Synopsisनागार्जुन उन थोड़े-से कवियों में हैं, जो अपनी कविताओं से यह चुनौती पेश करते हैं। उनके साथ सबसे मज़ेदार बात यह है कि साहित्य मर्मज्ञों के लिए अपनी कविताओं के जरिए वे चुनौती भले पेश करते हों, लेकिन खुद साहित्य में नहीं जीते। कविता लिखते समय उनके सामने श्रोता के रूप में बड़े-बड़े कलावंत उतना नहीं रहते, जितना साधारण लोग रहते हैं। इसलिए वे अनुभूतियों और अनुभवों के लिए इन लोगों के बीच इनका हिस्सा बनकर रहते हैं, और कविता लिखते समय अपनी अभिव्यंजना को इन लोगों की स्थिति, जरूरत और समझ के स्तर के अनुरूप ढालकर पेश करते हैं। कैसी भी उतार-चढ़ाव की स्थिति हो, कवि नागार्जुन कविता के साथ अपनी इस हिस्सेदारी में कटौती नहीं करते। इसलिए साहित्य के मर्मज्ञों के लिए उनकी चुनौती बड़ी सताऊ जान पड़ती है। इन रचनाओं का पाठ गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में होता रहा है। कुछ रचनाएं हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में लिप्यन्तरित और अनूदित होकर छपती रही हैं। कुछ बंगला के लघुपत्रों में भी।
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Binding: HardBack
About the author
नागार्जुन (30 जून 1911-5 नवंबर 1998 हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था परंतु हिन्दी साहित्य में उन्होंने नागार्जुन तथा मैथिली में यात्री उपनाम से रचनाएँ कीं। इनके पिता श्री गोकुल मिश्र तरउनी गांव के एक किसान थे और खेती के अलावा पुरोहिती आदि के सिलसिले में आस-पास के इलाकों में आया-जाया करते थे। उनके साथ-साथ नागार्जुन भी बचपन से ही “यात्री” हो गए। आरंभिक शिक्षा प्राचीन पद्धति से संस्कृत में हुई किन्तु आगे स्वाध्याय पद्धति से ही शिक्षा बढ़ी। राहुल सांकृत्यायन के “संयुक्त निकाय” का अनुवाद पढ़कर वैद्यनाथ की इच्छा हुई कि यह ग्रंथ मूल पालि में पढ़ा जाए। इसके लिए वे लंका चले गए जहाँ वे स्वयं पालि पढ़ते थे और मठ के “भिक्खुओं” को संस्कृत पढ़ाते थे। यहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली।
छः से अधिक उपन्यास, एक दर्जन कविता-संग्रह, दो खण्ड काव्य, दो मैथिली; (हिन्दी में भी अनूदित) कविता-संग्रह, एक मैथिली उपन्यास, एक संस्कृत काव्य "धर्मलोक शतकम" तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियों के रचयिता नागार्जुन को 1969 में उनके ऐतिहासिक मैथिली रचना पत्रहीन नग्न गाछ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्हें साहित्य अकादमी ने १९९४ में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में नामांकित कर सम्मानित भी किया था।