Synopsisबंगला की ख्यातनामा औपन्यासिक महाश्वेता देवी बंगला-पाठकों से अधिक हिंदी-पाठकों में परिचित व् प्रसिद्ध हैं ! अपनी यथार्थवादी कृतियों के कारण वे पाठकों के विशाल समूह में आदर की पात्री हैं !
महाश्वेता देवी के उपन्यासों की विषय-वस्तु कुछ इतनी नवीन, अनजानी और आकर्षक होती है कि उसे पढ़ते समय पाठक एक अन्य भाव-जगत की सैर करने लगता है !
अपने सच-झूठ’ उपन्यास में वे एक नयी जमीन हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं ! भारत में नव-धनान्य वर्ग की अपनी विचित्र लीला है ! अब वे घर-मकान छोड़ प्रोमोटरों द्वारा निर्मित बहुमाजिली इमारतों के फ्लैटों में कई-कई मजिलों में बसते हैं ! इन फ्लेटों की सजावट उनके धन के प्रदर्शन का साधन है ! लेकिन इन बहु-मंजिली इमारतों के पार्श्व में एक पुराणी बस्ती का होना भी आवश्यक है ! वह बस्ती न रहे तो फ्लेटों में बसनेवाली मेमसाहबों की सेवा के लिए दाइयाँ-नौकरानियाँ कहाँ से आयें ! फिर इन दाइयों की साहबों को जरूरत रहती है ! मेमसाहबों की गैरमौजूदगी में ये युवती दाइयाँ साहबों के काम आती हैं ! ऐसी ही एक दाई और धनिक साहब अर्जुन के चारों और घुमती यह कथा धनिक वर्ग के जीवन के गुप्त रहस्यों को प्रकट करती है जहाँ गरीबों का शोषण आज भी बरक़रार है !
रहस्य-रोमांच से भरपूर एक चमत्कारी कथा !
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Binding: PaperBack
About the author
जन्म : 1926, ढाका।
पिता श्री मनीष घटक सुप्रसिद्ध लेखक थे।
शिक्षा : प्रारम्भिक पढ़ाई शान्तिनिकेतन में, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.।
अर्से तक अंग्रेजी का अध्यापन।
कृतियाँ अनेक भाषाओं में अनूदित।
हिन्दी में अनूदित कृतियाँ : चोट्टि मुण्डा और उसका तीर, जंगल के दावेदार, अग्निगर्भ, अक्लांत कौरव, 1084वें की माँ, श्री श्रीगणेश महिमा, टेरोडैक्टिल, दौलति, ग्राम बांग्ला, शालगिरह की पुकार पर, भूख, झाँसी की रानी, आंधारमानिक, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, मातृछवि, सच-झूठ, अमृत संचय, जली थी अग्निशिखा, भटकाव, नीलछवि, कवि वन्द्यघटी गाईं का जीवन और मृत्यु, बनिया-बहू, नटी (उपन्यास); पचास कहानियाँ, कृष्णद्वादशी, घहराती घटाएँ, ईंट के ऊपर ईंट, मूर्ति, (कहानी-संग्रह); भारत में बँधुआ मजदूर (विमर्श)।
सम्मान : ‘जंगल के दावेदार’ पुस्तक पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘मैगसेसे अवार्ड’ तथा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ द्वारा सम्मानित।
निधन : 28-07-2016 (कोलकाता)।