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Home Literature Poetry Kirishnadharma Main
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Kirishnadharma Main
by Prabha Khetan
4.8
4.8 out of 5
Creators
AuthorPrabha Khetan
PublisherVani Prakashan
Synopsisमेरी इस पूरी कविता में कृष्ण मौजूद हैं उनकी मौजूदगी उस कौंध की मौजूदगी है जो कभी दिखती है कभी नहीं दिखती, मगर लापता कभी नहीं होती। हाँ, यह भी सच है कि मेरे पास ऐसा कोई विज़न नहीं, बस कहीं कछ आत्मा की गहराई में ज़रूर घटा कि अपने वैयक्तिक अनुभवों का अतिक्रमण करते हुए मैंने खुद यह राह चुनी; उस आग को कुरेदा, जो इच्छा, आकांक्षाओं और महत्त्वाकांक्षाओं की राख के नीचे एक मानवीय आग बनकर सुलग रही थी। पूरी रचना के दौरान मैं आज की चुनौतियों के बीच अपने को कृष्ण की साझीदार पाती रही हूँ हास-उल्लास के क्षणों से लेकर महाभारत के महासंहार तक के प्रकरणों के बीच, केलि-कुंजों से लेकर प्रभास-तीर्थ तक की रचना-यात्रा के बीच। शायद साझेदारी के इस एहसास ने ही मुझे स्थूल कथा-सूत्रों से बचाकर चेतना के स्तर पर कृष्ण से जोड़ा है, कृष्णधर्मा बनाया है।