Synopsisगीताश्री ने जब कहानियाँ लिखने के लिए अपनी कलम उठाई, तब भारत की उन स्त्रियों के बारे में चर्चा की जो शहरी मध्यवर्ग से दूर गाँव देहात में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। जहां स्त्री विमर्श शहरी जड़ता का शिकार होता चला जा रहा है, वहीं दूसरी और गीताश्री उन संवेदनाओं पर रोशनी डालती हैं जो कि न किसी बड़ी फिल्म, न लोकप्रिय उपन्यास और न ही किसी छायावाद का हिस्सा बन पाये। गीता श्री एक निर्भय आवाज़ हैं जो लिखने के लिए किसी स्त्री वैमर्शिक उत्तर आधुनिकतावाद के मार्ग दर्शन का इंतज़ार नहीं करती। आप वही लिखती हंन जो जीवन की मान्य सच्चाई से परे है, बने बनाये संबंधों से अलग है, आध्यात्म से आगे है, `प्रार्थना के बाहर` है। गीताश्री की कहानियाँ स्त्री की कहानियाँ हैं, लेकिन प्रचलित अर्थों में नहीं। ‘प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ’ की कहानियों की नायिकाएँ पराधीनता का दुःख नहीं स्वाधीनता का सुख चुनती हैं, बनी बनायी सीमाओं को तोड़ती हैं तो खुद अपनी सीमाएँ भी बनाती हैं। ये उत्तर-आधुनिक स्त्रियाँ हैं जिनके जीवन में कैरियर की कशमकश, जीवन का तनाव है लेकिन घुटन नहीं है। वे अपनी पहचान अपनी शर्तों पर बनाना चाहती हैं, अपना खुद का मुकाम बनाना चाहती हैं। समकालीन स्त्रियों के जीवन के जद्दोजहद को समझना है तो गीताश्री की कहानियों से गुजरना ‘मस्ट’ है। यह कहानियाँ केवल महानगरीय जीवन जीने वाली स्त्रियों की कहानियाँ नहीं हैं, उनमें ग्रामीण स्त्रियाँ हैं, कस्बाई युवतियाँ हैं, समाज के अलग-अलग तबकों की स्त्रियाँ हैं। जो पितृसत्तात्मक समाज की दीवारों पर बड़े साहस से दस्तक देती हैं, बिना किसी शोर-शराबे के। यह कहानियाँ सतायी गयी स्त्रियों की कहानियाँ नहीं हैं, न ही वे स्त्री मुक्ति का घोषणापत्र बनाती हैं बल्कि स्त्री जीवन की विडम्बनाओं को पूरी शिद्दत से सामने लाती हैं। ये कहानियाँ नहीं बदलते समाज की कुछ दास्तानें हैं, आने वाले समय में जिनकी ऐतिहासिकता सिद्ध होगी।
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Binding: PaperBack
About the author
कथाकार एवं पत्रकार
कृतियाँ: प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियाँ; स्वप्न, साजिश और स्त्री, डाउनलोड होते हैं सपने (कहानी संग्रह), औरत की बोली, स्त्री आकांक्षा के मानचित्र (स्त्री-विमर्श), सपनों की मण्डी (आदिवासी लड़कियों की तस्करी पर आधारित शोध), देहराग (बैगा आदिवासियों के गोदना कला पर आधारित शोध पुस्तक)।
सम्पादित कृतियाँ: नागपाश में स्त्री (स्त्री-विमर्श), कल के कलमकार (बाल कथा), स्त्री को पुकारते हैं स्वप्न, कथा रंगपूर्वी (कहानी संग्रह), हिन्दी सिनेमा: दुनिया से अलग दुनिया (सिनेमा), तेईस लेखिकाएँ और राजेन्द्र यादव (व्यक्तित्व)।
पुरस्कार एवं सम्मान: वर्ष 2008-09 में पत्रकारिता का सर्वोच्च पुरस्कार रामनाथ गोयनका, बेस्ट हिन्दी जर्नलिस्ट ऑफ द ईयर समेत अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त, कथा साहित्य के लिए इला त्रिवेणी सम्मान-2013, सृजनगाथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सम्मान, सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार, साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए बिहार सरकार की तरफ़ से बिहार गौरव सम्मान-2015।
राष्ट्रीय स्तर के पाँच मीडिया फैलोशिप और उसके तहत विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों पर गहन शोध।
23 वर्षों तक सक्रिय पत्रकारिता के बाद फ़िलहाल स्वतन्त्र पत्रकारिता और साहित्य लेखन।