Synopsisब्रज को पानी में डुबा दो!' देवराज इन्द्र ने गरजकर कहा।
'मैं चाहता हूं कि इस छोटे से गांव ब्रज का एक-एक व्यक्ति पानी में डूबकर मर जाए! इन मूर्खों को देवलोक के राजा पुरंदर का अपमान करने का फल मिलना ही चाहिए!'
अधिकांश संसार, देवताओं के राजा को 'इन्द्र' के नाम से जानता है। परंतु वास्तव में 'इन्द्र' किसी का नाम नहीं, अपितु देवलोक के राजा की पदवी है। प्रत्येक मनवन्तर के अंत में देवताओं का नया राजा नियुक्त होता है जो फिर उस मनवन्तर का 'इन्द्र' कहलाता है। वर्त्तमान इन्द्र का नाम है - पुरंदर!
महृषि कश्यप एवं अदिति का पुत्र पुरंदर, अपनी असाधारण योग्यताओं तथा विलक्षण उपलब्धियों के दम पर इन्द्रासन तक पहुँच तो गया किन्तु उस महान पद पर उसने ऐसा कौन-से कर्म किए, जिनके कारण उसकी छवि कलंकित हो गई और उसे देवताओं व मनुष्यों से सम्मान और विश्वास कभी प्राप्त नहीं हुआ जिसका वह अधिकारी है? यह दुर्भाग्यपूर्ण, किंतु सत्य है कि अपने चरित्र पर लगे इन कलंकों से बेपरवाह पुरंदर को केवल इंद्रासन के छिन जाने का भय है, जिसकी रक्षा के लिए वह आवेश में अपनी शक्तियों का बार-बार दुरुपयोग करता और बाद में पछताता है ।
इस पुस्तक में लेखक ने विभिन्न कथाओं का तान-बाना बुनकर पुरंदर के प्रभावशाली किंतु चंचल व्यक्तित्व को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।
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Binding: PaperBack
About the author
आशुतोष गर्ग का जन्म 1973 में दिल्ली में हुआ. हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिंदी) तथा दिल्ली स्नातकोत्तर डिप्लोमा (पत्रकारिता एवं अनुवाद) में प्राप्त करने के पश्चात् इंदिरा गाँधी मुक्ति विश्वविद्यालय से एम.बी.ए. (मानव संसाधन) की डिग्री प्राप्त की. स्कूल के दिनों से ही कविताएँ और कहानियाँ लिखने का सिलसिला आरंभ हो गया था और अब तक आपके द्वारा लिखी और अनुदित लगभग 15 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं.
आप अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों भाषाओँ पर सामान रूप से अधिकार रखते हैं तथा अनुवाद के क्षेत्र में एक परिचित नाम हैं. 'दशराजन', 'द्रौपदी की महाभारत', 'आनंद का सरल मार्ग,' 'श्री हनुमान लीला' आदि हिंदी में आपके द्वारा किये गए प्रमुख अनुवाद हैं, जिन्हें काफ़ी सराहा गया है, आशुतोष नियमित रूप से समाचार-पत्र व पत्रिकाओं में लिखते हैं. वर्तमान में, रेल मंत्रालय में उप-निर्देशक के पद पर कार्यरत हैं.