Synopsisप्रथम भाग में 'पिंजरे की उड़ान', 'वो दुनिया', 'शानदान' और ' अभिशप्त' कथा- संकलनों की कहानियाँ संग्रहीत हैं । 1939 में प्रकाशित अपने प्रथम कहानी संकलन 'पिंजरे की उड़ान' में यशपाल पहली और अंतिम बार कथा-सृजन में कल्पना की भूमिका को स्वीकार करते हैं । यद्यपि इसका विस्तार कथा-वस्तु के चयन और कहानी के रूप विन्यास में बाद में भी जितना और जैसा उन्होंने किया है, वैसा हिन्दी के कलावादी लेखक भी नहीं कर पाये हैं । लेकिन उन्हें हमेशा लगा जैसे कल्पना की महती भूमिका को स्वीकार कर लेने पर साहित्य की यथार्थवादी दृष्टि पर आँच आ सकती है । 'पिंजरे की उड़ान' की अधिकांश कहानियाँ जेल में लिखी गयी थीं । वे बाह्य संसार से अलग काल कोठरी में बन्द थे इसलिए उनके पास मात्र कल्पना का ही अवलम्ब था । जिसके माध्यम से वे बाह्य संसार को देख और महसूस कर सकते थे । जेल में लिखी गयी इन कहानियों ने हिन्दी संसार को चमत्कृत कर दिया । 'मक्रील' जैसी कोमल, संवेदनात्मक कहानी दुबारा यशपाल-साहित्य में दिखाई नहीं पड़ी । जेल से छूटने के बाद वे जीवन की कठोर भूमि पर उतर आये और वस्तुगत यथार्थ की काँटों भरी राह पर चल पड़े । फिर तो 'वो दुनिया' से आगे बढ्कर 'ज्ञानदान' तक आते लोगों को आँखे खोलने के लिए वे सच्चाइयों के चेहरे से नकाब उठाने लगे । नींद में डूबे समाज को जगाने का उन्हें कोई दूसरा उपाय नहीं सूझता था इसलिए उन्होंने अपनी कहानियों को ही वह उपादान बना लिया और ' अभिशप्त' की कहानियों तक पहुँचते-पहुँचते कहानी साहित्य को सर्वथा नये शिल्प, नये कथाबोध को ऐसा रूप दे दिया जैसा हिन्दी साहित्य में अब तक कुछ अन्य नहीं था ।
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Binding: HardBack
About the author
यशपाल (3 दिसम्बर 1903 - 26 दिसम्बर 1976 का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते है। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से जनजागरण का काम शुरु किया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1970 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।यशपाल के लेखन की प्रमुख विधा उपन्यास है, लेकिन अपने लेखन की शुरूआत उन्होने कहानियों से ही की। उनकी कहानियाँ अपने समय की राजनीति से उस रूप में आक्रांत नहीं हैं, जैसे उनके उपन्यास। नई कहानी के दौर में स्त्री के देह और मन के कृत्रिम विभाजन के विरुद्ध एक संपूर्ण स्त्री की जिस छवि पर जोर दिया गया, उसकी वास्तविक शुरूआत यशपाल से ही होती है। आज की कहानी के सोच की जो दिशा है, उसमें यशपाल की कितनी ही कहानियाँ बतौर खाद इस्तेमाल हुई है। वर्तमान और आगत कथा-परिदृश्य की संभावनाओं की दृष्टि से उनकी सार्थकता असंदिग्ध है। उनके कहानी-संग्रहों में पिंजरे की उड़ान, ज्ञानदान, भस्मावृत्त चिनगारी, फूलों का कुर्ता, धर्मयुद्ध, तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ और उत्तमी की माँ प्रमुख हैं।