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Nar Naari

by Krishna Baldev Vaid
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Publisher Rajkamal Prakashan
Synopsis

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Binding: PaperBack
About the author हिन्दी के आधुनिक गद्य-साहित्य में सब से महत्वपूर्ण लेखकों में गिने जाने वाले कृष्ण बलदेव वैद (27 जुलाई 1927 - 6 फ़रवरी 2020) ने डायरी लेखन, कहानी और उपन्यास विधाओं के अलावा नाटक और अनुवाद के क्षेत्र में भी अप्रतिम योगदान दिया है। अपनी रचनाओं में उन्होंने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किये जो पाठक को 'चमत्कृत' करने के अलावा हिन्दी के आधुनिक-लेखन में एक खास शैली के मौलिक-आविष्कार की दृष्टि से विशेष अर्थपूर्ण हैं। इनका जन्म डिंगा, (पंजाब (पाकिस्तान)) में27 जुलाई 1927 को हुआ। इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की। यह 1950 से 1966 के बीच हंसराज कॉलेज, दिल्ली और पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ में अंग्रेज़ी साहित्य के अध्यापक रहे। इन्होंने 1966 से 1985 के मध्य न्यूयॉर्क स्टेट युनिवर्सिटी, अमरीका और 1968-69 में ब्रेंडाइज यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी और अमरीकी-साहित्य का अध्यापन किया। 1985 से 1988 के मध्य यह भारत भवन, भोपाल में 'निराला सृजनपीठ' के अध्यक्ष रहे। कृष्ण बलदेव वैद अपने दो कालजयी उपन्यासों- उसका बचपन और विमल उर्फ़ जाएँ तो जाएँ कहाँ के लिए सर्वाधिक चर्चित हुए हैं। एक मुलाक़ात में उन्होंने कहा था- "साहित्य में डलनेस को बहुत महत्व दिया जाता है। भारी-भरकम और गंभीरता को महत्व दिया जाता है। आलम यह है कि भीगी-भीगी तान और भिंची-भिंची सी मुस्कान पसंद की जाती है। और यह भी कि हिन्दी में अब भी शिल्प को शक की निगाह से देखा जाता है। बिमल उर्फ जाएँ तो जाएँ कहाँ को अश्लील कहकर खारिज किया गया। मुझ पर विदेशी लेखकों की नकल का आरोप लगाया गया, लेकिन मैं अपनी अवहेलना या किसी बहसबाजी में नहीं पड़ा। अब मैं 82 का हो गया हूँ और बतौर लेखक मैं मानता हूँ कि मेरा कोई नुकसान नहीं कर सका। जैसा लिखना चाहता, वैसा लिखा। जैसे प्रयोग करना चाहे किए।" वैदजी का रचना-संसार बहुत बड़ा है- विपुल और विविध अनुभवों से भरा। इसमें हिन्दी के लिए भाषा और शैली के अनेकानेक नए, अनूठे, निहायत मौलिक और बिलकुल ताज़ा प्रयोग हैं। हमारे समय के एक ज़रूरी और बड़े लेखकों में से एक वैद जी नैतिकता, शील अश्लील और भाषा जैसे प्रश्नों को ले कर केवल अपने चिंतन ही नहीं बल्कि अपने समूचे लेखन में एक ऐसे मूर्तिभंजक रचनाशिल्पी हैं, जो विधाओं की सरहदों को बेहद यत्नपूर्वक तोड़ता है। हिन्दी के हित में यह अराजक तोड़फोड़ नहीं, एक सुव्यवस्थित सोची-समझी पहल है- रचनात्मक आत्म-विश्वास से भरी। अस्वीकृतियों का खतरा उठा कर भी जिन थोड़े से लेखकों ने अपने शिल्प, कथ्य और कहने के अंदाज़ को हर कृति में प्रायः नयेपन से संवारा है वैसों में वैदजी बहुधा अप्रत्याशित ढब-ढंग से अपनी रचनाओं में एक अलग विवादी-स्वर सा नज़र आते हैं। विनोद और विट, उर्दूदां लयात्मकता, अनुप्रासी छटा, तुक, निरर्थकता के भीतर संगति, आधुनिकता- ये सब वैद जी की भाषा में मिलते हैं। निर्भीक प्रयोग-पर्युत्सुकता वैद जी को मनुष्य के भीतर के अंधेरों-उजालों, जीवन-मृत्यु, सुखों-दुखों, आशंकाओं, डर, संशय, अनास्था, ऊब, उकताहट, वासनाओं, सपनों, आशंकाओं; सब के भीतर अंतरंगता झाँकने का अवकाश देती है। मनुष्य की आत्मा के अन्धकार में किसी अनदेखे उजाले की खोज करते वह अपनी राह के अकेले हमसफ़र हैं- अनूठे और मूल्यवान।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 223
  • Binding: PaperBack
  • ISBN: 9788126723355
  • Category: Novel
  • Related Category: Modern & Contemporary
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