Synopsisअनामिका की ये कविताएँ सगेपन की घनी बातचीत-सी कविताएँ हैं। स्त्रियों का अपना समय इनमें मद्धम लेकिन स्थिर स्वर में अपने दु:ख-दर्द, उम्मीदें बोलता है। इनमें किसी भी तरह का काव्य-चमत्कार पैदा करने का न आग्रह है, न लगता है कि अपने होने का उद्देश्य ये कविताएँ उसे मानती हैं; उनका सीधा-सरल अभिप्राय उन पीड़ाओं को सम्बोधित करना है जो स्त्रियों और उन्हीं जैसी भीतरी-बाहरी यंत्रणाओं से गुज़रे लोगों के जीवन में इस पार से उस पार तक फैली हैं। बड़ी-बूढ़ी स्त्रियों, दादियों-नानियों, माँओं की बातों, मुहावरों, कहावतों में छिपे काल-सिद्ध सत्य का अन्वेषण अनामिका हमेशा ही करती हैं, सो ये कविताएँ भी लोक और जन-श्रुतियों की अनुभव-वृद्ध नाडिय़ों में जीवन-सत्य की, आत्म-सत्य की अनेक धाराओं से अपने मंतव्य को सींचती, पुष्ट करती चलती हैं। इस संग्रह में विशेष रूप से जो कविता पाठकों का ध्यान खींचनेवाली है वह कुछ साल पहले दिल्ली की एक ठंडी रात में घटित निर्भया-कांड के सन्दर्भ में है। कई उप-खंडों में विभाजित यह कविता विस्थापन बस्तियों में रहनेवाली कई स्त्रियों के जीवन-मन से गुज़रती हुई निर्भया तक पहुँचती है, और अपने ढंग से इस घटना और इसके निहितार्थों की व्याख्या करती है। स्त्री अनामिका के लिए कोई जाति नहीं है, एक तत्त्व है, जो प्राणि-मात्र के अस्तित्व में मौजूद होता है। वह पुरुष में भी है, पेड़ में भी है, पानी में भी है। वही जीव को जन्म और जीवन देता है, उसे सार्थक करता है। ये कविताएँ उसी तत्त्व को केन्द्र में लाने का उद्यम हैं।
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Binding: HardBack
About the author
अनामिका का जन्म 17 अगस्त, 1961, मुजफ्फरपुर, बिहार में हुआ । इन्होंने एम.ए., पीएच.डी.( अंग्रेजी), दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की । उन्हें हिंदी कविता में अपने विशिष्ट योगदान के कारण राजभाषा परिषद् पुरस्कार, साहित्य सम्मान, भारतभूषण अग्रवाल एवं केदार सम्मान पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। समकालीन हिन्दी कविता की चंद सर्वाधिक चर्चित कवयित्रियों में वे शामिल की जाती हैं। अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका होने के बावजूद अनामिका ने हिन्दी कविता कोश को समृद्ध करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। प्रख्यात आलोचक डॉ. मैनेजर पांडेय के अनुसार "भारतीय समाज एवं जनजीवन में जो घटित हो रहा है और घटित होने की प्रक्रिया में जो कुछ गुम हो रहा है, अनामिका की कविता में उसकी प्रभावी पहचान और अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।" वहीं दिविक रमेश के कथनानुसार "अनामिका की बिंबधर्मिता पर पकड़ तो अच्छी है ही, दृश्य बंधों को सजीव करने की उनकी भाषा भी बेहद सशक्त है।"