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स्मृति का उजाला

अशोक वाजपेयी के संस्मरणों की पहली विशेषता है संस्मृत के अवदान पर आलोचनात्मक निगाह। वे किसी व्यक्तित्व की आभा से मुग्ध होते हुए भी उसके अवदान का मूल्यांकन करते हुए भूलते नहीं कि व्यापक परंपरा में संस्मृत की जगह कहां होगी (यदि कोई है तो), साथ ही देशकाल के प्रसंग में भी उसके योगदान को देखने का प्रयत्न इन संस्मरणों को खास बनाता है। व्यक्तित्वों के आकर्षण में चुटीले प्रसंग खोजना और उन्हें...

pallav ashok vajpayi
मोहब्बत और इंक़लाब के प्रतीक कैसे बने फ़ैज़

यह अजीम शायर आज हर किसी की जुबान पर हैं और जितना वह पाकिस्तान में मशहूर हैं उससे कहीं अधिक भारत में लोकप्रिय हैं। मीर, ग़ालिब और इक़बाल के बाद अगर कोई शायर लोगों की जुबान पर है तो वह फ़ैज़। भारत के लोग तो उन्हें अपने वतन का ही शायर मानने लगे हैं क्योंकि उनकी शायरी में बयां दुख-दर्द, कशमकश, क्रांति की अकुलाहट भारतीय यथार्थ की मिट्टी से मेल खाती है। फ़ैज़ 1946 में दिल्ली में रहे और बाद में भी भारत...


रेणु जी के जीवन की महागाथा का अप्रतिम दस्तावेज़

कवि अज्ञेय के उपन्यास "शेखर एक जीवनी" की तर्ज पर भारत यायावर ने रेणु जी की जीवन कथा का नाम"रेणु एक जीवनी"रखाl यायावर जी ने पुस्तक की प्रस्तावना में ईमानदारी से इस बात को लिखा है-"मैं जब भी दिग्भ्रमित होता हूँ अज्ञेय के पास जाता हूँl अज्ञेय ने ही रास्ता बताया-"शेखर एक जीवनी को देखिएl मैंने गौर से देखा और"रेणु एक जीवनी"नाम ही रखा l 548 पृष्ठों में लिखी गई रेणु की महागाथा का यह प्रथम...


जगत् और जागृति के लेखक : हजारीप्रसाद द्विवेदी

इन्हीं अध्यापकों में ग़ाज़ीपुर की नौकरी से आए थे – श्रीप्रकाश शुक्ल। वे कवि के रूप में पहले से ख्यात हो चुके थे। ‘परिचय’ पत्रिका के संपादक के रूप में आगे चलकर उन्हें यश-अपयश की मिश्रित राशि प्राप्त होती रही। इसी पत्रिका का एक विशेषांक आया था आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की जन्म-शताब्दी पर 2007 में। बहुत उत्साह से इसकी तैयारी हुई और उससे ज्यादा उत्साह से इसका विमोचन हुआ। 2007 में मौजूद कई महत्त्वपूर्ण...


किताबों की दुनिया में तिमिर में ज्योति जैसे, बाकी बचे कुछ लोग और मैंने अपनी माँ को जन्म दिया है की संक्षिप्त समीक्षा

तिमिर में ज्योति जैसे ”तिमिर में ज्योति जैसे” अरुण होता द्वारा संपादित कोरोनाकालीन कविताओं का एक महत्वपूर्ण संचयन हैं। इस संचयन में अरुण होता ने हिंदी के 43 कवियों की कविताओं का संचयन किया है जिसमें अशोक वाजपेई,ज्ञानेंद्र पति, राजेश जोशी,कुमार अंबुज,अनामिका लीलाधर मंडलोई, मदन कश्यप, नासिरा शर्मा, राकेश रेणु,ज्योति चावला, बोधिसत्व, हरीश चंद्र पांडेय, श्री प्रकाश शुक्ल, जितेंद्र श्रीवास्तव,...


मधुमती अंक-61 (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर) में छपी पुस्तक क्षीरसागर में नींद की समीक्षा

यहाँ जब मैं अपने समय की बात कर रहा हूँ तो मेरा बहुत स्पष्ट मानना है कि हमारा आज का समय 1990 के आसपास के बाद की बनी हुई दुनिया का समय है। अब तो कई बार लगता है कि 2014 के बाद के भारत का समय हमारा समय है। भारत समेत दुनिया के एक बड़े हिस्से में 1990 के आसपास बहुत कुछ ऐसा घटित हो रहा था जो हमारे समय को 1990 से पहले के समय से अलग कर रहा था। भूमंडलीकरण,उदारीकरण और निजीकरण जैसे मूल्य 90 के आसपास के वर्षों में ही विकसित...


सवा सौ साल पुरानी पत्रकारी नजीर (आउटलुक पत्रिका में छपी पुरखा पत्रकार का बाइस्कोप पुस्तक की समीक्षा)

लेकिन मौजूदा और पहले हिंदी संस्करण के संपादन और अंग्रेजी से अनुवाद के लिए वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मोहन को इसलिए भी साधुवाद देना चाहिए कि ऐसी दुर्लभ किताब को उन्होंने ढूंढा और बड़े जतन से हमारे लिए उपलब्ध कराया। अनुवाद सुंदर है और उसमें लेखक की शैली का ध्यान रखा गया है। विषयों के संयोजन-संपादन में भी यह ध्यान रखा गया है कि हर कालखंड का एहसास दिला जाए। अरविन्द मोहन भूमिका में इस किताब...


