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Home Literature Novel Neend Nahin Jaag Nahin
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Neend Nahin Jaag Nahin
by Aniruddh Umat
4.9
4.9 out of 5
Creators
AuthorAniruddh Umat
PublisherVani Prakashan
Synopsisगद्य की आत्मीय परम्परा के रचनाकार अनिरुद्ध उमट का यह नवीनतम उपन्यास है- 'नींद नहीं जाग नहीं।' एक युवती प्रेम और राग की डोर से बँधी अपना एकाकी जीवन जी रही है जिसे संगीत की स्मृति भी अनुराग का उत्ताप याद दिलाती है। अनिरुद्ध उमट अपनी हर रचना में तिलिस्म के तहख़ाने रचते हैं। इस रचना की नायिका अभिसारिका नहीं है, लेकिन जाना, आना, रुकना, प्रतीक्षा करना उसकी नियति है। वह बिस्तर पर आधी चादर बिछाकर लेट जाती है। उसके उदास एकान्त में प्रेम की स्मृति किशोरी अमोनकर के गाये राग ‘सहेला रे, आ मिल गा' के स्वर में बन उठती है। प्रेमी का चला जाना उसे सूने स्टेशन, यशोधरा की प्रतीक्षातुर आँखें और किसी परिचित सिगरेट गन्ध से जोड़ता चलता है। अनिरुद्ध उमट की बेचैन भाषा में प्रेमिका की आकुलता पकड़ने की लपट और छटपटाहट है। ऐसी भाषा कई दशक बाद किसी प्रेम-कहानी में पढ़ने को मिली है। आख़िरी बार निर्मल वर्मा के उपन्यास 'वे दिन' में आत्मीयता, उद्विग्नता और उदासी की त्रिपथगा महसूस की गयी थी। इस बिम्बात्मक कृति में ऊष्मा है, उत्ताप है, रक्तचाप है। कोई आश्चर्य नहीं कि इस छोटी-सी रचना का बड़ा प्रभाव हमारी नसों पर पड़ता है। हम यथार्थवाद के भौतिक शब्दजाल से इतर राजस्थान की खण्डहर हवेली, धोरों, निर्जन स्टेशनों के इन्द्रजाल में फँसे कामना करते हैं कि युवती का प्रेमी वापस आ जाये। अकेले जीवन की जटिल परतों से गुज़रती हुई ‘नींद नहीं जाग नहीं' की नायिका दुखान्त को प्राप्त होती है। इससे पहले अनिरुद्ध उमट अपने दो उपन्यासों से एक विशिष्ट पहचान बना चुके हैं- 'अँधेरी खिड़कियाँ' और 'पीठ पीछे का आँगन' से। विख्यात साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद ने उपन्यास ‘पीठ पीछे का आँगन' पढ़कर कहा था, 'तुमने एक तरह से (फिर) स्थापित कर दिया है कि उपन्यास में अमूर्तन सम्भव ही नहीं, सुन्दर भी हो सकता है, कि प्रयोग अराजकता का पर्याय नहीं, कि प्रयोगवादी उपन्यास भी उपन्यास ही है। साधारण यथार्थ में बगैर भाषा और शिल्प के सहारे, आन्तरिकता के सहारे, मानवीय लाचारियों के सहारे-कहने का मतलब यह है कि तुमने अपने इस काम से मुझे प्रभावित ही नहीं किया, मोह भी लिया।' अक्क महादेवी और मीरा की बेचैनी अपने मन में समोये नायिका अपने कभी न लौटने वाले नायक की प्रतीक्षा में भटक रही है। कथा के कत्थई पृष्ठों के ख़त्म होते-न-होते कथा का अवसान होता है मानो जीवन विदा लेता है। प्रेम की त्रासदी जीवन की त्रासदी में परिणत हो जाती है और हमें लियो टॉलस्टॉय का वह अमर वाक्य याद आ जाता है- 'सुखी परिवार सब एक से होते हैं। हर दुखी परिवार की अलग कहानी होती है।' -ममता कालिया