Synopsisविद्यापति वैष्णव थे, या शैव थे, या शाक्त थे-समालोचकों की खींचातानी सामान्य पाठकों को अवश्य ही मनोरंजक लगेगी। विरह-शृंगार वाले ये गीत तत्कालीन सामंतवर्ग के मनोविज्ञान की सामग्री प्रतीत होते हैं। नर्तक और नर्तकियाँ भावभीनयपूर्वक इन गीतों को गाते थे। इन पदों के गीतभिनय सारी-सारी रात चलते रहते थे। राधा-कृष्ण वाले पदों में अंत वाली पंक्ति प्रायः ही आशा का संदेश देती है। मिलन होता और अवश्य होगा- इससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि महाकवि किसी भी स्तिथि में अपने श्रोताओं को निराश छोड़ना पसंद नही करता।
Enjoying reading this book?
Recommended by 3 Readers.
Binding: HardBack
About the author
नागार्जुन (30 जून 1911-5 नवंबर 1998 हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था परंतु हिन्दी साहित्य में उन्होंने नागार्जुन तथा मैथिली में यात्री उपनाम से रचनाएँ कीं। इनके पिता श्री गोकुल मिश्र तरउनी गांव के एक किसान थे और खेती के अलावा पुरोहिती आदि के सिलसिले में आस-पास के इलाकों में आया-जाया करते थे। उनके साथ-साथ नागार्जुन भी बचपन से ही “यात्री” हो गए। आरंभिक शिक्षा प्राचीन पद्धति से संस्कृत में हुई किन्तु आगे स्वाध्याय पद्धति से ही शिक्षा बढ़ी। राहुल सांकृत्यायन के “संयुक्त निकाय” का अनुवाद पढ़कर वैद्यनाथ की इच्छा हुई कि यह ग्रंथ मूल पालि में पढ़ा जाए। इसके लिए वे लंका चले गए जहाँ वे स्वयं पालि पढ़ते थे और मठ के “भिक्खुओं” को संस्कृत पढ़ाते थे। यहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली।
छः से अधिक उपन्यास, एक दर्जन कविता-संग्रह, दो खण्ड काव्य, दो मैथिली; (हिन्दी में भी अनूदित) कविता-संग्रह, एक मैथिली उपन्यास, एक संस्कृत काव्य "धर्मलोक शतकम" तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियों के रचयिता नागार्जुन को 1969 में उनके ऐतिहासिक मैथिली रचना पत्रहीन नग्न गाछ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्हें साहित्य अकादमी ने १९९४ में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में नामांकित कर सम्मानित भी किया था।