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Sampurna Kahaniyan : Suryakant Tripathi Nirala
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Sampurna Kahaniyan : Suryakant Tripathi Nirala

by Suryakant Tripathi Nirala
4.6
4.6 out of 5

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Creators
Publisher Rajkamal Prakashan
Synopsis सम्पूर्ण कहानियाँ - प्रखर जनवादी चेतना के लेखक निराला की 25 कहानियों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इन कहानियों को रचना-क्रम और प्रकाशन-क्रम से यहाँ प्रस्तुत किया गया है। निराला ने अपनी इन कहानियों में विषयवस्तु के अनुरूप ही कहानी का नया रूप गढ़ा है। वे कई बार संस्मरणात्मक ढंग से अपनी बात करते हैं, लेकिन अन्त तक आते-आते मामूली-से बदलाव से संस्मरण को कहानी में बदल देते हैं। निराला के पहले चरण के उपन्यासों में जिस तरह कल्पना और यथार्थ के बीच अन्तर्विरोध दिखाई देता है, वह अन्तर्विरोध उपन्यास की अपेक्षा इन कहानियों में ज्यादा तीखा है। इन कहानियों में उनका गद्य हास्य का पुट लिये नई दीप्ति के साथ सामने आया है। जितना उसमें कसाव है, पैनापन भी उतना ही। सुरुचिपूर्ण साज-सज्जा में प्रकाशित निराला की ये सम्पूर्ण कहानियाँ पाठकों को पहले की तरह ही अपनी ओर आकर्षित करेंगी।

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Binding: HardBack
About the author सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (21 फरवरी, 1896 - 15 अक्टूबर, 1961) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है। किसी ने उस युग-कवि को ‘महाप्राण निराला’ कहा तो किसी ने उसे ‘मतवाला’ कहा। किसी ने उसे छायावादी युग का ‘कबीर ’कहा तो किसी ने उन्हें ‘मस्तमौला’ कहा । किसी ने उन्हें सांस्कृतिक नवजागरण का ‘बैतालिक’ कहा तो किसी ने उन्हें सामाजिक-क्रान्ति का ‘विद्रोही कवि’ कहा । एक साथ उनके नाम के साथ इतना वैविध्य और वैचित्रय जुटता गया कि इनका जीवन और काव्य दोनों विरोधाभास के रूपक बनते गए। मगर ‘निराला’ सचमुच निराला ही बने रहे। लोगों के द्वारा दिये गये विशेषणों की उन्होंने कभी चिन्ता नहीं की। वे एक साथ दार्शनिक भी थे, समाज-सुधारक भी थे, विद्रोही भी थे, स्वाभिमानी भी थे, अक्खड़ भी थे, फक्कड़ भी थे, उदारचेता भी थे और सबसे बढ़कर ‘महामानव’ थे। युग की पीड़ा और समय का दंश निराला के हृदय को भी सालता रहा और उनके भीतर से शब्द का लावा फूटता रहा। उनके शब्द कहीं अंगार बनकर निकले तो कहीं इन्द्रधनुष बनकर उतरे। इस महान् कवि की जीवन-यात्रा भी फूल और अंगारे के बीच से होकर चलती रही। एक सतत संघर्ष की कहानी उनके जीवन की निशानी बनकर रह गई।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 258
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9788126713677
  • Category: Short Stories
  • Related Category: Novella
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