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Suno Bakul!
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Suno Bakul!

by Sushobhit
4.1
4.1 out of 5
Creators
Author Sushobhit
Publisher Pratishruti Prakashan
Synopsis सुनो बकुल! कुछ मौज कुछ ज्ञान--सुशोभित निबंध आधुनिक काल की सबसे लोकतांत्रिक और सृजनात्मक विधा है। भारतेंदु से प्रारंभ हुई इस गद्य विधा में हमारे मूर्धन्यों ने इसका उच्चतम विकास किया है और इसके कई आयाम दृष्टिगोचर हुए हैं। फिर भी लगता है कि सखासम्मत भाव के रूप में विकसित इस विधा में कुछ नया रूपांतर घटने वाला है। ‘सुनो बकुल!’ युवा लेखक सुशोभित का पहला निबंध संग्रह है। इस संग्रह में संकलित अधिकांश लेख सुललित एवं लघु आकार के हैं। काव्यपदीय विन्यास में प्रस्तुत और बहत्तर शीर्षकों में रचे इन निबंधों का विषय-वैविध्य चकित करता है; रससिक्त भाषा-शैली, अबोधता और अपने कौतुक भाव से मोहता भी है। ज्ञान को सरल बनाने की कला सुशोभित ने अपने आचार्यों से— जिनका परिसर निबंधकारों तक सीमित करना गलत होगा— सीख ली है। देशी ही नहीं विदेशी विचारक, लेखक, मिथक आदि उसकी परिधि में सहज ही संचरण करते दिखते हैं। दर्शन, अध्यात्म, लौकिक-अलौकिक, संगीत, कला, साहित्य-संस्कृति— सब रचना-द्रव्य बनकर निकलते हैं; जिज्ञासा, आकुलता, प्रश्नों का संधान—सब साहित्य-चिंतन की सरणी में निखरते हैं। इस पुस्तक में लेखक की अंतर्यात्रा के कई प्रदेश हैं, जहां पाठक कुछ समय के लिए बिलम सकता है, कुछ मौज कुछ ज्ञान पा सकता है। लेखक के मन की दीर्घा में अनेकानेक अभिलेख सजे हैं जिनमें से कुछ-एक का उन्मोचन उसने बड़े प्यार से यहां किया है। कहा जाना चाहिए कि शब्दों का यह अर्घ्य हमारे चित्त को निर्मल करेगा, आलोक से भरेगा और अमर्ष को भी दूर करेगा। क्षत्रिय कुल में जन्मे वैष्णवी नास्तिक, कबीरपंथी, बाणभट्ट-कुल के जातक, दंडी के ध्वजावाही, गद्य के साधक द्वारा प्रस्तुत जामुनों की ढींग से (संदर्भ : ‘जाम्बुलवन की कन्या’ शीर्षक निबंध) कुछ तौलवा लीजिए और शकरकंद से मीठे इन छोटे-छोटे जामुनों को चखिए, कहीं ये आम का स्वाद न भुला दें। आश्वस्त हूँ कि कुबेरनाथ राय की प्रथम कृति ‘प्रिया नीलकंठी’ (1968) की तरह ‘सुनो बकुल!’ को भी पाठकों का प्यार मिलेगा।

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Binding: Paperback
About the author "13 अप्रैल 1982 को मध्यप्रदेश के झाबुआ में जन्म। शिक्षा-दीक्षा उज्जैन से। अँग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर। कविता की दो पुस्तकों ‘मैं बनूँगा गुलमोहर’ और ‘मलयगिरि का प्रेत’ सहित लोकप्रिय फ़िल्म-गीतों पर विवेचना की एक पुस्तक ‘माया का मालकौंस’ प्रकाशित। यह चौथी किताब। अँग्रेज़ी के लोकप्रिय उपन्यासकार चेतन भगत की पाँच पुस्तकों का अनुवाद भी किया है। संप्रति दैनिक भास्कर समूह की पत्रिका अहा! ज़िंदगी के सहायक संपादक। ईमेल- [email protected]"
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Pratishruti Prakashan
  • Pages: 168
  • Binding: Paperback
  • ISBN: 9789384012083
  • Category: Language & Essay
  • Related Category: Arts / Humanities
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