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Home Literature Novel Sati Maiya Ka Chaura
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Sati Maiya Ka Chaura
by Bhairavprasad Gupt
4.8
4.8 out of 5
Creators
AuthorBhairavprasad Gupt
PublisherLokbharti Prakashan
Synopsisसती मैया का चौरा में भैरवप्रसाद गुप्त गाँवों की मुक्ति का सवाल उठाते हैं। वे सांप्रदायिक सद्भाव के लिए किए जाने वाले संघर्ष को भी विस्तारपूर्वक अंकित करते हैं।
उपन्यास की कहानी दो संप्रदायों के किशोरों—मुन्नी और मन्ने को केन्द्र में रखकर विकसित होती है। मन्ने गाँव के जमींदार का लड़का है, जबकि मुन्नी एक साधारण हैसियत वाले वैश्य परिवार से है। उनके किशोर जीवन के चित्र सांप्रदायिक कट्टरता के विरुद्ध एक आत्मीय और अन्तरंग हस्तक्षेप के रूप में अंकित हैं।
* * *
भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में ही उत्पन्न सांप्रदायिक राजनीति की शक्तियाँ गाँव को भी प्रभावित करते हैं।
सती मैया के चौरा के लिए शुरू हुआ संघर्ष उन निहित स्वार्थों को निर्ममतापूर्वक उद्घाटित करता है जो धर्म और संप्रदाय के नाम पर लोक-चेतना और लोक-संस्कृति के प्रतीकों को नष्ट करते हैं।
'हिन्दू-मुसलमान की बात कभी अपने दिमाग में उठने ही न दो, यह समस्या धार्मिक नहीं राजनीति है और सही राजनीति ही सांप्रदायिकता का अन्त कर सकती हैं।'
यह सही राजनीति क्या है?
'मैं कभी भी महत्त्वाकांक्षी नहीं रहा। धन, यश, प्रशंसा को कभी भी मैंने कोई महत्व नहीं दिया। पढ़ाई खत्म होने के बाद जो तकलीफ मैंने झेली, उसमें और आश्रम के जीवन में जो भी ग्रहण किया है, सच्चाई से किया है। आश्रम, जेल जीवन और पार्टी-जीवन ने मुझे बिलकुल सफेद कर दिया, सारी रंगीनियों को जला दिया...मैंने जीवन में जो भी ग्रहण किया है, सच्चाई से किया है। आश्रम में, जेल जीवन में, पार्टी-जीवन में और अब पत्रकारिता और लेखक के जीवन में...।'
सती मैया का चौरा भैरवप्रसाद गुप्त का ही नहीं समूचे हिन्दी उपन्यास में एक उल्लेखनीय रचना के रूप में समादृत रहा है।