Synopsisअंग्रेज़ी के प्रसिद्ध पत्रकार, स्तम्भकार और कथाकार खुशवंत सिंह की आत्मकथा सिर्फ़ आत्मकथा नहीं, अपने समय का बयान है। एक पत्रकार की हैसियत से उनके सम्पर्कों का दायरा बहुत बड़ा रहा है। इस आत्मकथा के माध्यम से उन्होंने अपने जीवन के राजनीतिक, सामाजिक माहौल की पुनर्रचना तो की ही है, पत्रकारिता की दुनिया में झाँकने का मौका भी मुहैया किया है। भारत के इतिहास में यह दौर हर दृष्टि से निर्णायक रहा है। इस प्रक्रिया में न जाने कितनी जानी-मानी हस्तियाँ बेनकाब हुई हैं और न जाने कितनी घटनाओं पर से पर्दा उठा है। ऐसा करते हुए खुशवंत सिंह ने हैरत में डालनेवाली साहसिकता का परिचय दिया है।
खुशवंत सिंह यह काम बड़ी निर्ममता और बेबाकी के साथ करते हैं। खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में औरों के साथ उन्होंने खुद को भी नहीं बख़्शा है। वक्त के सामने खड़े होकर वे उसे पूरी तटस्थता से देखने की कामयाब कोशिश करते हैं। इस कोशिश में वे एक हद तक खुद अपने सामने भी खड़े हैं - ठीक उसी शरारत-भरी शैली में जिससे ‘मैलिस’ स्तम्भ के पाठक बखूबी परिचित हैं, जिसमें न मुरौवत है और न संकोच।
उनकी जिंदगी और उनके वक्त की इस दास्तान में ‘थोड़ी-सी गप है, कुछ गुदगुदाने की कोशिश है, कुछ मशहूर हस्तियों की चीर-फाड़ और कुछ मनोरंजन’ के साथ बहुत-कुछ जानकारी भी।
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Binding: PaperBack
About the author
Khushwant Singh, who died in March 2014 at the age of 99, was India?s best-known writer. His bestselling books include A History of the Sikhs, Train to Pakistan, Delhi: A Novel, Ranjit Singh: Maharaja of the Punjab and an autobiography, Truth, Love and a Little Malice.