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Home Literature Modern & Contemporary Palbhar Ki Pahachan (hindi)
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Palbhar Ki Pahachan (hindi)
by Sachchidanand Joshi
4.1
4.1 out of 5
Creators
AuthorSachchidanand Joshi
PublisherPrabhat Prakashan
Synopsisडॉ. सच्चिदानंद जोशी की पुस्तक ‘कुछ अल्प विराम’ को काफी अच्छी प्रतिक्रियाएँ मिलीं। कुछ ने कहा कि यह अनिवार्यतः पढ़ी जाने लायक किताब है। कुछ ने कहा इसे तो महाविद्यालयीनों के पाठ्यक्रम में जोड़ दिया जाना चाहिए। कुछ ने तो यहाँ तक कह दिया कि इस पुस्तक के माध्यम से गल्प कहने की एक नई विधा ही जन्म ले रही है। ‘कुछ अल्प विराम’ को नए तरह का रचना-प्रयोग मानने वालों की भी संख्या अच्छी-खासी रही। उसी प्रयास का परिणाम है उसी शृंखला की यह दूसरी पुस्तक ‘पल भर की पहचान’। लेखक ने शब्दचित्रों का जो नया प्रयोग प्रारंभ किया है, उसे आगे बढ़ाने का विचार है। जितना बढ़ेगा और पसंद किया जाएगा, और आगे बढ़ाते रहेंगे। हमारी जिंदगी की आपाधापी में परेशानियाँ और चुनौतियाँ तो रोज ही हमारे सामने हैं। उसी संघर्ष की बेला में हमारे सामने या इर्द-गिर्द यदि कोई छोटी सी भी सकारात्मक घटना घट जाए तो वह बहुत सुकून देती है। या फिर जिंदगी की चुनौतियों से जूझता कोई सकारात्मक व्यक्ति मिल जाता है तो वह हमें भरी गरमी में शीतलता का अहसास देता है। ऐसे क्षणों को या व्यक्तियों को सँजोकर रखना किसी बड़े भारी बैंक बैलेंस से कम नहीं है। इस संग्रह के बहाने ऐसे कुछ और लोगों को तथा ऐसे कुछ और प्रसंगों को सामने लाने का प्रयास है जिनकी सकारात्मकता हमें नई दृश्टि देती है, नया उत्साह देती है। लेखक ने कोशिश की है कि बिना शब्दों का आडंबर रचे तथा बिना अतिरंजना किए, व्यक्तियों को अथवा घटनाओं को सीधी-सरल भाषा में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर सकें। विशेष रूप से हमारे युवा साथियों के सामने जिनके अंदर हिंदी भाषा के प्रति अनुराग और आकर्षण ऐसे प्रयोग के माध्यम से पैदा करना आवश्यक है, और यह पुस्तक ऐसा एक प्रयास भी है|
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Binding: Hardback
About the author
सच्चिदानंद जोशी जन्म: 9 नवंबर, 1963 भारत की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और दस्तावेजीकरण में विगत तीन वर्ष से संलग्न। भारत विद्या को भारत में तथा भारत के बाहर पुनर्व्याख्यायित करने के संकल्प के साथ कार्यरत। पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में अपने प्रदीर्घ अनुभव के साथ विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं में कार्य। रंगमंच, टेलीविजन तथा साहित्य के क्षेत्र में भी सक्रियता। संप्रेषण कौशल, व्यक्तित्व विकास, लैंगिक समानता, सामाजिक सरोकार और समरसता, सांस्कृतिक धरोहर-चिंतन, व्याख्यान और लेखन के मूल विषय। कविता, कहानी से लेकर टेलीविजन धारावाहिक तक सभी विधाओं में लेखन। एक कविता-संग्रह ‘मध्यांतर’ बहुत चर्चित हुआ। पत्रकारिता इतिहास पर दो पुस्तकें ‘सच्चिदानंद जोशी की लोकप्रिय कहानियाँ’ तथा ‘कुछ अल्प विराम’ को अच्छा प्रतिसाद मिला। विश्वविद्यालय का कुलपति होने का गौरव। संप्रति: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली में सदस्य सचिव। प्रियंका रतूड़ी प्रियंका रतूड़ी (7 मार्च, 1980) ने प्रबंधन शास्त्र में स्नातकोत्तर करने के बाद अपने प्रशिक्षण संस्थान ‘द रोड अहेड’ की बुनियाद रखी। अपनी रचनात्मकता के चलते प्रशिक्षण के दौरान कॉरपोरेट जगत् में कई नए एवं रोचक प्रयोग किए। स्वाभ्यास एवं सीख से अब अपने चित्रों की प्रदर्शनी एवं किताबों के लिए चित्रांकन।