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Home Literature Literature Ram Utkarsh Ka Itihas
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Ram Utkarsh Ka Itihas
by Shriram Mehrotra
4.3
4.3 out of 5
Creators
AuthorShriram Mehrotra
PublisherLokbharti Prakashan
Synopsisप्राचीन इतिहास में इक्ष्वाकु वंश में एक से बढ़कर एक यशस्वी, उत्तम प्रजापालक, वचन के धनी, महात्मा नरेशों में 39वीं पीढ़ी के श्रीरामचंद्र श्रेष्ठतम नरेश ही नहीं, पृथ्वी के अप्रतिम पुरुषोत्तम हुए जिन्होंने मानवता के उत्कार्श्के देवों को भी बौना कर दिया | राज्य छोड़कर वनवास करने की छोटे से समय की माता के आज्ञापालन की बात एक पुत्र को पुरुषोत्तम और देवोत्तम बना सकती है, यह श्रीराम के आचरण से प्रमाणिक हुआ | राम की आयु ग्यारह हजार वर्ष की रही हो या मात्र एक सौ ग्यारह वर्ष की, इसमें चौदह वर्ष का छोटा काल-खंड उनकी चरित्रगत सम्पति को अयोध्या के चक्रवर्ती अधिपति के पद से भी ऊँचा उठानेवाला हुआ | कठोर दंद्कवन के लिए वनवासी होने की विमाता की आज्ञा शिरोधार्य कर राम ने वन में असंभव को संभव करने की जो उपलब्धियाँ पायी,उससे वे पुरुषोत्तम-इशोत्तम दोनों ही हुए | राम के जीवन का यह काल उन्हें 'राम' बनाने का उत्कर्ष काल था | जीवन में यह संयोग न होने पर उत्तम प्रजापालन की रघुवंश की परम्परा में एक और श्रेष्ठ राजा की गिनती हो जाती थी | किन्तु वे देश-देशांतर के विश्व-राम नहीं होते |पीड़ादायक राक्षसों के साथ अजेय रावण से संसार को मुक्ति दिलाना इस वन प्रदेश में प्रवेश से संभव हुआ | विमाता की आज्ञा और पुत्र की शिरोधार्यता में ऐसा क्या था कि विश्व में ऐसा दूसरा इतिहास नहीं हुआ, यह इस ग्रन्थ की विषय वस्तु है | वनवास की कठोर कसौटी से रामराज्य के नाम से वनों में ही अंकुरित हुई थी | माता-पिता की आज्ञा पालन की साधारण सी बात से कोई इतना असाधारण लोकादर्श हो सकता है, राजा बनने से अधिक महत्त्व कर्तव्यों में है, यह राम-चरित्र बनाता है | परंपरागत प्रसंगों से अलग ऐसे अनेक अज्ञात व् उपेक्षित प्रसंग यहाँ प्रकाशित हुए हैं जो राम इतिहास पर नयी रौशनी डालते हैं | महान इतिहास की नवीन दिशा में राम के समकक्ष शत्रु-नायक पौलस्त्य रावण-कुल के इतिहास का भी विस्तार से यहाँ वर्णन है |
यह ग्रन्थ हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओँ में प्रकाशित उन सामग्रियों का उत्तर है जो पूर्वाग्रह से लिखे गये हैं, जिनमे अध्ययन का अभाव है और विशेषतः युवा वर्ग को भ्रमित करने का प्रयास है |