Synopsisअपनी क्रातिकारी एवं साम्राज्य विरोधी गरिविधियों के लिए पुलिस-मुठभेड़ के बाद यशपाल 23 जनवरी, 1932 को इलाहबाद में गिरफ्तार हुए ! इसके लिए उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई ! अपने कारावास के दौर में वे नैनी, सुल्तानपुर, बरेली, फतेहपुर आदि विभिन्न जेलों में रहे ! राजनितिक बंदी होने से बी क्लास की सुविधाओं के कारण, जीवन की कोई विशेष आशा न होने पर भी, उन्होंने अपने इस समय को पढने-लिखने और विभिन्न भाषाएँ सीखने में लगाया ! उन्होंने कहानियां लिखीं और पढ़ी गई सामग्री के विस्तृत नोट्स लिये ! दोस्तोवस्की, जुलियस फ्युचिक, ग्राम्शी और भात सिंह आदि की तरह जेल-जीवन में एक तरह से उनका अधिकतर समय इस रचनात्मक उद्यम में ही बीता ! जेल-प्रवास का दौर यशपाल के लिए वस्तुतः ढेर सारे फैसलों का दौर भी था ! जीवित बहार निकलने के बाद भविष्य की चिंता तो थी ही, यह भी तय करना था कि अब करना क्या है ! यशपाल की यह डायरी उनकी रचनात्मक तैयारी का साक्ष्य है ! इसमें उन अनेक कहानियों का पहला ड्राफ्ट मिलता है जो बाद में ‘पिंजरे की उड़ान’ और ‘वो दुनिया’ में संकलित की गई ! इस सामग्री में महात्मा गाँधी की अहिंसा और सत्याग्रह, लेनिन की राजनितिक पद्धति और फ्रायड के मनोविश्लेषण जैसे परस्पर-विरोधी विचार-सरणियों तक पहुँचने और चीजों को देखने, समझने की यशपाल की चिंता को देखा जा सकता है ! कुल मिलकर यह सारी सामग्री उनकी उस रचनात्मक बेचैनी का साक्ष्य है जिससे उबरकर ही वे एक पत्रकार और लेखक के रूप में अपना रूपांतरण करते हैं ! इन्हें उनके जीवन के समान्तर रखकर पढ़ा जा सकता है ! ये सिर्फ कुछ उदाहरन है कि यशपाल की यह जे-डायरी उन्हें कैसे एक बहतर रूप में समझने का अवसर देती है !
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Binding: HardBack
About the author
यशपाल (3 दिसम्बर 1903 - 26 दिसम्बर 1976 का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते है। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से जनजागरण का काम शुरु किया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1970 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।यशपाल के लेखन की प्रमुख विधा उपन्यास है, लेकिन अपने लेखन की शुरूआत उन्होने कहानियों से ही की। उनकी कहानियाँ अपने समय की राजनीति से उस रूप में आक्रांत नहीं हैं, जैसे उनके उपन्यास। नई कहानी के दौर में स्त्री के देह और मन के कृत्रिम विभाजन के विरुद्ध एक संपूर्ण स्त्री की जिस छवि पर जोर दिया गया, उसकी वास्तविक शुरूआत यशपाल से ही होती है। आज की कहानी के सोच की जो दिशा है, उसमें यशपाल की कितनी ही कहानियाँ बतौर खाद इस्तेमाल हुई है। वर्तमान और आगत कथा-परिदृश्य की संभावनाओं की दृष्टि से उनकी सार्थकता असंदिग्ध है। उनके कहानी-संग्रहों में पिंजरे की उड़ान, ज्ञानदान, भस्मावृत्त चिनगारी, फूलों का कुर्ता, धर्मयुद्ध, तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ और उत्तमी की माँ प्रमुख हैं।