही नहीं
घृणा का भी अटूट रिश्ता था

मेरे पास था
एक प्रेम का अतीत
एक बीत गई उम्र
और एक बीतती जा रही देह के साथ
उसके प्रणय का प्रतीक
एक और जीवन

तुम्हारे पास था
एक प्रेम का वर्तमान
यौवन का उन्माद
देह का समर्पण
अपने रूप का अभिमान
और मेरे लिए एक चुनौती

लेकिन अपना भविष्य तो हम दोनों ने
किसी और को सौंप रखा था

यह होता कि तुमने मेरा अतीत
और मैंने तुम्हारे वर्तमान का
साझा दुःख पढ़ा होता
काश कि हमें दुखों ने भी बाँधा होता

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