सामाजिक वर्जनाओं की चारदीवारी में घिरी स्त्री के मन की पीडाओं के कारणों की पड़ताल करती कवितायेँ (पुस्तक मैंने अपनी माँ को जन्म दिया है की समीक्षा)

यह कवितायेँ दो शहरों के मध्य अपने अस्तित्व को तलाश रही स्त्री के वह शिकायत पत्र हैं जो वह खुद के नाम लिखती है. जिनमे वह लिखती हैं- “मैं दो शहरों के बीच खोजती हूँ/ एक बीत गयी उम्र/ एक ने मुझे नहीं सहेजा/ दुसरे को मैंने नहीं अपनाया/ मैं दोनों की गुनाहगार रही। एक तरफ यह कवितायेँ स्मृतियों के उदास दस्तावेज हैं तो दूसरी तरफ दुःख के संस्मरण भी। और इस सबके बीच परिस्थितयों के विरुद्ध टिके रहने के...


पारसी थियेटर एक ज़रूरी किताब है !

नाट्यकार, इतिहासकार और इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह ने मशहूर पारसी-थियेटर-नाट्यकार नारायण प्रसाद बेताब की उक्त पंक्तियाँ रज़ा फॉउंडेशन/सेतु प्रकाशन से अपनी सद्य-प्रकाशित पुस्तक पारसी थियेटर में कई जगह उधृत की है और कहा है कि पारसी थियेटर को उर्दू या हिन्दी थियेटर की बजाय हिंदुस्तानी थियेटर कहा जाना चाहिए । रणवीर सिंह (९२) सम्भवतः देश के वयोवृद्घ सक्रिय रंगकर्मी है जिन्होंने...


निम्न मध्यवर्गीय जीवन की यातना और स्वप्नभंग (हंस पत्रिका के जुलाई अंक में छपी उपन्यास घर बदर की समीक्षा)

संतोष दीक्षित हिंदी के महत्वपूर्ण कथाकार हैं जिनके अनेक कहानी संग्रह प्रकाशित हैं। 2010 में प्रकाशित उनके चर्चित उपन्यास केलिडोस्कोप के ठीक दस वर्ष बाद घर बदर का छपना कोई संयोग नहीं है, वरन एक रचनाकार के नाते उनके गहन मंथन और आनुभूतिक यात्रा का परिणाम है। यह उपन्यास इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसमें निरन्तर बदलते परिवार और समाज की गहन पड़ताल है तथा एक पराभूत सभ्यता का विमर्श भी। एक परिवार...


फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की अधिकृत जीवनी: प्रीति चौधरी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की अधिकृत जीवनी 2021 में हिंदी में आयी ‘प्रेम और क्रांति: फैज अहमद फ़ैज़: अधिकृत जीवनी‘ जो मूल रूप से अंग्रेज़ी में 2016 में उनके नाती अली मदीह हाशमी द्वारा ‘Love and Revolution : Faiz Ahmad Faiz : The Authorized Biography’ नाम से लिखी गयी थी का हिंदी अनुवाद अशोक कुमार जैसे समर्थ अनुवादक ने किया है और सेतु प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है. लाहौर में रहने वाले अली मदीह हाशमी जो फ़ैज़ के नाती हैं और पेशे से मनोचिकित्सक...


मीराजी: लकीर से अलग एक फकीर

अरविंद कुमार दुनिया के विभिन्न जुबानों के अदब में ऐसे अजीम अदीब पैदा हुए हैं, जिन्होंने बहुत कम उम्र पाई लेकिन अपने टैलेंट के बदौलत उन्होंने अपना नाम विश्व में रोशन किया और सबके दिलोदिमाग पर अमिट छाप छोड़कर चले गए. अंग्रेजी साहित्य में रोमांटिक पोएट जॉन कीट्स, शेली से लेकर लॉर्ड बायरन जैसे कवि जो क्रमशः 25, 30 और 36 साल की उम्र में इस दुनिया से विदा हो गए. हिंदी में भारतेंदु हरिश्चंद भी मात्र...


जया जादवानी के उपन्यास ‘देह कुठरिया’ का एक अंश

कुछ हफ़्ते ही गुज़रे होंगे कि एक दिन सुबह-सवेरे वह भैंस का दूध दुह रहा था, बाल्टी उसकी दोनों टांगों के बीच फंसी थी और दूध की धार उसमें गिर रही थी कि डैडी आए और उसे सूचना सी दी… ‘निकी का जबरदस्त एक्सीडेंट हो गया है। कहते हैं उसका चेहरा बहुत ख़राब हो गया है। एमएमआई हॉस्पिटल में एडमिट है और सीरियस है।’ बाल्टी उसकी टांगों के बीच से फिसली और पलट गई। पूरा दूध फ़ैल रहा है। काले पत्थरों पर सफ़ेद दूध,...