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Home Literature Poetry Samay Ke Pass Samay
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Samay Ke Pass Samay
by Ashok Vajpeyi
4.8
4.8 out of 5
Creators
AuthorAshok Vajpeyi
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisप्रेम, मृत्यु और आसक्ति के कवी अशोक वाजपेयी ने इधर अपनी जिजीविषा का भूगोल एकबारगी बदल दिया है : वे कहेंगे बदला नहीं, सिर्फ उसमे शामिल कुछ ऐसे अहाते रौशन भर कर दिए हैं जो पहले भी थे पर बहुतों को नजर नहीं आते थे ! अपनी निजता को छोड़े बिना उनकी कविता की दुनिया अब कुछ अधिक पारदर्शी और सार्वजानिक है ! उसमे अब एक नए किस्म की बेचैनी और प्रश्नाकुलता विन्यस्त हो रही है !
समय, इतिहास, सच्चाई आदि को लेकर बीसवीं शताब्दी के अंत में जो दृश्य हाशिये पर से दीखता है, उसे अशोक वाजपेयी अपनी कविता के केंद्र में ले आये हैं ! जुडाव-उलझाव के कुछ बिलकुल अछूते प्रसंग उनकी पहली लम्बी कविता में कुम्हार, लुहार, बढ़ई, मछुआरा, कबाड़ी और कुंजड़े जैसे चरित्रों के मर्मकथनों से अपनी पूरी एंद्रयता और चारित्रिकता के सात प्रगट हुए हैं ! उनका पुराना पारिवारिक सरोकार अपने पोते के लिए लिखी गई दो कविताओं में दृष्टि और अनुभव के अनूठे रसायन में चरितार्थ होता है !
एक बार फिर अशोक वाजपेयी की आवाज नए प्रश्न पूछती, नै बेचैनी व्यक्त करती और कविता को वहां ले जाने की कोशिश करती है जहाँ वह अक्सर नहीं जाती है ! अब उनका काव्यदृश्य सयानी समझ और उदासी से, सयानी आत्मालोचना से आलोकित है, उसमे किसी तरह अपसरण नहीं है-कवी अपनी दुनिया में अपनी सारी अपर्याप्तताओं और निष्ठां के साथ शामिल है ! कविता उसके इस अटूट उलझाव का साक्ष्य है !