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गाँव में शहराती जमाई राजा बना फिरता है। गाँव के भोले भाले लोग किसी भी जीन्स पेंट टाई वाले बाबू साहब के सामने माधुर्य भाव से देखते हैं। वहाँ शहरों की तरह गूगल...
उन्होंने कहा कि धूमिल इतने सजग कवि और चिन्तक हैं कि कई बार कविता में वे जितने यथार्थवादी होते हैं, गद्य में उतने ही दार्शनिक। धूमिल की कविता से आप शब्द नहीं...
#धूमिलअपनी कवि-परंपरा से सुपरिचित धूमिल उस राह पर नहीं चलना चाहते थे जिस राह पर चल कर अज्ञेय ने प्रयोगवाद का परचम फहराया, नई कविता ने व्यक्तिवादी प्रवृत्तियों...
क्या संयोग है कि यह जिस कवि की कविता है यानी धूमिल, वे मुक्तिबोध की तरह नवंबर महीने में जन्मे. किसी ज्योतिषीय संयोग के नाते नहीं किन्तु केवल चार दिन के...
धूमिल अक्सर बीस किलोमीटर साइकिल चलाकर अपने गाँव खेवली चले जाते. बनारस में जब रुकते तब कोयले की अँगीठी पर दाल-भात-चोखा या खिचड़ी बनाते. आग सुलगाने के लिए निरर्थक...
धूमिल की कविता में भारतीय लोकतंत्र के अंतरविरोधों की गहरी आलोचना के साथ ही उनके यहाँ पक्ष और विपक्ष पूरी तरह स्पष्ट है। विपक्ष अगर संसद और लोकतांत्रिक व्यवस्था...
‘धूमिल’ की कई कविताओं में रह-रहकर ‘आदमी’ आ जाता है और आदमी यह शब्द ‘पुरुष’ और ‘स्त्री’ का प्रतिनिधित्व करता है। 1947 को आजादी मिली और हर एक व्यक्ति खुद को बेहतर...
जनसंदेश न्यूज़ वाराणसी... सुदामा पांडे धूमिल हिंदी की समकालीन कविता के दौर के मील के पत्थर सरीखे कवियों में एक है। उनकी कविता में परंपरा, सभ्यता, सुरुचि, शालीनता...
यह लेख दैनिक जागरण, गोरखपुर में शनिवार 18 सितम्बर 2021 को प्रकाशित किया गया था। भीड़ की भाषा तो कविता बनने से रही *********** कविता प्रतीकों से छूट रही है ।यह शुभ लक्षण...
9 नवंबर 1936 को उत्तर प्रदेश के बनारस में पैदा हुए प्रसिद्ध कवि सुदामा पाण्डेय धूमिल की आज पुण्यतिथि है। उनकी मृत्यु 10 फरवरी 1975 को हुई थी। हिंदी की समकालीन कविता...