Synopsisअरुण देव अपने संयत स्वर और संवेदनशील वैचारिकता के नाते समकालीन हिन्दी कविता में अपनी जगह बना चुके हैं। यह संकलन उनकी काव्य-दक्षता और संवेदना के और प्रौढ़ तथा सघन होने का प्रमाण है। ये कविताएँ आशंका के बारे में हैं, उम्मीद के बारे में हैं। स्मरण-विस्मरण के बारे में, स्त्रियों के बारे में और प्रेम के बारे में हैं। स्त्रियों के बारे में अरुण देव की कविताएँ अपनी वैचारिक ऊर्जा और ईमानदार आत्मान्वेषण के कारण अलग से ध्यान खींचती हैं। उनकी कविताओं में, प्रेम आत्मान्वेषण करता दिखता है, खुद के बारे में असुविधाजनक सवालों से कतराता नहीं। अरुण देव की कविताओं में पूर्वज भी हैं, और किताबें भी, जो - ‘नहीं चाहतीं कि उन्हें माना जाए अन्तिम सत्य’। ये कविताएँ उस सत्य के विभिन्न आख्यानों से गहरा संवाद करती कविताएँ हैं जो लाओत्जे और कन्फूशियस के संवाद में ‘झर रहा था / पतझर में जैसे पीले पत्ते बेआवाज’। अरुण देव की कविताओं से गुजर कर कहना ही होगा, ‘अब भी अगर शब्दों को सलीके से बरता जाए /उन पर विश्वास जमता है’। - पुरुषोत्तम अग्रवाल
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Binding: HardBack
About the author
अरुण देव
जन्म : 16 फरवरी, 1972; कुशीनगर।
शिक्षा : उच्च शिक्षा जे.एन.यू., नई दिल्ली से।
प्रकाशित कृतियाँ : क्या तो समय और कोई तो जगह हो (कविता-संग्रह)।
सम्मान : कोई तो जगह हो के लिए ‘राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान’।
नेपाली, मराठी, बांग्ला, असमिया, कन्नड़, अंग्रेजी आदि भाषाओं में कविताओं के अनुवाद प्रकाशित।
नौ वर्षों से हिन्दी की चर्चित वेब पत्रिका समालोचन (www.samalochan.com) का सम्पादन।