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Home Nonfiction Reference Work Sahitya Ka Ekant
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Sahitya Ka Ekant
by Apoorva Nand
4.3
4.3 out of 5
Creators
AuthorApoorva Nand
PublisherVani Prakashan
Synopsisयह पुस्तक प्रखर आलोचक अपूर्वानंद द्वारा समय-समय पर लिखे गये सुविचारित आलोचनात्मक लेखों का ताज़ा संकलन है इन लेखों में कविता के साथ-साथ कथा साहित्य भी अपूर्वानंद की आलोचकीय चिन्ता में शामिल हैं और इसके अलावा उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त, दिनकर, नागार्जुन, पन्त, रघुवीर सहाय और प्रेमचंद पर भी जैसा कि सर्वथा नयी दृष्टि से विचार किया है । जैसा की उन्होंने भूमिका में लिखा है “अतीत हमेशा ही साहित्य का अनिवार्य सन्दर्भ रहा है । साहित्य जीवन से जन्म लेता है, इसे लेकर कोई बहस नहीं, लेकिन बड़ी हद तक यह भी सच है कि साहित्य साहित्य से ही पैदा होता है । इसलिए प्रत्येक उस आलोचना को, जो नयेपन का दावा करती है, अतीत के साथ अपने सम्बन्ध की नवीनता उदघाटन करना ही होगा, पिछला लिखा हुआ मात्र ऐतिहासिक सन्दर्भ नहीं, वह जीवित समकालीन साहित्यिक सन्दर्भ है... ।“अपूर्वानंद इस बात से परिचित हैं कि आलोचना “आख़िरकार पूरे साहित्यिक कार्य व्यापार में हाशिये पर चलने वाली कार्रवाई है । रचनाकार भी उसे साहित्य के प्रचार या विज्ञापन विभाग तक की मान्यता देने के पक्ष में ही प्रतीत होता है । साहित्य की शिक्षा उससे कृति की व्याख्या भर करने का काम लेना चाहती है । क्या उसके बिना रचना का काम कहीं बाधित होता है ? इस कारण आलोचना अब रचना से ही अनुमोदन लेने की होड़ में लग गयी दीखती है । भूमिकाओं की यह अदला-बदली दिलचस्प है, लेकिन आलोचना जब इस प्रकार समकालीन रचना पर निर्भर हो जाये तो वह अपनी स्वायत्तता को भूलती है ।“ अपूर्वानंद की जद्दोजहद इसी भुलायी जा रही स्वायत्तता को अर्जित करने और उसे बरकरार रखने की जद्दोजहद है । और कोशिश में जो ख़तरे हैं उनका सामना करने में उन्हें कोई संकोच या हिचकिचाहट नहीं है । अपूर्वानंद ने साहस के साथ इस चुनौती को स्वीकार किया है जिसका सबूत उनके लेखों में बराबर मिलता है ।