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Hindi Ka Lokvrit
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Hindi Ka Lokvrit

by Francesca Orsini
4.2
4.2 out of 5

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Creators
Author Francesca Orsini
Publisher Vani Prakashan
Translator Neelabh
Synopsis किसी भी भाषा के बनने में उन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हलचलों का हाथ होता है जो उस भाषा के बनते समय चल रही होती हैं। अमीर खुसरो के समय से चली आ रही हिन्दी के बारे में जब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने ‘हिन्दी नयी चाल में ढली’ की घोषणा की थी तो वे इसी सचाई को प्रतिध्वनित कर रहे थे। यही ‘नयी चाल’ बीसवीं सदी के शुरू होते न होते एक नया मोड़, एक नया अन्दाजष् अपनाने लगी थी। आज, इक्कीसवीं सदी में भी हिन्दी भाषा लगातार विवादों और चर्चा के केन्द्र में है। उसके रूप से ले कर जिसमें वर्तनी और शब्द-भण्डार प्रमुख है˝उसके आन्तरिक तत्व तक µ सभी कुछ सवालों के घेरे में हैं। अंग्रजी का हमला अगर उसे ‘हिंग्लिश’ बनाये दे रहा है तो पुरातनपन्थियों की जकड़बन्दी उसे ‘हिंस्कृत’ बनाने पर आमादा है। उसमें अब उतनी भी सजीवता नहीं बची जितनी हमें आचार्य द्विवेदी में नजष्र आती है। आचार्य द्विवेदी के समय से आगे बढ़ने की बजाय कहा जाय कि वह पीछे ही गयी है। ‘हमारी हिन्दी’ जैसी कि वह है, अब भी बनने के क्रम में है। अनेक अनसुलझी गुत्थियाँˇहैं जिन्हें अनसुलझा छोड़ दिये जाने की वजह से वह अपनी असली शानो-शौकत हासिल नहीं कर पायी है और अब भी अंग्रजी की ‘चेरी’ बनी हुई है। फ्रषंचेस्का ऑर्सीनी की पुस्तक की सबसे बड़ी ख्शासियत यह है कि यह उस युग की झाँकी दिखाती है - साफ-साफ और ब्योरेवार ढंग से - जब ये गुत्थियाँ बनीं। तथाकथित राष्ट्रीयतावाद और ‘हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान’ की भावना ने एक जीवन्त धड़कती हुई भाषा को कैसे स्फटिक मंजूषाओं में कैद कर दिया, इसका पता हमें 1920-40 के युग की भाषाई और वैचारिक उथल-पुथल से चलता है, जो इस पुस्तक का विषय है। कठिन परिश्रम और गहरी अन्तर्दृष्टि से लिखी गयी फ्रषंचेस्का की यह किताब हिन्दी के विकास की बुनियादी दृश्यावली को जीवन्तता से प्रस्तुत करते हुए, बिना आँख में उँगली गड़ाये हमें ऐसे बहुत-से सूत्रा उपलब्ध कराती है जिन्हें हम अपनी भाषा को फिर से जीवन्त बनाने के लिए काम में ला सकते हैं। बिना किसी अतिशयोक्ति के यह कहा जा सकता है कि यह पुस्तक अपने विषय का एक अनिवार्य सन्दर्भ-ग्रन्थ है।

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Binding: HardBack
About the author
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Vani Prakashan
  • Pages: 422
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9789350005071
  • Category: Reference Work
  • Related Category: Reference & Research
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