Amit Gupta
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अमावस की रात थी और मैं काफ़ी देर तक खिड़की की देहरी पर बैठा बारिश देख रहा था, रह-रहकर...
माधव ने अपने माचिस जैसे कमरे के परदे खोल दिए, बाहर धूप खिली हुई थी; चारों ओर फैली...